आजमगढ़। बाबा भवरनाथ मंदिर में चल रही संगीतमयी श्रीराम कथा के दूसरे दिन युवा संत प्रेम मूर्ति सर्वेश जी महाराज ने कहा कि मन अत्यंत चंचल होता है मन जितना गतिमान होता है उतना संसार में कोई और चीज़ नहीं होती, मन का पार पाना असंभव है ! हमें अतिथि का यथोचित सत्कार करना चाहिए जितना भी समर्थ हो उसका सम्मान करना चाहिए। उन्होंने कहा कि जहां कहीं भी भगवान की कथा हो अवश्य जाना चाहिए, कभी भी अपने मुख से यह नहीं कहना चाहिए की यह कथा हमने कई बार सुनी है कथा सुनने से मानव का जीवन पावन होता है। उन्होंने कहा कि मानव जीवन में गुरु का बड़ा ही महत्व होता है जितना हो सके हमें गुरू की सेवा करनी चाहिए और उससे ज्ञान अर्जित करना चाहिए बिना गुरु के जीवन अर्थहीन होता है व्यर्थ होता है एक गुरु ही होता है जो मानव को ज्ञान देता है और बिना ज्ञान के मानव पशुओं के समान होता है। गुरु का अर्थ होता है कि वह आपको अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाए। प्रभु को सदा निर्मल मन से ही भजना चाहिए । छल-कपट द्वारा की गई भक्ति ईश्वर को कभी स्वीकार नहीं होती, हमें जो कोई भी मंत्र याद हो उसी को जपना चाहिए, ईश्वर को केवल आपकी निष्ठा और सच्ची भक्ति चाहिए वह आपकी डिग्री योग्यता को नही देखता, उसे तो बस आपकी अटूट श्रद्धा और भक्ति ही दिखती है , अगर कुछ ना हो सके तो उसके सामने आंख बंद कर के सच्चे मन से याद करना चाहिए । सर्वेश जी महाराज ने कहा कि जाहि विधि राखे राम ताहि विधि रहिए। आपको ईश्वर ने जितना दिया है उसी में प्रसन्न रहिए खुश रहिए कभी दूसरों को देखकर इर्ष्या और जलन का भाव मत रखिए, कदापि मन में लालच का भाव नहीं होना चाहिए ईश्वर ने जो आपकी किस्मत में लिखा है वह आपको मिलकर ही रहेगा बस कर्म अच्छे करने चाहिए। उन्होंने कहा कि विश्वास के साथ ईश्वर को भजना चाहिए, दूसरों पर उंगली नहीं उठानी चाहिए क्योंकि जब आप किसी की ओर एक उंगली उठाते हैं तो तीन उंगलियां आपकी ओर इशारा करती है कभी भी दूसरों पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए। सब के साथ प्रेम पूर्वक मिल जुलकर रहना चाहिए, सदा सही मार्ग दिखाना चाहिए और दूसरों के प्रति अच्छी सोच रखनी चाहिए।
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