आजमगढ़। चर्चित नाट्य संस्था सूत्रधार संस्थान द्वारा आयोजित नाट्य समारोह आरंगम की दूसरी संध्या का शुभारम्भ त्रिपुरारी शरण (चीफ सेक्रेटरी रेवेन्यू, बिहार सरकार), संगम पाण्डेय व मुकेश भारद्वाज ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। आरंगम के दूसरे दिन शनिवार को प्रथम सत्र में रंगसंगीत के अन्तर्गत बेगूसराय (बिहार) के शशिकान्त कुमार व साथी ने विभिन्न विधाओ के गीत प्रस्तुत कर सबको मंत्र मुग्ध कर दिया। दूसरे सत्र में मोहन राकेश कृत आ'षाढ़ का एक दिन' का मंचन अभिषेक पंडित के निर्देशन में किया गया। नाटक में नायिका मल्लिका (ममता पंडित) अपने प्रिय कालिदास(हरिकेश मौर्य) को अपने सम्पूर्णता के स्तर पर जीती है। वह समर्पित भाव से कालिदास से प्रेम ही नही करती वरना उसे अपने जीवन में महान होते देखना जाती है। इसके लिये उसे अपना सर्वस्व देकर केवल प्रतिक्षा करनी पड़ती है। जबकि मल्लिका कालिदास के लिये सिर्फ प्रेरणा मात्र हैं उसे मल्लिका प्रकृति एवं औदात्य का प्रतिक लगती है। इन सबके बीच मल्लिका की मां अम्बिका (डा.अलका सिंह) का इन दोनो के प्रेम के प्रति नकारात्मक भाव जीवन के कटु अनुभवों को प्रकट करता है। लेकिन मल्लिका अपने उद्देश्य के प्रति प्रंतिबद्ध है। इस बीच उज्जैनी के राजा, कालिदास को राजधानी आमंत्रित करते है। जहां उसे राज्य कवि का आसन प्राप्त होता है। वहां जाकर कालिदास अपना रचनाकर्म भूल व भोग विलास में तल्लीन हो जाते हैं। वह राज्य कन्या प्रियंगुमंजरी (नेहा राय) से विवाह कर काश्मीर का शासन भार संभाल लेते हें। इस बीच मल्लिका अपने जीवन और भावना के साथ संघर्ष करते हुये लगारतार कालिदास की प्रतिक्षा करती रहती हे। एक-एक दिन उसके जीवन में एक नयी समस्या व विशाद को जन्म देते है। इस बीच मा अम्बिका की मौत हो जाती है और मल्लिका नितान्त अकेली। मल्लिका धीरे-धीरे ग्राम पुरूष विलोम (श्रवण सिंह राणा) पर निर्भर हो जाती है। लेकिन नियति उसे इससे कही ज्यादा आगे तक ,खीच ले जाती है। जहां आज भी स्त्री भोग्या है। इन्ही घटनाओ के परिणाम के रूप में मल्लिका के घर में एक नयी मल्लिका जन्म ले चुकी हैं और उसके अनतर के प्रकोष्ठ में न जाने कितनी कितनी आकृतिया है। उसने अपना नाम खोकर एक विशेषण उपार्जित कर लिया है। उधर कालिदास काश्मीर में विद्रोह के कारण सबकुछ छोड़कर मल्लिका के पास पुन: सभी कुछ अथ से आरम्भ करने के लिये लौट कर आते है। किन्तु उसकी दृष्टि में मल्लिका अब वह मल्लिका नही रही जो उसकी प्रेरणा थी । इसलिये वह मल्लिका को छोड़ चला जाता है। अनुस्वार-अनुनासिक की भूमिका में क्रमश: अंगद निषाद, रवि चौरसिंया, मातुल की भूमिका में दिव्य दृष्टा संजय, निक्षेप की भूमिका में संदीप व दन्तुल की भूमिका में अरविन्द चैरसिया ने शानदार अभिनय किया। सुग्रीव विश्वकर्मा की सेट परिकल्पना व रणजीत कुमार की प्रकाश परिकल्पना सराहनीय रही। इस अवसर पर, अजीत राय, संगम पाण्डेय, हृषिकेश सुलभ , त्रिपुरारी शरण, मुकेश भारद्वाज, आनन्द नारायण सिन्हा( निदेशक-कलिदास अकादमी, उज्जैन), सत्यदेव त्रिपाठी सुभाष चन्द्र कुशवाहा,आलोक मिश्र, राकेश कुमार, स्वस्ति सिंह (अध्यक्ष स्वागत समिति), डा. हेमबाला यादव, डॉ. निर्मल श्रीवास्तव, इत्यादि लोग उपस्थित रहें।
Blogger Comment
Facebook Comment