आजमगढ़ : विश्व अस्थमा दिवस पर चाइल्ड केअर क्लिनिक, सिधारी, आज़मगढ़ पर 'निःशुल्क अस्थमा जागरूकता शिविर' का आयोजन किया गया, जिसमे कुल 53 मरीजों की जाँच स्पाइरोमेट्री, पीक फ्लोमीटर द्वारा की गई। बाल रोग विशेषज्ञ डॉ डी डी सिंह ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस साल की थीम "स्वच्छ हवा अच्छी साँस" रखा है। अस्थमा श्वसन तंत्र की बीमारी है। इसकी शुरुआत एलर्जी से होती है। इसके कारण श्वांस नली में सूजन हो जाती है। इससे मरीज को सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। अस्थमा के मरीजों को चलने पर सांस फूलना, पूरा वाक्य न बोल पाना, बेहोशी की हालत होना, बार बार छींक आना, सोते समय घबराहट होना या सीटी जैसी आवाज आना, बार बार सर्दी या जुकाम होना आदि इसके लक्षण होते हैं। अस्थमा के बारे में भ्रांति है कि दमा दम से जाता है, परन्तु ऐसा नहीं है। यदि मरीज सावधानीपूर्वक परहेज का पालन करे तो सारी उम्र अस्थमा के झटके से सुरक्षित रह सकता है। अस्थमा के मरीजों के लिए नेबुलाइजर और इनहेलर कारगर साबित होता है। आकस्मिक स्थिति में इनहेलर का प्रयोग मरीज की स्थिति सुधारने में सहायक होती है तथा रोग की तीव्रता को कम कर देता है। डॉ सिंह ने बताया कि इनहेलर और नेबुलाइजर के प्रयोग से दवा सीधे फेफड़े में पहुंचती है, जिससे मरीज को तुरंत आराम मिलता है। कुछ लोगों को यह भी लगता है कि इनहेलर का प्रयोग मरीज को आदती बना देता है या इसका दुष्परिणाम होता है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है। क्योंकि ये दवाएं सीधे फेफड़े म् पहुंचती हैं और इनकी मात्रा भी माइक्रोग्राम में होती है, अतः कोई नुकसान पहुंचाने वाली बात नहीं होती है। यह गर्भावस्था और अत्यंत छोटे बच्चों के लिए भी पूर्णतः सुरक्षित है। डॉ डी डी सिंह ने बताया कि मानवजनित इस समस्या का कारण वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड का बढ़ना और ऑक्सीजन की कमी का होना है। बढ़ते प्रदूषण और जंगलों का सफाया, औद्योगीकरण का बढ़ावा आदि साँस के रोगियों की संख्या बढ़ाने में सहायक है। विश्व में जहाँ 10 से 15 करोड़ साँस के रोगी हैं, वहीं भारत मे डेढ़ से दो करोड़। इसमें10 से 15 प्रतिशत बच्चे शामिल हैं। प्रत्येक 20 बच्चों में से एक तथा प्रत्येक 30 वयस्कों में एक को यह बीमारी होती है। स्त्रियों की तुलना में पुरुषों में दमा अधिकता से पाया जाता है। 75 फीसदी बच्चों में चार से पाँच वर्ष की उम्र से पहले ही यह रोग आरम्भ हो जाता है। बचाव के बारे में डॉ डी डी सिंह ने बताया कि मरीज को धूल, धुएँ से दूर रहना चाहिए, फूलों के पराग से बचना चाहिए, घर मे सीलन नहीं होनी चाहिए, सोफे, तकिया, चादर आदि की नियमित सफाई होनी चाहिए, एकाएक तेज धूप से आकर ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए, आइसक्रीम और कोल्ड ड्रिंक्स का सेवन नहीं करना चाहिए, तली भुनी, मसालेदार और बाहरी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करना चाहिए, रहन सहन और खान पान में सफाई रखनी चाहिए, इससे इस गम्भीर बीमारी से बचा जा सके। इस अवसर पर डॉ.वी.के.सिंह, ब्रम्हदेव सिंह, शिव गोविंद सिंह, राजनाथ, अरविंद गौतम, विमल श्रीवास्तव, सुधीर यादव, आकांक्षा राय, गौरव, विनोद, शिवम आदि लोग उपस्थित रहे।
Blogger Comment
Facebook Comment