आजमगढ़। कुवंर सिंह उद्यान में पतंजलि योग समिति व भारत स्वाभिमान ट्रस्ट इकाई द्वारा शुक्रवार को एक गोष्ठी का आयोजन पतंजलि योग पीठ हरिद्वार से आयी महिला वैद्य वंदना गिरी के सानिध्य में प्रात: 6 बजे से 7 बजे तक सम्पन्न हुआ। जिसमें डा0 वंदना ने बताया कि योग चिकित्सा वास्तव में हमारी जीवन शैली में बदलाव लाती है, हमारे दृष्टिकोंण में परिवर्तन करती है, जिससे हमारी मनोवैज्ञानिक प्रसंनता व अनुभूति स्तर में सुधार आता है। मानसिक स्वास्थ्य ठीक रहता है, यह योग आसन, प्राणायाम व ध्यान केवल शारीरिक स्वास्थ्य ही ठीक नहीं करते बल्कि मानसिक सजगता को भी बढ़ाते हैं जिससे व्यक्ति की ऊजार्वान सकारात्मक व आत्मविश्वासी होता है। योग प्रशिक्षक जय श्री यादव ने बताया कि अपनी प्राकृतिक जीवन शैली पर आधारित चिकित्सा पद्धति योग व आयुर्वेद प्रकृति संसार की सर्वोत्तम चिकित्सा है और आयुर्वेद जीवन का दिव्य चिकित्सा स्रोत है। डा0 वंदना ने कहा कि तात्कालिक राहत के लिए एलोपैथिक जितनी लाभकारी सिद्ध होती है दूरगामी परिणामों की दृष्टि से उतनी ही हानिकारक क्योंकि ये तेज मारक दवाओं के किटाणुओं को ही नहीं मारती अपितु शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को भी बिना एक दूसरे में भेद भाव किये मारकर मनुष्य की जीवन शक्ति को कमजोर बनाती है। भारत स्वाभिमान के तहसील सदर प्रभारी ऋषिकेश शुक्ला ने बताया कि सांस्कृतिक धरोहरों एवं संस्कृति में भारत की आत्मा बसती है। जब हम अपनी संस्कृति, सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से दुनिया को बतायेंगे तो विश्व को इस भ्रम से निकलने का अवसर मिलेगा। श्री महिला चिकित्सक ने कहा कि एसिडिटी से आज कल पाचन सम्बन्धी अनेक विकार पैदा हो रहे हैं। इसकी शिकायत आज कल अधिकांश स्त्री पुरुषों को है क्योंकि खान-पान गलत हो गया है और जीवन शैली में शरीर के अनुकूल नहीं है। अम्ल पित्त में अपच, कब्ज व दस्त की भी समस्या उत्पन्न हो जाती है। अपच को प्राकृतिक व आयुर्वेदिक उपायों से दूर करने का प्रयास करते हैं। जिला संगठन मंत्री शैलेश बरनवाल ने बताया कि हमें जिन्दगी के माध्यम से ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि हम जो खा रहे हैं वह शरीर में ठीक से पच रहा है कि नहीं। इसके लिए पेट में ठीक से आग (जठराग्नि) प्रदीप्त होनी चाहिए, क्योंकि बिना आग के खाना न तो पचता है और ना ही पकता है। इसलिए आयुर्वेद में एक कहावत है कि आपने क्या खाया, कितना खाया वह महत्वपूर्ण नहीं रखता, महत्वपूर्ण है कि जो खाया उसे कितना पचाया, अपनी जीवन शैली को विकसित करें। योग आयुर्वेद व स्वदेशी को अपनाकर ऋषियों का भारत बनाये। योग के साथ सतसंगयोग के साथ सतसंग भजन, भक्ति, स्वदेशी का अभ्यास भी हमें करना है। इसका संकल्प दिलाया गया।
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