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विशेष :: तमसा नदी और उसका आजमगढ़ में होता प्रदूषण: डॉ डी डी सिंह



आजमगढ़ :: प्रदूषण की मार झेल रही तमसा नदी अब जलाभाव से भी जूझ रही है। पुराने समय में हर बड़ा शहर किसी न किसी नदी के पास ही बसता था। आजमगढ़ भी पावन तमसा के तट पर बसा। उस समय यह नदी जीवन दायिनी होती थी। बताया जाता है कि शीशे की तरह ही इसका जल स्वच्छ होता था। कहानियों, कथाओं में यह जल पीने के योग्य बताया जाता है। सभी मनुष्य बड़ी ही बेफिक्रता के साथ तमसा का जल ग्रहण करते थे। उस समय ना ही किसी प्रकार का रोग, ना ही प्रदूषण।
पिछले दो वर्ष से तमसा की दुर्दशा से द्रवित बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. डी. डी. सिंह ने बताया कि मानव जितना प्रगति करता गया, प्रकृति का दोहन भी करता गया। तमसा में गंदगी का अंबार बढ़ता गया। इसके पास बसे शहर, कस्बों का गंदा नाला बहाने का महान साधन बन कर रह गई। तमसा का जल पीने क्या नहाने लायक भी नहीं रहा। उसके पास खड़े होकर देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि इसका जल छू लें, तो कोई त्वचा रोग ना हो जाए, और इसका एकमात्र जिम्मेदार मानव जाति है।
तमसा नदी में अब विषैले कवक व जीवों का वास हो गया है। जगह जगह नाले का गंदा पानी गिरता देखा जा सकता है। हमारे यहां प्रकृति में उपस्थित हर उस चीज को धर्म से जोड़कर रखा गया है, जो सजीव या मानव जाति को अमूल्य उपहार देते रहे हैं। जैसे पीपल को काटने पर दोष माना जाता है, क्योंकि पीपल अधिक आक्सीजन देते हैं, और समस्त सजीव प्राणी के लिए लाभप्रद है। गाय को माता माना गया, क्योंकि पंचगव्य हर प्रकार से मानव हित में है। गंगा को माता माना गया, क्योंकि वह जीवनदायिनी है। किंतु आज के लोग जब यह जान गए कि गंगा के जल में बैक्टिरियोफेज है, जो कीटाणुओं को ही खा जाते हैं, और जल सड़ता नहीं, तो उसमें इतनी गंदगी डाली कि वह भी दूषित है। ठीक वही तमसा के साथ हो रहा है। जिसके तट पर दुर्वासा जैसे ॠषियों ने तपस्या की, जिसके जल को लोग पीते थे, आज छूने से भी डरते हैं कि कहीं कोई रोग ना हो जाए। सम्हालने की जरूरत है इस प्रकृति प्रदत्त तमसा को।
जल प्रदूषण का अर्थ:
डॉ. डी. डी. सिंह के अनुसार जल प्रदूषण का अर्थ है उसके भौतिक, रासायनिक अथवा जैविकीय गुणों में इस तरह का परिवर्तन जो जल मल के विसर्जन अथवा औद्योगिक अपशिष्टों के वहिस्राव या अन्य किसी ठोस, द्रव या गैसीय पदार्थ के उसमें मिलने से वह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाता है। पृथ्वी पर फैले अपार जल का लगभग 97.5 प्रतिशत भाग खारा तथा 2.5 प्रतिशत भाग ही मीठा या ताजा है। इस मीठे जल का 75 प्रतिशत भाग हिमखण्डों में, 24.5 प्रतिशत भू जल, 0.03 प्रतिशत झीलों एवं 0.06 प्रतिशत वायुमंडल में विद्यमान है। इससे साफ स्पष्ट है कि मीठा या ताजा जल का 0.03 प्रतिशत भाग नदियों में है। और विकास की धुन में हम इन नदियों को प्रदूषित करते जा रहे हैं। जो कभी पीने के काम भी आता रहा है। तमसा भी उन्हीं नदियों में से एक है, जो प्रदूषण का शिकार होती जा रही है।
तमसा प्रदूषण के प्रमुख स्रोत:
औद्योगिक अपशिष्ट जल का निस्तारण, शवों, अधजले शवों की राख, शहरों, कस्बों का नाला, पॉलिथीन आदि।
इसके प्रभाव:
पानी से होने वाले अधिकतर रोग संचारी होते हैं। यह मानव जीवन पर जाने अनजाने सीधा प्रभाव डालते हैं। यही रोगों के संवाहक होते हैं। जीवनदायिनी तमसा को प्रदूषण से बचाने के लिए जागरूकता ही एकमात्र कारगर उपाय है। पिछले 3 जून से हो रही सफाई अब अपने अंतिम चरण में है। परन्तु अभी भी काम पूरा नहीं हुआ है। हम सभी को संकल्प लेना होगा कि ना हम नदी को गंदा करेंगें और ना ही किसी को करने देंगे।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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