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क्रान्ति नायक बिरसा मुण्डा की मनायी गयी 142वीं जयन्ती

आजमगढ़। भारतीय आदिवासी वनवासी कल्याण परिषद के तत्वावधान में स्थानीय मेहता पार्क में बुधवार को क्रान्ति नायक बिरसा मुण्डा की 142वीं जयन्ती हर्षोल्लास के साथ समारोह पूर्वक मनायी गयी। बिरसा मुण्डा के चित्र पर मार्ल्यापण व धूप बत्ती जलाकर कार्यक्रम की शुरूआत की गयी। वनवासी जागरण मंच के लोगों ने बिरसा मुण्डा की स्तुति की और उनके जीवन वृत्त का गायन किया। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष हरिराम आदिवासी ने बिरसा मुण्डा के जीवन वृत्त व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए बताया कि वे राँची के आदिवासी क्षेत्र के लोगों के भगवान हैं, अंग्रेजी हुकूमत के विदेशियों द्वारा आदिवासियों के जंगल जमीन व उनके फल, फूल, लकड़ी, पत्ते तथा वन सम्पदा पर कब्जा करते हुए वे बेदखल कर दिये गये। ईसाई मिशनरियाँ सहयोग के नाम आदिवासियों को ईसाई बना रहे थे ऐसे वक्त में 15 नवम्बर 1875 को बिरसा मुण्डा का उदय हुआ और उन्होेंने आदिवासी समुदाय को संगठित कर 400 जवानों की सेना बनायी और अत्याचार अनाचार के खिलाफ संघर्ष किया। उनके संघर्ष के परिणाम स्वरूप अंग्रेजी हुकूमत को मजबूर होकर आदिवासियों के अधिकार वापस करने पड़े। 9 जून सन् 1900 को रांची जेल में उनकी मौत हो गयी परन्तु उनका संघर्ष बेकार नहीं गया।आजादी की लड़ाई के वे गुमनाम अप्रतिम योद्धा रहे, उन्हें आदिवासी समाज जहाँ अपने भगवान की तरह पूजता है वहीं उनका नाम क्रान्तिकारी स्वाधीनता संग्राम के योद्धा के रूप में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हुआ। इस मौके पर प्रमुख रूप से शोभा बनवासी, गरीब आजाद, हरेन्द्र प्रसाद हरिश्चन्द्र, श्यामलाल, लौटन राम, बब्लू, पतिराम, नन्दलाल आदि अनेक नागरिक उपस्थिति रहे।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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