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आजमगढ़ : लोकसभा चुनाव : संगठन को मजबूत करने वाले इस युवा पर भाजपा लगा सकती है दांव

छात्र जीवन से ही संघर्षशील रहा है इनका व्यक्तित्व, भाजपा संगठन में संभाल चुके है कई बड़ी जिम्मेदारी
आजमगढ़: चुनाव की घोषणा के बाद सियासी हलचल तेज हो गयी है। राजनीतिक दल यह मंथन करने में जुटे हैं कि आखिर कौन प्रत्याशी सीट जीतकर उन्हें सत्ता के सिंहासन तक पहुंचा सकता है। खासतौर पर मुलायम सिंह यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ में जहां गठबंधन गुटबाजी से परेशान और सत्ताधारी दल भाजपा मजबूत चेहरे की तलाश में है। कांग्रेस ने लालगंज सीट पर एक युवा को मैदान में उतार अपने इरादे जाहिर कर दिये हैं और चर्चा है कि आजमगढ़ में अगर सपा अध्यक्ष अखिलेश आते हैं तो कांग्रेस यहाँ से प्रत्याशी नहीं उतारेगी। रहा सवाल गठबंधन का तो अगर अखिलेश यादव चुनाव यहाँ से नहीं लड़ते है तो वह किसी अन्य पिछड़े को ही मैदान में उतारेगा। ऐसे में बीजेपी सीएम योगी आदित्य नाथ के गढ़ गोरखपुर के प्रभारी युवा नेता सहजानंद राय पर दाव खेल सकती है। राजनीतिक गलियारें में इसकी जोरदार चर्चा है। सूत्रों की माने तो पार्टी नेतृत्व ने उन्हें तैयारी में जुटने का संकेत भी दे दिया है। खुद सहजानंद पिछले कई दिनों से आजमगढ़ में जुटे हुए है और लोगों से मुलाकात का सिलसिला भी शुरू कर दिया है। अगर ऐसा होता है तो लड़ाई दिलचस्प होनी तय है।
वैसे तो बीजेपी में रमाकांत यादव को प्रबल दावेदार माना जा रहा है लेकिन पिछले दिनों उनके पार्टी के बड़े नेताओं के विरोध में आये बयान पार्टी को रास नहीं आ रहे है। इन्हें लेकर तरह तरह की चर्चा भी जोरों पर है। खासतौर पर गठबंधन में जाने की चर्चा के बाद बीजेपी ने भी विकल्प ढूंढ़ना शुरू कर दिया है। इनके अलावा अखिलेश मिश्र गुड्डू भी टिकट के दावेदार माने जा रहे हैं। वैसे अखिलेश मिश्रा को वर्ष 2017 में सदर सीट से विधानसभा चुनाव पार्टी ने लड़ाया था लेकिन वह कामयाब नहीं हो पाए।
वहीं पार्टी किसी ऐसे को मैदान में उतारना चाहती है जो तेज हो और संगठन में उसकी अच्छी पकड़ के साथ ही उसके अंदर लोगों को साथ लेकर चलने की क्षमता है। यह सारी खूबियां सहजानंद राय में लोगों को दिख रही है। सहजानंद राय वर्ष 1988 में आरएसएस से जुड़े थे। इसके बाद वर्ष 1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ गए। वर्ष 1995 में इन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का संगठन मंत्री बनाया गया। वर्ष 2001 से 2006 तक वे दो बार भारतीय जनता युवा मोर्चा के जिलाध्यक्ष रहे। इसके बाद वर्ष 2007 से 2011 के मध्य इन्हें दो बार भारतीय जनता पार्टी का महामंत्री बनाया गया। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में महामंत्री रहते हुए इन्होंने रमाकांत यादव की जीत में अहम भूमिका निभाई थी। इसके बाद इन्हें वर्ष 2012 में भाजपा का जिलाध्यक्ष बनाया गया। सहजानंद वर्ष 2016 तक बीजेपी के जिलाध्यक्ष रहे। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में इन्हीं के नेतृत्व में बीजेपी ने पहली बार लालगंज सीट पर जीत हासिल की। वहीं आजमगढ़ संसदीय सीट पर मुलायम सिंह को कड़ी टक्कर दी। वर्ष 2016 ही इन्हें गोरखपुर क्षेत्र का क्षेत्रीय मंत्री बनाकर गोरखपुर जिले का प्रभारी नियुक्त किया गया। वर्तमान में वे गोरखपुर के प्रभारी के साथ ही क्षेत्रीय महामंत्री भी है।
सहजानंद की युवाओं में गहरी पैठ है और इन्हें संगठन चलाने का काफी लंबा अनुभव है। ऐसे में माना जा रहा है कि बीजेपी गठबधंन के खिलाफ इन्हें मैदान में उतार सकती है। सूत्रों की माने तो पार्टी ने इन्हें तैयारी के लिए हरी झंडी भी दे दी है। यहीं वजह है कि इनके समर्थक सोशल मीडिया पर पूरी तरह सक्रिय हो गए है। वैसे इस मामले में अभी न तो संगठन के लोग कुछ बोलने के लिए तैयार है और ना ही सहजानंद की कोई प्रतिक्रिया सामने आयी है लेकिन इतना तय है कि अगर सहजानंद मैदान में आते है तो चुनाव दिलचस्प होगा।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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