उदित होते सूर्य देव की लालिमा व दीपदान ने नदी व सरोवरों में अद्भुत छटा बिखेरी
आजमगढ़ : उदित होते भगवान भास्कर को अर्घ्यदान के साथ ही शनिवार को डाला छठ का चार दिवसीय महार्पव संपन्न हो गया। इससे पहले शहर से लेकर गांव तक की सड़कें आधी रात के बाद से ही गुलजार हो गईं। सबके मन में एक ही इच्छा थी कि छठ मइया की पूजा में शामिल होकर आशीर्वाद प्रात कर लें।भोर से पहले ही गूंजने लगे थे छठ मइया के गीत तो वहीं मिन्नत के अनुसार बज रहे थे ढोल-नगाड़े। रात में ठंड तो बहुत रही लेकिन उसके बाद भी लोगों ने स्नान किया और साफ वस्त्रों को धारण कर कदम बढ़ाने लगे नदी व सरोवरों की ओर। घाटों पर पहुंचे लोगों में सूर्य के उगने को लेकर बेताबी थी। व्रतियों द्वारा गए गाए जाने वाले गीत 'जल्दी-जल्दी उगा हे सुरुज देव भइलें अरघ के बेर..' इस बेताबी को बयां कर रही थी। व्रती महिलाओं के साथ चलने वाले वयस्क व बच्चों के सिर पर पूजा के सामान थे तो साथ जा रही महिलाएं छठ मइया के भजन गा रही थीं। हाथों में कलश और उस पर जलते दीपक के साथ घरों से निकलीं व्रती महिलाओं को देखने के बाद लग रहा था मानों रात के अंधेरे में साक्षात देवियां सड़क पर निकल पड़ी हों। इस दौरान नदी व सरोवरों में दीपदान ने अद्भुत छटा बिखेरी। लग रहा था मानों आसमान के तारे जल में उतर आए हों। सूर्योदय का समय नजदीक आने के साथ घाटों पर भीड़ बढ़ती गई। लग रहा था समूचा जनमानस घाटों पर ही जमा हो गया हो। अर्घ्य के लिए समय से पहले लोग दूध की व्यवस्था में जुट गए थे तो वहीं कुछ स्थानों पर पूजा कमेटियों ने मुफ्त दूध की व्यवस्था की थी। इससे पहले घाटों पर पहुंचकर व्रती महिलाओं ने अपनी बेदी के पास रंगोली बनाया, सूप में एक दिन पहले चढ़ाए गए ठोकवा, पुआ आदि को बदलकर ताजा रखा। उसके बाद सूप को पूरब दिशा की ओर रखा गया। फिर जल में खड़ी होकर व्रती महिलाओं ने सूर्य की लालिमा दिखने तक तपस्या की। भगवान भास्कर के सिदूरी रंग के दर्शन के साथ अर्घ्य शुरू हो गया। इस दौरान नदी व सरोवरों के घाटों पर छठ मइया से जुड़े गीतों से वातावरण गूंजता रहा। इस दौरान पहले व्रती महिला तथा उसके बाद परिवार के सदस्य तथा अन्य श्रद्धालुओं ने दुग्ध का अर्घ्य किया। अर्घ्यदान के बाद परिचित महिलाओं ने एक-दूसरे को सिदूर लगाया। घर पहुंचकर महिलाओं ने चौखट की पूजा की और उसके बाद बेदी पर चढ़ाए गए चने को निगलकर पारण किया।
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