आजमगढ़ : जनता पार्टी की सरकार में सहकारिता मंत्री रहे सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने ईशदत्त यादव से प्रभावित होेने के बाद आजमगढ़ का रास्ता चुना था। उस समय ईशदत्त यादव लालगंज क्षेत्र से विधायक थे। सदन में उनकी किसी बात पर नेताजी प्रभावित हो गए थे। बाद में लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष बने और सूबे का भ्रमण शुरू किया, तो आजमगढ़ आना नहीं भूले। जिले में पहुंचे मुलायम सिंह ईशदत्त के सिधारी स्थित आवास भी गए थे। उसके बाद जिले में आना-जाना शुरू हुआ, तो वह हमेशा बना रहा। वर्ष 87-88 में बेनी प्रसाद वर्मा के साथ क्रांति रथ यात्रा निकाली। आजमगढ़ पहुंचने पर जगह-जगह हुए जोरदार स्वागत ने उन्हें प्रभावित कर दिया था। ईशदत्त ने नेता जी को यहां के नेताओं से मिलवाया और संगठन यहां भी मजबूत होता गया। आगे चलकर जनता दल के प्रदेश अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, तो भी आजमगढ़ को नहीं छोड़ा। पार्टी के निवर्तमान अध्यक्ष हवलदार यादव बताते हैं कि लालकृष्ण आडवाणी ने जब देश में राम रथयात्रा निकाली तो मुलायम सिंह उन्हें रोकना चाहते थे, लेकिन ऊपर से मना करने के कारण उन्हाेंने राष्ट्रीय एकीकरण की मीटिंग में भी यह मुद्दा उठाया। इस विषय पर नरसिंहा राव और तत्कालीन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा से भी मिले थे। जनता दल से मतभेद हुआ, तो सजपा में चले गए। संघर्ष को राजनीति मानने वाले मुलायम ने जब देखा कि जनता के मुद्दे पर सड़क पर संघर्ष नहीं हो पा रहा है, तो 1992 में उससे अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर दिया। बसपा से गठबंधन हुआ तब तक वह आजमगढ़ को समझ चुके थे और पहली संयुक्त चेतना रैली के लिए यहां के जजी मैदान को चुना। स्थिति ऐसी बनी पूर्वांचल में बाकी दलों का सूपड़ा साफ हो गया था।
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