आजमगढ़। यह जिला सपा और बसपा का गढ़ है इसमें कोई शक नहीं है। किसी भी दल को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में इस जिले की हमेशा से अहम भूमिका रही है। अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 1991 में पहली बार दो सीटों पर खाता खोलने वाली भाजपा को भी यूपी में सत्ता सुख भोगने का मौका मिला था। इस चुनाव में भी सभी की नजर जिले की दस सीटों पर है। चाहे वह समाजवादी कुनबा हो या फिर बसपा मुखिया मायावती अथवा भगवा बिग्रेड इस जिले को जीतने के लिए हर सभंव दांव खेल रहे हैं लेकिन इस बार लड़ाई थोडी अलग है। एक तरफ मतदाताओं की चुप्पी तो दूसरी तरफ भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग ने गढ़ में सपा बसपा की परेशानी को बढ़ा दिया है। हालत यह है की आधा दर्जन सीटों पर मामला त्रिकोणीय लड़ाई में फंस गया हैं। पिछले दो विधानसभा की स्थितियों पर गौर करें तो वर्ष 2007 में बसपा को यहां दस में से छह सीट मिली थी, चार पर सपा का कब्जा था। बसपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई और सपा मुख्य विपक्षी पार्टी रही। वर्ष 2012 में यहां के लोगों ने सपा पर विश्वास जताया और दस में से नौ सीटें सपा के खाते गई, मात्र एक मुबारकपुर सीट पर बसपा को जीत नसीब हुई। यूपी की सत्ता सपा के हाथ में गई। भाजपा यहां वर्ष 1996 के बाद खाता नहीं खोल सकी है। बल्कि यूं कह सकते हैं कि राम लहर में भी यहां भाजपा अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकती थी। इस चुनाव में स्थितियां बदली दिख रही हैं। भाजपा द्वारा टिकट बटवारें में की गई सोशल इंजीनियरिंग का साफ असर दिख रहा है। आमतौर पर भाजपा को सवर्णो की पार्टी कहा जाता था लेकिन इस बार पार्टी ने दस में से सिर्फ तीन सीट सवर्ण को दिया है। सदर से अखिलेश मिश्र, निजामाबाद से विनोद राय और सगड़ी से देवेंद्र सिह भाजपा के प्रत्याशी है। अन्य सीटों की बात करे तो गोपालपुर में भाजपा ने गडेरिया समाज से ताल्लुक रखने वाले श्रीकृष्ण पाल को मैदान में उतारा है। वहीं अतरौलिया में कन्हैया निषाद, फूलपुर से अरूणकांत यादव, सरायमीर से कृष्णमुरारी विश्वकर्मा, मुबारकपुर से लक्ष्मण मौर्य, लालगंज से दरोगा प्रसाद सरोज और मेंहनगर से मंजू सरोज को मैदान में उतारा है। सब मिलाकर यदि देखा जाय तो बीजेपी की नजर पूरी तरह अति पिछड़ों पर रही और जातिगत आधार पर ध्रुवीकरण के लिए पार्टी ने क्षत्रिय, ब्राहमण, भूमिहार, कोईरी, यादव, लोहार, पासी, निषाद जाति के प्रत्याशी एक ही जिले में उतार दिये। इस सोशल इंजीनियरिंग का असर है कि जिले में आधा दर्जन सीटों पर वह सीधे मुकाबले में दिख रही है। यह कह पाना मुश्किल है कि कहां कौन बाजी मार देगा। अन्य सीटों पर भी इस दल को कमजोर नहीं आंका जा रहा है। हालत यह है कि सपा और बसपा अपने दुर्ग में ही त्रिकोण में फंस गई हैं। लगभग आधा दर्जन सीटों पर सपा बसपा और भाजपा के बीच सीधे त्रिकोणीय संघर्ष दिख रहा है। यहां कई बड़े नेताओं की प्रतिष्ठा भी दाव पर लगी है। कोई यह कह पाने की स्थित में नहीं है कि परिणाम क्या होगा। मतदाताओं की चुप्पी इस संशय को और बढ़ा रही है।
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