बोंगरिया-आजमगढ़: तरवां थाना क्षेत्र के रासेपुर बाजार में एतिहासिक आदर्श रामलीला का मुकुट पूजन और नारद मोह प्रसंग से शुभ आरम्भ किया गया। श्रीराम लीला के माध्यम से दर्शको को दिखाया गया कि देवर्षि नारद को अपने आप पर मोह पैदा हो गया कि मैने कामदेव व इन्द्र को जीत लिया उर इसको लेकर वे ब्रह्मदेव व शिव जी के पास गये और सारी बाते बतला दिए । दोनो देवताओं ने कहा की इस बात को विष्णु जी से मत कहना फिर भी नारद ने उनकी बातों को दर किनार करके इन्द्र तथा कामदेव पर विजय हासिल करने की बात भगवान विष्णु के यहां जाकर बतला दिया । तब भगवान विष्णु ने नारद जी के मोह को भंग करने के लिए दो दूतों को नारद जी की तपस्या भंग करने के लिए भेजा। इसके बावजुद वे दोनो लज्जित होकर के वापस इन्द्र के पास चले आये और सारी बाते आकर इन्द्र देव को बता दिया। तब भगवान विष्णु ने माया से श्रीनिवासपुर राज्य का निर्माण करवाया जिसके राजा शील निधि थे। उन्होने अपनी पुत्री विश्वमोहिनी का स्वयंवर रचा जिसमें सभी राज्य के राजा उपस्थित थे। संयोग से नारद जी भी वहां पहुंच गये। राजा ने नारद जी को देखकर उसका स्वागत किया तथा अपने पुत्री के भविष्य के बारे में पूछा । नारद जी उसके हाथ को देखते हुए , सारी बाते राजा शील निधि को बता दी और वे विष्णु धाम के लिए चले गए। वहां पर भगवान विष्णु जी ने नारद जी देखा उसके आने का कारण पुछा तो नारद जी ने स्वयंवर की सारी बाते बतलाते हुए विश्व इच्छा विश्वमोहीनी को पाने हेतु व्यक्त कर दी। विष्णु जी नारद की अहम् वाली स्थिति समझ गए थे। भगवान विष्णु ने नारद जी को बन्दर को रूप दे दिया। अब नारद जी बन्दर के रूप को लेकर कुदते छलांग मारते स्वयम्वर में पहुंच गये उधर विश्वमोहिनी वरमाला लिए स्वयंवर का विचरण करने लगी। उसी समय भगवान विष्णु राजा के वेश में उपस्थित होकर विश्वमोहिनी का वर बन करके अपने धाम के लिए प्रस्थान कर गए। नारद जी वास्तविकता का ज्ञान होने पर अपने स्वरूप को लेकर लज्जित हो गए और वहां से क्रोधित होकर भगवान विष्णु के पास गए और उन्होने उन्हें श्राप दे दिया जैसे मैं स्त्री के वियोग में भटक रहा हॅुं। एक दिन वह समय आयेगा कि तुम भी पत्नी कि लिए दर दर भटकोगे। श्राप देकर नारद जी सोचने लगे मै बिना सोचे विचारे भगवान विष्णु को श्राप दे दिया। इस बात को लेकर वे पुनः भगवान विष्णु के पास पहुच अपना श्राप वापस लेना चाहे लेकिन भगवान विष्णु ने हंसते हुए कहा कि हे देवर्षि मैंने आप के रक्षार्थ ऐसा काम किया है। जिससे आप भक्ति से विचलित न हो। इसके बाद नारद जी भगवान विष्णु के पैरो पर गिर कर क्षमा याचना करने लगे। तब भगवान विष्णु ने कहा कि हे नारद आप कैलाश पर्वत पर जाकर शिवशतनाम का जाप करें। इस तरह से नारद का मोह समाप्त हुआ। इस लीला को देखकर उपस्थित दर्शकों द्वारा जय श्री राम के नारों से पूरा लीला स्थल गुंजायमान कर दिया गया ।
इस अवसर पर अध्यक्ष बबलू दुबे,कोषाध्यक्ष सुनिल जयसवाल,व्यवस्थाक रामरूप चैहान व अवधेश सरोज रामलीला सहयोगी अरूण सिंह सकील अहमद ,राजेन्द्र सरोज, राजेश सिंह,ज्ञान यादव,दिनेश,रामबली ,महेश राम,राममुरत सरोज,आदि लोग उपस्थित रहे ।
Blogger Comment
Facebook Comment