आजमगढ़ : नेता जी सुभाष चंद बोस के ड्राइवर कर्नल निजामुद्दीन पुत्र इमाम अली का आज प्रातः चार बजे ग्राम ढकवा थाना मुबारकपुर मे देहांत हो गया वे 110 वर्ष् के लगभग और सूत्रों के माने तो नेताजी और आज़ाद हिन्द फौज की अंतिम निशानी थे। जैसे ही उनके मृत्यु की खबर लोगों को लगी वैसे ही कस्बे में शोक की लहर दौड़ गयी उनकी मौत की खबर सुनकर पूरे जनपद में कोहराम मच गया और लोगों का शोक संवेदना देने के लिए तांता लगा रहा । टी वी पर यह दुखद समाचार सुन कर आज़ाद हिन्द फ़ौज़ आंदोलन के सन् 2015 में काशी में रजिस्टर्ड सदस्य भी शोक सम्वेदना देने के उनके गाँव पहुचे और जनाजे में शामिल हुए। बताते चलें की सन् 2014 में लोकसभा के चुनाव का आगाज़ करते समय विशेष् तौर प्रधानमंत्री मोदी जी ने मंच पर पैर छु और शाल भेट कर इनसे आशीर्वाद लिया लेकिन हकीकत में कर्नल निज़ामुद्दीन मुलभुत सुविधाओ से कोषों दूर खड़े थे। और तो और प्रधानमंत्री पद के कद्दावर दावेदार और फिर इस पद पर आसीन होने वाले मोदी भी ना तो इनको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिला सके न ही जिला अधिकारी सुहास एल वाई के प्रयासों के बाद भी सरकार से सुविधा के तौर पर कोई ठोस योजना का ही लाभ मिला। यह बात अलग है की जनमानस ने हमेशा से ही निजामुद्दीन को आज़ाद हिन्द फौज का जांबाज़ और नेता जी से जुड़ा एक मात्र जीवित ब्यक्ति माना। कर्नल के पुत्र अकरम ने बताया कि जब सन् 1955 ई में बर्मा से भारत अपने पुस्तैनी गाव आये, उसके बाद पिता जी कलकत्ता गए जहाँ पर सी आई डी वालों ने उन्हें गिरफ्तार कर गहन पूछताछ किया तो उन्होंने बताया कि मै किसी प्रकार नेता जी से जुड़े फौजी के बारे में नहीं जनता हु जिस पर उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन वो फ़क़ीर बनकर नेता जी के मिशन को पूरा करने में लगे रहे । स्व0 निजामुदीन ने स्वयं यह कई बार बताया था की बर्मा में छितांग नदी के पास 20 अगस्त 1947 को नेताजी को उन्होंने आखिरी बार सीतांगपुर के पास कार उतारा था। उस समय मैं नेता जी के साथ जाना चाहता था, लेकिन नेताजी ने यह कहकर उन्हें वापस भेज दिया था कि हम आजाद भारत में मिलेंगे। लेकिन दुर्भाग्यवश उसके बाद उनकी नेताजी से मुलाकात नहीं हो पाई। उन्होंने कहा था कि, आज तक नेताजी जैसा कोई हीरे पैदा नहीं हुआ। उसके बाद उनकी मुलाकात नहीं हुई निजामुद्दीन नेताजी के साथ बर्मा में 1943 से 1945 तक साथ रहेथे । नेता जी से अलग होने के बाद निजामुद्दीन वादे के मुताबिक गुमनाम जीवन जी रहे थे , कई बार सीआईडी के हाथ लगे पर बच निकलने में कामयाब रहे , 1955 में निजामुद्दीन फिर आजमगढ़ वापस लौट आये। निजामूद्दीन के पुत्र ने बताया की पिता जी जिस तरह से नेता जी का देख रेख करते थे उनके शब्दों से ऐसा प्रतीत होता था कि नेता जी ऐसे भारत का निर्माण चाहते थे की बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पी सके। कहा हमारे बुजुर्गों ने जो सपना सजाया था वह पूरा होता हुआ नज़र नहीं आ रहा है जो कि भेद भाव की दुनिया से ऊपर उठ कर सच्चे भारतीय होने का कल्पना की थी । वही वाराणसी के आज़ाद हिन्द फौज आंदोलन संगठन से आये राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि कर्नल साहब आज़ाद हिन्द फ़ौज़ के एक सच्चे सिपाही थे, कहा की संगठन ने केंद्र सरकार और ममता बनर्जी से नेता जी सुबास चंद बोस से सम्बंधित फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग भी उठाई थी और आयोग के सामने यह भीं गवाही कि थी की नेता जी की मौत किसी हवाई दुर्घटना में नहीं हुई थी। कर्नल निजामुद्दीन नेता जी की अंतिम निशानी थे और आज वह भी नहीं रहे । नेता जी ने उनसे आज़ाद भारत में मिलने का वादा किया था।
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