आजमगढ़ : कस्बा सरायमीर मे शहीदाने करबला की याद मे ताज़िया का जुलूस चौक स्थित अज़ाखाना अबु तालिब से दो बजे दिन मे मजलिस के बाद शबीह ताज़िया, ज़ुल्जनाह, ताबूत व अलम के साथ निकला। जो पुराना थाना, रौज़ा सैय्यद अली आशकान, सिरादी पूरा मेन रोड होते हुए खरेवां स्थित सदर इमामबाड़ा पहुँच कर ज़ियारते आशूरा पढ़ने के बाद सम्पन्न हुआ। जुलूस का संचालन करते हुए शिया कमेटी के मीडिया इंचार्ज मोहम्मद हुसैन ने कहा कि पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स: व) ने हमें पैगाम दिया है कि इन्सानो की खिदमत, माज़ूरो की मदद, गिरते हुए को सहारा, पड़ोसी की जान, माल, इज्जत आबरू की हिफ़ाज़त करना, मज़लूम का साथ देना, हक़ की अवाज़ बुलन्द करना सबसे बड़ी इबादत है मगर अफ़सोस कि हज़रत मोहम्मद साहब (स:व) के दुनिया से जाने के पचास साल के बाद ही व उम्मत जो ज़ुल्म को मिटाने के लिए बरपा की गयी थी वह खुद लोगों पर ज़ुल्म ढाने लगी। बात यहां तक पहुँच गयी कि खुद मुसलमानों ने अपने नबी की औलाद को मोहर्रम की दस तारीख को करबला के रेगिस्तानी मैदान मे कई दिन भूखा प्यासा रखकर ज़िब्ह कर दिया, नबी की बेटीयों को असीर (कैद) कर लिया, खैमे जला दिये, बेगुनाहों की लाशों को जिन मे बच्चों और बूढ़ों की लाशे भी शामिल थीं घोड़ों की टापों से कुचल दी गयीं । इमाम हुसैन और उनके साथियों का सिर्फ यह कसूर था कि वह ज़ुल्म के खिलाफ अवाज़ बुलन्द करते थे । वह कहते थे कि ज़ुल्म करना बहुत बड़ा जुर्म है और ज़ुल्म पे खामोश रहना उससे भी बड़ा जुर्म है । जुलूस मे अन्जुमन अज़ाऐ हुसैन निकामुददीनपूर, अन्जुमन फ़ौजे हुसैनी ओहदपूर, अन्जुमन गुन्चये अब्बासिया कोरौली व अन्जुमन तन्ज़ीमे हुसैनी सरायमीर ने ज़न्जीर व खन्जर से मातम करके करबला के शहीदों को खिराजे अकीदत पेश किया आखिर मे कमेटी के अध्यक्ष सैय्यद कायम रज़ा ने सभी का अभार प्रकट किया ।
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