आजमगढ़ : एक बेटा अपनी मां की बात से इस कदर नाराज हुआ कि उसने वैराग्य धारण कर लिया। अपने वनवास के दौरान पुत्र ने न तो अपनी मां और न ही अपने परिजनों की कोई खोज खबर ली। लेकिन मां ने अपने बेटे की लगातार तलाश जारी रखी। इस तलाश में उसे सफलता आठ वर्षो बाद मिली। काफी प्रयास के बाद मां ने अपने बेटे का वनवास समाप्त करा ही लिया। लेकिन साथ रह रहे इस वनवासी बेटे और उसकी मां को ग्रामीणों ने पूरे सम्मान और गाजे-बाजे के साथ जब विदाई दी तो ग्रामीणों के इस प्यार और स्नेह को देखकर मां और बेटे के आंखोें से आंसू छलक पड़े। आजमगढ़ जिले के सिधारी थाना क्षेत्र के जमालपुर गांव में 8 वर्ष पूर्व रमेश चन्द्र त्रिपाठी जो अम्बेडकरनगर जिले के जलालपुर थाना क्षेत्र के मसोदा गांव के रहने वाले है पहुंचे और उन्होंने ग्रामीणों से बताया कि वे अपना घर छोड़कर वनवास ले लिए आये है। जिसके बाद ग्राम प्रधान व ग्रामीणों ने उन्हें गांव में शरण दे दिया और वह गांव में ही रहने लगे। अपने वनवासी पुत्र की तलाश में माँ सुभद्रा देवी लगातार लगी रही। इस खोजबीन के दौरान उन्होने हार नही मानी और आखिरकार उन्हें पता चल गया कि उनका पुत्र आजमगढ़ जिले में है और उन्होंने ग्राम प्रधान से मिलकर पुत्र को घर वापस ले जाने की बात कही। जिसके बाद ग्राम प्रधान हरिश्चन्द्र ने रमेश को समझाया और फिर गाजे-बाजे के साथ उनकी विदाई कर दी गयी। विदाई समारोह में हाथी घोड़े भी शामिल रहे जिससे ग्रामीणों के उत्साह का पता चलता है। ग्राम प्रधान हरिश्चन्द्र का कहना है कि यह अपने परिवार से नाराज होकर इस गांव में आये थे और गांव वालों ने उन्हे गांव में शरण दी। तब से वह अब तक सादगी के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। अपने स्वभाव, मेहनत और मिलनसार होने की वजह से उन्होने पूरे गांव का दिल जीत लिया था। आठ वर्षो बाद जब इनकी मां को गांव में होने की खबर लगी तो वह कई महीनो से घर वापस चलने के लिए अपने पुत्र से लगातार मानमन्नौवल कर रही थी। जब उनके पुत्र किसी तहर से घर जाने को राजी हो गये तो आज पूरे सम्मान के साथ ग्रामवासियों ने उनकी विदाई की है ।वही वैराग्य धारण किये रमेश चन्द्र त्रिपाठी का कहना है कि उन्हें लगा कि उनकीे माँ की खुशी उनके वनवास में है इसलिए उन्होंने वनवास स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि वह 8 वर्ष के बाद अपनी माँ को देखे है और गांव वालों को वचन दिये है कि वह घर जायेंगे और अपनी माँ की सेवा करेंगे।
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