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आजमगढ़ : पठनीयता के संकट के दौर से गुजर रही साहित्य की विभिन्न विधाओं को बचाना है

गाथान्तर, पुरवाई एवं जलेस के संयुक्त तत्वावधान में समकालीन हिन्दी परिदृश्य:-कथा/कविता विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन, देश के विभिन्न हिस्सों से आए साहित्यकार

आजमगढ़ : गाथान्तर, पुरवाई एवं जलेस के संयुक्त तत्वावधान में शहर के हाफिजपुर स्थित एक स्कूल में आयोजित समकालीन हिन्दी परिदृश्य: कथा-कविता विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन रविवार को किया गया।
दूसरे दिन के पहले सत्र में समकालीन कविता पर परिचर्चा सत्र में बीज वक्तव्य देते हुए पंकज गौतम ने कहा कि वर्तमान समय कविता के लिए गंभीर चुनौती का समय है। कविता समाज की गंभीर समस्याओं की रागात्मक अभिव्यक्ति है। अरूणाचल से आई युवा कवि जमुना बीनी कादर ने समकालीन कविता की आदिवासी चेतना के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला। इलाहाबाद से आई संध्या नवोदित ने कहा कि कवि संवेदनशील होकर लिख तो रहा है। कुमार मंगलम ने कहा कि कुछ भी लिखना कविता नहीं है। अध्यक्षता कर रहे स्वप्निल ने कहा कि सबसे जरूरी है साहित्य की विभिन्न विधाओं को बचाना क्यों कि यह पठनीयता के संकट का दौर है। आज विशेष प्रस्तुति रही दिनकर शर्मा की एकल नाट्य प्रस्तुति तथा जन गीत। दूसरे सत्र में कविता पाठ में वरिष्ठ कवि डाक्टर सुनीता, सोनी पांडेय, बसुन्धरा पांडेय, आरसी चौहान, सुरेन्द्र कुमार, पूर्णिमा, अंशुल आस्थाना, डाक्टर इन्दु, नलिन रंजन सिंह, ज्ञान प्रकाश चौबे, अभिषेक सिंह, प्रतिभा श्रीवास्तव, राकेश पांडेय, रवींद्र प्रताप सिंह, बैजनाथ गवार, सरोज यादव, प्रेमगम आजमी इत्यादि ने भाग लिया।  

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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