जिले में पार्टी के विधायकों, मंत्रियों, पदाधिकारियों ने साधी चुप्पी
आजमगढ़ : समाजवादी पार्टी की स्थापना के समय से जुड़े आजमगढ़ के बलराम यादव विधान सभा व विधान परिषद दोनों सदनों में अपनी मौजूदगी का एहसास विपक्षी दलों को बराबर कराते रहे है। साथ ही प्रदेश सरकार में महत्वपूर्ण विभागों में मंत्री पद पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी बखूबी किया हालाँकि स्वास्थ्य मंत्री के कार्यकाल के दौरान उनके ऊपर भ्रट्ठाचार के आरोप भी लगे। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के काफी करीबी माने जाने वाले बलराम यादव ने नाम के अनुरूप समाजवादी पार्टी को हमेशा बल प्रदान करने की कोशिश कि, लेकिन बीते मंगवार को प्रदेश सरकार के मुखिया के द्वारा कैबिनेट मंत्री बलराम यादव की बर्खास्तगी के निर्णय ने सत्ता व शासन में बैठे लोगों व कार्यकर्ताओं को एक कड़ा संदेश देने की कोशिश की गयी है। इस निर्णय से जिले की राजनीति में बारिश के चलते वातावरण में आयी नमी के बावजूद भी गर्माहट ला दी है चर्चाएं चारो ओर है लेकिन सपा की जिला इकाई में खमोशी है। पार्टी पदाधिकारी मामले से अंजान बन एक दुसरे को शक की निगाह से देखने लगे है और खुले में व मोबाइल पर होने वाली चर्चा बंद कमरों में होने लगी है। उल्लेखनीय है कि मंगवार को कौमी एकता दल के सपा में विलय के साथ ही प्रदेश सरकार के मुख्य मंत्री अखिेश यादव ने क़ा कड़ा फैसला लेते हुए प्रदेश सरकार के माध्यमिक शिक्षा मंत्री बराम यादव को बर्खास्त कर दिया। प्रदेश सरकार व पार्टी में बड़ा कद रखने वाले आजमगढ़ के अतरौलिया विधानसभा के सेनपुर गांव निवासी बराम यादव के खिलाफ लिए गए फैसले से सभी हतप्रभ है । 1978 में ब्लॉक प्रमुख के चुनाव से राजनैतिक सफर की शुरूआत करने वाले बलराम यादव ने पहली बार 1980 में विधान सभा का चुनाव दमकिपा से लड़ा किन्तु इस चुनाव में पराजय का सामना करना था और कांग्रेस शम्भू सिंह ने विजय हासिल की थी। 1984 में चैधरी चरण सिंह के लोकदल के टिकट पर बलराम यादव विधायक चुने गये। लोकदल के विघटन के दौरान वह मुायम सिंह के साथलोकदल बहुगुणा में जमे रहे । 1989 में जनता दल के टिकट पर दूसरी बार बलराम यादव को विधान सभा में जाने का अवसर मिला । इसके बाद मुलायम सिंह यादव के साथ समाजवादी पार्टी के गठन में बलराम यादव ने मत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने पार्टी के स्थापना काल के सदस्य बनने का अवसर प्राप्त किया। समाजवादी पार्टी के टिकट पर बलराम यादव ने 1991 व 1993 में साइकिल का झंडा बुंद किया लेकिन साइकिल की रफ़्तार को बसपा के विभूति निषाद ने 1996 में रोक दिया और बलराम यादव को हार का सामना करना पड़ा लेकिन सपा मुखिया ने बलराम यादव को विधान परिषद में भेजने का निर्णय लिया 1998 में एमएलसी चुने गये। 2001 में विधान सभा चुनाव में सपा से दावेदारी पेश करते हुए अतरोलिया विधान सभा क्षेत्र से बराम यादव विधायक चुने गये लेकिन 2007 में उन्हें बसपा के सुरेन्द्र मिश्रा से हार का सामना करना प़ा इसके बाद 2012 चुनाव में उन्होंने अपनी यह सीट अपने बेटे संग्राम यादव को दे दी और अतरौलिया विधान सभा क्षेत्र से संग्राम यादव सपा के टिकट पर विधायक चुने गये लेकिन 2010 में पार्टी ने उन्हें एक बार पुनः एमएलसी बना दिया जिसका कार्यका इस माह जून में पूरा होने पर पार्टी के टिकट पर तीसरी बार उन्हें एमएलसी बनने का अवसर मिला । बलराम यादव को सपा की सरकार के मंत्री मंडल में हमेशा ही उच्च स्थान दिया गया और पहली बार कैबिनेट में पंचायती राज मंत्री का ओहदा दिया गया। बाद में उन्हें स्वास्थ्य, पंचायती राज, कारागार व माध्यमिक शिक्षा जैसे मत्वपूर्ण विभाग दिये गये। एमएलसी बनने के अभी चंद दिन बीते थे और जगह-जगह स्वागत कार्यक्रम चल ही रहा रहा था कि मंगलवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री के फैसले ने पार्टी के लोगों को स्तब्ध कर दिया। इस निर्णय के पीछे कारण चाहे जो भी लेकिन पार्टी के नेताओं, पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं को कहीं न कहीं संदेश है। 19 जून को अतरौलिया क्षेत्र में करोड़ों की लागत से बनने वाले ईको पार्क की आधारशिा विधान सभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय के हाथों रखवाने वाले बलराम यादव के खिलाफ हुयी कार्यवाही से जिले में दो भागों में बट सी गयी सपा इस समय एक जुटता का परिचय देती हुयी नजर आ रही है। जिले के विधायक, मंत्री, पार्टी पदाधिकारी किसी अनोनी की आशंका के चलते चुप्पी साध रखें है और हर कोई पार्टी हाईकमान के अगले फैसले का इंतजार कर रहा है। राजनैतिक जानकारों का मानना है कि बलराम यादव की उच्च पद पर शीघ्र ही वापसी होगी क्योंकि कि पार्टी के द्वारा पिछले दिनों भी इस तर के कई मामले आये और बाद में पार्टी ने अपने फैसले पर पुर्नविचार करते हुए निष्कासित लोगों की वापसी की गयी। राजनैतिक पंडितों का कना है कि जिले का अजब संयोग है एक समय अमर सिंह के पार्टी से निष्कासन पर बलराम यादव के ऊपर कहन न कहीं आरोप लगा था अब जब अमर सिंह की पार्टी में विधिवत वापसी हुयी लेकिन ऐसी दशा में बलराम यादव की मत्री पद से बर्खास्तगी हो गयी। वहीँ लोगो का एक सवाल यह भी जरूर है कि कौमी एकता दल के सपा में विलय को लेकर की गयी इस कार्यवाही कहीं न कहीं एक पक्षीय है यदि पार्टी के शामिल होने का विषय है तो उक्त पार्टी से दूरी भी बनाया जा सकता है।
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