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आजमगढ़: लालगंज सुरक्षित संसदीय सीट का मिजाज हमेशा से अलग रहा है

वर्ष 1989 के बाद से अबतक किसी सांसद को लगातार दूसरी बार मौका नहीं मिला है 

लालगंज की सीधी लड़ाई को पेंचीदा बना रही प्रसपा व कांग्रेस
आजमगढ़। जिले की लालगंज सुरक्षित संसदीय सीट का मिजाज हमेशा से अलग रहा है। यहां के लोगों ने वर्ष 1989 के बाद से अबतक किसी सांसद को लगातार दूसरी बार मौका नहीं दिया है। सीट के अस्तित्व में आने के बाद केवल पूर्व सांसद रामधन ही यहां जीत की हैट्रिक लगा पाए हैं। वर्ष 1996 से वर्ष 2009 तक इस सीट पर बारी बारी सपा और बसपा का कब्जा रहा है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच पहली बार यहां भाजपा ने खाता खोला। बीजेपी ने एक बारा फिर सांसद नीलम सोनकर को मैदान में उतारा है तो सपा-बसपा गठबंधन में संगीता आजाद पर दाव खेला है। लड़ाई भी दोनों के बीच मानी जा रही है लेकिन प्रसपा के हेमराज पासवान और कांग्रेस के अजय मोहन सोनकर लड़ाई को पेचीदा बना रहे हैं।
वैसे यहां इस बार भी चुनाव में कोई नया मुद्दा नहीं है। जनता की वही मांग है जो वे आजादी के बाद से करते आ रहे हैं और आजतक पूरी नहीं हुई है। कुछ खास मांगों पर गौर करें तो वाराणसी वाया लालगंज, आजमगढ़ होते हुए गोरखपुर तक रेलवे लाइन सबसे उपर हैं। लालगंज संसदीय सीट वर्ष 1962 में अस्तित्व में आयी तभी से यह मांग की जा रही है। कमला पति त्रिपाठी रेल मंत्री बने तो वर्ष 1973-74 में इस रेल लाइन के लिए सर्वे भी हुआ लेकिन बाद में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लालगंज आजमगढ़ का एक ऐसा कस्बा है जहां एक अदद बस स्टेशन और सब्जी मंडी तक नहीं है। जबकि मायावती इसे जिला बनाने की कोशिश कर चुकी है। यहां के लोगों की इस मांग को कभी किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। शायद यही वजह है कि यहां के लोग हमेशा इस उम्मीद से सांसद बदलते रहे कि शायद अगली सरकार उनकी बात सुन ले लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने रेल लाइन को मुद्दा बनाया और यहां के लोगों ने पहली बार कमल खिलाते हुए नीलम सोनकर को संसद भेज दिया। सांसद ने एक बार इस मामले को सदन में भी उठाया लेकिन पांच साल बीत गए और मुद्दा वहीं का वहीं है। सरकार रेल लाइन की घोषणा तक नहीं कर सकी। एक बार फिर चुनाव चला है। हवा में वहीं मुद्दे तैर रहे हैं। चुनाव में बस फर्क है तो सिर्फ इतना कि पिछले चुनाव में सपा के पूर्व सांसद दरोगा प्रसाद सरोज बीजेपी के साथ थे और इस बार फिर सपा में उनकी वापसी हो गयी है।
इसके अलावा सपा-बसपा गठबंधन कर मैदान में उतरी है। सीट बसपा के खाते हैं। बसपा ने लालगंज विधायक आजाद अरिमर्दन की पत्नी संगीता सरोज को मैदान में उतारा है। चुकि सपा का प्रत्याशी मैदान में नहीं है। इसलिए गठबंधन के लोग दलित, मुस्लिम और यादव की लामबंदी से सीट जीतने का दावा कर रहे हैं। वहीं बीजेपी ने फिर सांसद नीलम सोनकर पर दाव लगाया है। बीजेपी की मुश्किल बढ़ा रही है आप और कांग्रेस। कांग्रेस ने यहां अजय मोहन सोनकर तो आप ने अजीत सोनकर को मैदान में उतारा है तीन सोनकर के मैदान में होने से सोनकर जाति के मतों का बटवारा तय माना जा रहा है। वहीं प्रसपा ने हेमराज पासवान पर दाव खेल दिया है। जो सपा के पुराने नेता हैं। हेमराज गठबंधन और भजपा दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
इन सब के बीच एक बड़ा फैक्टर बाहुबली रमाकांत यादव हैं जो हाल ही में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए है। रमाकांत यादव ने आजमगढ़ संसदीय सीट पर अखिलेश यादव का समर्थन किया है लेकिन लालगंज में वे कांग्रेस के समर्थन की घोषणा कर चुके हैं। रमाकांत यादव का घर इसी संसदीय क्षेत्र में आता है। रमाकांत का प्रभाव फूलपुर पवई विधानसभा के साथ ही दीदारगंज और निजामाबाद में भी है। यह तीनों विधानसभा इसी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। ऐसे में अगर रमाकांत समर्थक कांग्रेस के साथ खड़े होते हैं तो लड़ाई त्रिकोणीय भी होनी संभव है।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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