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सन्तानों की रक्षा का व्रत जीवित्पुत्रिका श्रद्धा के साथ मनाया गया, महिलाओं ने रखा निर्जलाव्रत सुनी कथा


आजमगढ़: सन्तानों की मंगल कामना एवं उनकी रक्षा के लिए महिलाओं ने निर्जल व्रत रखा और शुक्रवार को मंदिरों, तालाबों व नदियों के किनारे जिउतिया माता की पूजा कर उनकी व्रत कथा सुनी। जीवित्पुत्रिका व्रत को ज्यतिया एवं जितिया व्रत भी  कहा जाता ह। अपनी संतानों की रक्षा के लिए माताओं द्वारा यह व्रत नेपाल, भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ सहित कमोवेश पूरे देश में जहाँ उत्तर भारतीय परिवार निवास करते हैं यह व्रत किया जाता है। जीवित्पुत्रिका व्रत तीन चरणों में मनाया जाता है प्रथम चरण  नहाय खाय, जिसमें माताएं प्रात: स्नान ध्यान कर साफ वस्त्रों को धारण कर एक बार सात्विक शाकाहारी भजन करती है। जिसमें फल झोर , नोनी का साग, मडुवा की रोटी मरूआ की रोटी आदि प्रमुख है। द्वितीय चरण में खर ज्युतिया होता है। इस दिन माताएं न कुछ खाती है और न कुछ पीती है अर्थात निर्जलाव्रत रखती है और सांयकाल तालाब अथवा नदी तट पर अवस्थित देवालय मंदिर पर लगे पीपल वृक्ष के नीचे सामूहिक तौर से इकटठा होकर पूजन करती हैं और ज्यूतिया माता की व्रतकथा सुनती है। पूजन हेतु माताएं अपनी संतानों की संख्या के अनुरूप सोने चांदी की ज्यूतिया तैयार करवाती है जो पीले और लाल धागे से पिरोकर रखती है और अपने  जीवन पर्यन्त व्रत रखती हैं। जीवन के अन्तिम अवस्था में वह अपनी बड़ी पुत्र वधू को यह व्रत सौंपते हुए ज्यूतिया के साथ  चना, फल फूल एवं शक्कर अथवा चीनी की बनी लेड़ई प्रुख रुप से प्रयोग की जाती है। धूप अगरबत्ती कपूर दीप का भी विशेष रुप से प्रयोग होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत का प्रचलन अति प्राचीन पौराणिक काल से माना जाता है। महाभारत संग्राम के अन्तिम में अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु से दुखित अश्वश्थामा ने पाण्डवों के शिविर में जाकर पाण्डवों के भवन में द्रोपदी की पांचों संतानों की हत्या कर दी। फिर भी  उसका क्रोध शान्त नहीं हुआ तो अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ  में पल रहे परीक्षित को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र  का प्रयोग किया। जानकारी होते ही भगवान्  श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित की रक्षा की और पाण्डवों का वंश आगे बढ़ा। भगवन कृष्ण ने पाण्डवों द्वारा पकड़े गये अश्वात्थामा को द्रोपदी से दण्ड देने को कहा तो उसने ब्राहमण पुत्र होने के नाते क्षमा कर दिया परन्तु श्रीकृष्ण ने उसके मस्तक में अवस्थित उसकी शक्ति मणि निकाल लिया। भगवान्  द्वारा संतान की रक्षा प्रकरण के कारण उत्तर प्रदेश  सहित समस्त भारत खण्ड में जीवित पुत्रिका का व्रत और उपासना, संयम त्याग, प्रेम व श्रद्धा पूर्वक माताओं द्वारा अपनी-अपनी संतानों की रक्षा एवं मंगल कामना के लिए किया जाता है। जीवितपुत्रिका व्रत आश्विन मास की अष्टमी को रखा जाता जो इस वर्ष 23 सितम्बर को ज्यूतिया का व्रत माताओं द्वारा रखा गया जिसका पारन 24 सितम्बर की भोर में 4 बजकर 48 मिनट पर किया जायेगा। माताएं अपनी संतानों की मंगल कामना एवं रक्षा के लिए तीन दिनों तक का यह कठिन व्रत रखती है परन्तु दुखद है की संतानें अपने स्वार्थ में अंधे होकर माता की तपस्या को भूल  जाते हैं और उनके जरूरत के वक्त उनका तिरस्कार करते देखे जाते हैं। 


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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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