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मोदी और मुलायम दोनों के संसदीय क्षेत्र ने उनके भरोसे को कायम रखा,दोनों की लिए पूर्वांचल छोड़ना मुश्किल

आजमगढ. : लोकसभा के बाद एक बार फिर विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी की आंधी चली और एक बार फिर यूपी में सपा, बसपा और कांग्रेस का सफाया हो गया। तीनों दल उन सीटों को भी नहीं बचा सके जिनपर इनका वर्षो से कब्‍जा था लेकिन इस चुनाव में एक बात खास रही कि मोदी और मुलायम दोनों के संसदीय क्षेत्र ने उनके भरोसे को कायम रखा। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्‍या अगले लोकसभा में ये नेता अपने इसी क्षेत्र का प्रतिनीधित्‍व करेंगे या फिर कहीं और से किस्‍मत आजमाएगे। राजनीति के जानकारों की माने तो ऐसा करना इनके लिए आसान नहीं होगा। बता दें कि वर्ष 2014 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव मैनपुरी और आजमगढ़ संसदीय सीट से चुनाव लड़े थे। मोदी लहर में पूरे यूपी में सपा साफ हो गई सिर्फ दो सीट पर मुलायम और तीन सीट पर उनके परिवार के सदस्‍यों को जीत हासिल हुई थी। बसपा यूपी में खाता नहीं खोल सकी थी तो कांग्रेस भी दो सीटों पर सिमट गई थी। जब एक सीट छोड़ने की बात आई तो मुलायम सिंह ने मैनपुरी सीट छोड़ी जबकि यहां उनके जीत का अंतर तीन लाख से अधिक था। आजमगढ़ में मुलायम सिंह रमाकांत से एक लाख से कम अंतर से जीते थे। संसद चुने जाने के बाद मुलायम सिंह सिर्फ एक बार चीनी मिल का उद्घाटन करने आजगढ़ पहुंचे। इस बीच गुमशुदा सांसद का पोस्‍टर भी गलाया गया। मुलायम का आजमगढ़ न आना चर्चा का विषय रहा लेकिन जनता का विश्‍वास उनपर बना रहा। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में जब सपा अपने गढ़ में बुरी तरह हार गई उस समय भी आजमगढ़ के लोगों ने सपा को पांच सीटें दे दी। अब बात करें पीएम मोदी की तो वे बड़ोदरा और वाराणसी से चुनाव लड़े थे। दोनों ही स्‍थानों पर उन्‍होंने रिकार्ड मतों से जीत हासिल की। मोदी ने अपने प्रदेश गुजारत की बड़ोदरा सीट छोड़ना ही मुनासिब समझा और काशी के बनकर रह गये। यूपी चुनाव से पहले उन्‍होंने अपने संसदीय क्षेत्र की करीब 16 यात्राएं की। चुनाव के दौरान पीएम तीन दिन तक अपने क्षेत्र में लगातार रहे तो इसकी खूब चर्चा हुई और विरोधियों ने उनके रोड़ शो के बहाने खूब निशाना भी साधा लेकिन जब परिणाम आया तो सभी के मुह पर ताले लग गए। कारण कि बीजेपी यहां क्‍लीन स्‍वीप कर गई। लोकसभा की तरह ही विधानसभा में भी आसपास के जिलों में भी भाजपा ने बड़ी सफलता हासिल की। जिस पूर्वांचल को कभी सपा और बसपा का गढ़ कहा जाता था आज वह मोदी का गढ़़ बनता जा रहा है। उपर से वाराणसी की जनता का मोदी पर विश्‍वास। ऐसे में यह चर्चा अभी से शुरू हो गई है कि क्‍या मुलायम और मोदी अगली लोकसभा में अपनी इन्‍ही सीटों से ताल ठोकेंगे या फिर कहीं और से। राजनीति के जानकारों की माने तो दोनों में से किसी के लिए अब अपना संसदीय क्षेत्र छोड़ना आसान नहीं होगा जबकि की वे राजनीति से सन्‍यास नहीं ले लेते। इसके पीछे तर्क भी है। मुलायम को यूपी की सत्‍ता और केंद्र में हस्‍तक्षेप के लिए पूर्वांचल में अपनी पैठ बनाए रखना मजबूरी है। यदि पूर्वांचल ने साथ छोड़ा तो केंद्र तो दूर इनके लिए यूपी की सत्‍ता में वापसी मुश्किल होगी। खासतौर पर वर्तमान हालात में जब पूर्वांचल में मोदी जैसा मजबूत प्रतिद्वंद्वी हो। मुलायम यदि आजमगढ़ छोड़ते हैं तो सपा की सेहत और बिगड़ने का खतरा होगा। बात करें पीएम मोदी की तो आज अगर केंद्र में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार है तो उसमें यपूी का सबसे अधिक योगदान है। लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल ने एक आजमगढ़ छोड़ दिया जाय तो सभी सीटों को मोदी की झोली में डाल दिया था। विधानसभा में भी भाजपा ने मोदी के सहारे ही इतनी सीटें जीतने में सफल हुई है। 2019 में अगर केंद्र की सत्‍ता में आना है तो पीएम मोदी को फिर यूपी में अपना पुराना प्रदर्शन दोहराना होगा। मोदी वाराणसी छोड़ते है तो यहां भाजपा को नुकसान होने का खतरा बना रहेगा। शायद ऐसा रिश्‍क वे लेना पसंद नहीं करेंगे। यही वजह है कि राजनीति के जानकार मान रहे है कि अब मोदी और मुलायम के लिए अपना यह संसदीय क्षेत्र छोड़ना आसान नहीं होगा। 

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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