आश्रम में रहने वाले ज्यादातर बुजुर्ग बड़े घरों से रखते हैं ताल्लुक
परिवार को याद कर अक्सर रोते हैं बुजुर्ग, हर एक की है अलग कहानी
आजमगढ़: मां-बाप बच्चों को पालने में अपना सारा जीवन लगा देते है। यहां तक कि वे अपने हिस्से की खुशियां भी बच्चों में बांट देते हैं। उनका पूरा जीवन संघर्ष में गुजर जाता है लेकिन बुढ़ापे में जब उन्हें अपनों की सबसे अधिक जरूरत होती है तो वही बच्चे उन्हें बोझ समझने लगते है और वृद्धा आश्रम में घुट घुटकर जीने के लिए छोड़ देते है। जिले में दर्जनों ऐसे बुजुर्ग वृद्धा आश्रम में जीवन काट रहे हैं जिनके बेटे या तो सरकारी नौकरी कर रहे हैं अथवा लाखों का कारोबार कर रहे है। हर बुजुर्ग की अपनी कहानी है। उनका हर दिन आंसुओं के सैलाब के बीच गुजर रहा है। ऐसा नहीं है कि आश्रम में उन्हें सरकार भोजन और कपड़ा नहीं देती है बल्कि वे अपने बच्चों को भूल नहीं पा रहे हैं। आज भी इनके मन में इस बात की कसक है कि शायद उनका परिवार अभी उनको अपना ले और जिंदगी के कुछ दिन अपनों के बीच हंस बोल कर काट लें। बुजुर्ग राम शंकर पाठक से जब उनके परिवार के बारे में बात की गयी तो वे फफक कर रो पड़े। वे बताते हैं कि जब तक वो मिल में नौकरी करते थे सबकुछ ठीक ठाक था। करीब 20 साल पहले मिल बंद होने के बाद वे बेरोजगार हो गए। बेटा फौज में नौकरी करता है। उन्हें भरोसा था कि वह बुरे वक्त में सहारा बनेगा और कम से कम दो वक्त की रोटी तो जरूर देगा जिससे उनकी जिंदगी कट जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक होने के बाद भी वह साथ रखने के बजाय उन्हें वृद्धा आश्रम में छोड़ गया। आज भी उन्हें उम्मीद है कि उनका बेटा एक दिन आएगा और घर ले जाएगा। चार बच्चों की मां रामरति को भी इसी बात का मलाल है कि 4 पुत्र होने के बाद भी वह बुढ़ापे में उनको अपने साथ नहीं रख पाए। जबकि उनका बड़ा करोबार है। वहीं बुजुर्ग लालमति कहती हैं कि उनके तीन बेटे हैं एक बेटा आर्मी में है, दूसरा डॉक्टर और तीसरा कारोबार करता है। बावजूद इसके वे तीनों अपनी मां को अपने साथ नहीं रख पाए और वृद्धा आश्रम में घुट घुटकर जीने के लिए छोड़ दिया। इन्हीं की तरह हर बुजुर्ग की अपनी अलग कहानी है। उन्हें मलाल है कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए अपनी सारी खुशी कुर्बान कर दी। यहां तक कि अपने बुढ़ापे के लिए कुछ भी बचाकर नहीं रखा लेकिन आज वहीं बच्चे उन्हें बोझ समझ रहे हैं। हर बुजुर्ग इस भरोसे के साथ दिन काट रहा है कि शायद उनके बच्चों को कभी उनकी याद आए और वे आकर उन्हें फिर से अपने साथ ले जाएं। वृद्धा आश्रम के अधीक्षक पंकज राय का कहना है कि हम इन बुजुर्गों की देखभाल पूरी तरह से करते हैं। साथ ही इनके लिए हमारे वॉलिंटियर्स भी लगे हुए हैं। यह बात सही है कि पंकज राय और वृद्धा आश्रम इन बुजुर्गों की देखभाल कर रहा है लेकिन जिन पुत्रों पर इनकी देखभाल करने की जिम्मेदारी थी वह अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं।
Blogger Comment
Facebook Comment