जहानागंज (आजमगढ़) : आज देश में सत्ता को हथियाने के लिए गिर रहा राजनीतिक स्तर चिंता का विषय है लेकिन पूर्वांचल की माटी से जन्मा एक ऐसा व्यक्तित्व था जिन्होंने सत्ता को लात मार कर जनता के लिए संघर्षों का रास्ता चुना और जरूरत पड़ने पर देश के प्रधानमंत्री पद की कुर्सी को बिना संकोच मिनटों में त्याग कर पूरे देश में यह संदेश दिया था कि उन्हें कुर्सी से नहीं देश से प्यार है। यहाँ बात हो रही है पूर्व प्रधान मंत्री चन्द्रशेखर जी की। चंद्रशेखर के जीवन का शून्य से शिखर तक संघर्षमय सफर आज के परिवेश में अत्यंत प्रासंगिक है। आज के परिवेश में लोकतंत्र जब तानाशाही की ओर चल रही है तो चंद्रशेखर जी के संघर्षों की याद आती है। चंद्रशेखर को इस जनपद से गहरा लगाव था। जब देश संकट में गुजर रहा था और 1962 में इस जनपद के नेता बाबू विश्राम राय ने सोशलिस्ट पार्टी द्वारा दिए गए राज्यसभा के सदस्य का टिकट यह कहकर लौटा दिया था कि चंद्रशेखर युवा, उर्जावान और संघर्षशील नेता हैं। देश को ऐसे युवाओं की सख्त जरूरत है। अत: टिकट उन्हें दिया जाए। इस प्रस्ताव पर ही पहली बार तीन अप्रैल 1962 को चंद्रशेखर राज्यसभा के सांसद चुने गए और 17 अप्रैल 1962 को शपथ ग्रहण किए। लाल बहादुर शास्त्री के मरने के बाद जब राजनीतिक माहौल गरमाने लगा था तो चंद्रशेखर के नेतृत्व में यंग तुर्क नामक युवा सांसदों की टोली बनी। इंदिरा गांधी की हुकूमत में जब देश में इमरजेंसी लागू हुई और तानाशाही चरम पर पहुंच गई परन्तु कोई भी नेता विरोध करने का साहस नहीं कर सका। ऐसे में चंद्रशेखर ने पद की लालच किए बगैर खुला विरोध किया। इसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ा। परन्तु जेल से आने के बाद 1977 में जनता पार्टी के अध्यक्ष बनें और तानाशाही सरकार के विरुद्ध चट्टान की तरह खड़े हुए चंद्रशेखर ने अन्याय के विरुद्ध किसी के दबाव में कोई समझौता नहीं किया। देश की जनता के दुख-दर्द को करीब से जानने के लिए 1983 में कन्याकुमारी से लेकर राजधानी दिल्ली में बापू की समाधि तक लंबी पद यात्रा की। अमीरों व पूंजीपतियों के विरुद्ध कड़ा विरोध करने के अदम्य साहस के चलते उन्हें युवा तुर्क की उपाधि भी मिली। उनका संघर्षमय जीवन आज के परिवेश में सचमुच प्रेरणास्त्रोत है। अंत में आठ जुलाई 2007 को अलौकिक व्यक्तित्व का अंत हो गया। उनकी स्मृतियों को संजोने के लिए उनके परमशिष्य विधान परिषद सदस्य यशवंत सिंह ने जनपद के रामपुर में श्री चंद्रशेखर स्मारक ट्रस्ट बनाकर उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित कर अपने गुरू के प्रति समर्पण का सराहनीय कार्य किया है। ट्रस्ट परिसर में स्थापित चंद्रशेखर की प्रतिमा युवा पीढ़ी को समाजवाद व राजनीतिक हुनर के आदर्शों की प्रेरणा सदैव प्रदान करती रहेगी। आठ जुलाई को सुबह दस बजे ट्रस्ट परिसर में चंद्रशेखरजी की 9वीं पुण्यतिथि संकल्प दिवस के रूप में मनाई जाएगी।
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