आजमगढ़: इस्लाम धर्म के अनुसार रमजान महीने की फजीलत बहुत अधिक है। जहां इसी महीने में पवित्र ग्रंथ कुरान को नाजिल फरमाया गया वहीं इस महीने में मुसलमान पूरे दिन रोजे रखेंगे तथा रात को 20 रकात अतिरिक्त नमाज तरावीह अदा करेंगे। पूरे महीने भर मुसलमान एक निश्चित समय पर सेहरी करके दिन भर रोजा रखेंगे तथा सूर्यास्त के पश्चात इफ्तार के रूप में रोजे को मुकम्मल करेंगे। इस्लामिक धर्म ग्रंथों के अनुसार रोजा का बदला अल्लाह ताला स्वयं अपने हाथों से अदा करेगा। अर्थात इसका अर्थ केवल अल्लाह की रजा मंदी है शेष कुछ भी नहीं। क्योंकि सबकुछ रहने के पश्चात भी केवल अल्लाह के नाम पर कुछ भी न खाना पीना बहुत बड़ी बात मानी जा सकती है। रमजान के पाक महीने की शुरूआत होते ही चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। इस्लामिक कैलेन्डर के अनुसार अरबी का यह नौवां महीना त्याग और समर्पण के साथ सेवा और आस्था का प्रतीक माना गया है। एक महीने तक चलने वाले रहमतों और बरकतों का ये महीना अच्छे कामों को करने की सीख देने वाला होता है। यही कारण है कि इस महीने को नेकियों का महीना कहा गया है। उल्लेखनीय है कि धर्म ग्रंथों के अनुसार इस पवित्र महीने मे कुरान शरीफ भी नाजिल हुयी थी । कुरान शरीफ में रोजे का अर्थ बताया गया है तकवा अर्थात मुत्तकी हो जाना या बुराइयों से बचना और भलाई को अपनाना। धर्म ग्रंथों के अनुसार केवल भूखे.प्यासे रहने का नाम रोजा नहीं है। इस माह में साफ नीयत से जरूरतमंदों की मदद करने पर पुण्य में बढ़ोत्तरी की भी बात कही गई हैे। इस्लामी विद्वानों के अनुसार रमजान के पाक महीने में जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं। यही नहीं यह महीना प्रेम तथा संयम का प्रतीक माना जाता है। इसीलिए कुरान शरीफ में हर मुस्लिम को रोजा रखने की ताकीद की गई है। यदि कोई व्यक्ति रमजान के महीने में जानबूझ कर रोजे के अलावा किसी और की नीयत या केवल दिखावा करता है तो वो रोजा अल्लाह की निगाह में काबिले कुबूल नहीं होता। मानवता के लिए सबक इस महीने में लोग अपनी आमदनी का 40 वां भाग जकात के रूप मे निकाल कर इसे जरूरतमंदों को देकर उनकी सहायता करना अधिक पसंद करते हैं। इस महीने में अल्लाह से अपने सभी पिछले बुरे कर्मों के लिए माफी मांगी जाती है तथा महीने भर तौबा के साथ इबादतें की जाती हैं। इस पवित्र महीने में केवल खाने-पीने की ही पाबंदी नहीं है अपितु अधिक से अधिक नेक काम करने तथा बुरे कार्य करने से पूरे वर्ष स्वयं को रोकने व दूसरों की बुराई न करने के आत्मबल को मजबूत करने का नाम रोजा है। अर्थात केवल जल अन्न आदि त्यागने का नाम ही रोजा नहीं है अपितु स्वयं के अंदर बदलाव ले आकर दूसरों की मदद करने तथा स्वयं को अच्छे रास्ते पर चलने के आत्मबल को बढाने का नाम रोजा है। बकौल मौलाना शहाब अख्तर यदि कोई मुसलमान एक रोजा भी बगैर किसी कारण या उज्र के छोड़ दे तो पूरी जिंदगी रोजा रख कर भी उसकी भरपाई नहीं कर सकता है। वैज्ञानिक दृष्टि से रमजान के पूरे महीने रोजा रखने का एक लाभ यह भी है कि इस दौरान आप जहां अच्छाई के मार्ग पर चलना सीखते हैं वहीं दूसरी ओर किसी भी तरह के व्यसन सिगरेट, गुटखा, पान आदि की लत से पूर्णरूप से छुटकारा भी पा सकते हैं। यही नहीं रोजा रखने से आत्मविश्वास मे बढोत्तरी होती है तथा अनुशासन में रहने की पूरी सीख मिलती है। इस महीने को तीन अशरों में विभक्त किया गया है। एक अशरा 10 दिनों का माना जाता है। पहला अशरे को रहमत जबकि दूसरे को बरकत का तथा तीसरे को जहन्नुम से आजादी क अशरा माना गया है। इधर पहले रोजे की तैयारी में मुस्लिम बहुल इलाकों के बाज़ारों में भारी भीड़ देखि गयी , जिसे देखो वहीँ खानपान के सामानो की दुकानों पर लगा रहा। शहर के तकिया में स्थित एक मीनार मस्जिद की सजावट रात्रि में देखते ही बन रही है। बाजारों में चहल पहल काफी बढ़ गयी है।
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