आजमगढ़: पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र की 115वीं जयंती लोक मनीषा परिषद आजमगढ़ के तत्वावधान में पंडित अमरनाथ तिवारी की अध्यक्षता में गुरुवार की देरशाम उनके मड़या स्थित आवास पर संगोष्ठी के रूप में मनायी गयी। संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए मुख्य वक्ता डीएवी पीजी कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग डॉ गीता सिंह ने कहा कि पंडित मिश्र ने साहित्य के गद्य व पद्य दोनों ही विद्याओं का सृजन किया। उन पर प्राश्चात्य नाटक कार इंसन, शा, मैटर लिंक आदि का प्रभाव था फिर भी उनकी लेखनी में भारत की आत्मा बसती थी। मौलिक सृजन से लेकर अनुवाद तक उन्होंने सोद्देश्य लेखन किया। डॉ गीता ने उनके अनेक नाटकों में निहित तात्विक विवेचना प्रस्तुत की। विशिष्ट अतिथि के रूप में अखिल गीत शोध संस्थान के प्रधान सम्पादक डॉ अखिलेश चन्द्र ने कहा कि पंडित लक्ष्मीनारायण मिश्र ने 18 वर्ष की अवस्था से ही साहित्य सृजन करना प्रारंभ कर दिये। उनकी अन्तर्जगत नामक काव्य रचना उसी समय की है। इसके उपरांत आपने नाटक की ओर लेखनी चलायी तो अशोक उनका पहला नाटक रहा। अध्यक्षीय सम्बोधन में पंडित अमरनाथ तिवारी ने कहा कि नाटक कार पंडित मिश्र ने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक तथा सामाजिक नाटकों का सृजन किया। मिश्र के ऐतिहासिक एवं पौराणिक नाटक मुख्यतः हिन्दू संस्कृति और विचारधारा पर आधारित हैं। हिन्दी नाटककारों में उनका प्रमुख स्थान है। संचालन करते हुए लोक मनीषा परिषद के अध्यक्ष पंडित जनमेजय पाठक ने कहा कि पंडित जी का जन्म 1903 में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के नृग बस्ती ग्राम में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1928 में अपनी बीए की परीक्षा केंद्रीय हिन्दू कालेज काशी से उत्तीर्ण की थी। सन्यासी, राक्षस का मंदिर, मुक्ति का रहस्य, राजयोग तथा सिन्दूर की होली लक्ष्मीनारायण मिश्र की प्रसिद्ध समस्या प्रधान सामाजिक नाटक है। सिन्दूर की होली उनका सामाजिक वेदना और संवेदना के अंतर को दर्शाता नाटक है। संगोष्ठी में मुकुन्द दुबे, मनोहर अष्ठाना, रविन्द्र त्रिपाठी, सुधांशु त्रिपाठी, श्यामबिहारी राय, निथिश रंजन तिवारी, मनोज शंकर पांडेय, विजयधारी पांडेय आदि मौजूद रहे।
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