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विशेेष : रमाकांत की इंट्री से चढ़ा जिले का सियासी पारा

पूर्व सांसद को जवाब देने की तैयारी में सपाई
दलों की लड़ाई में सदस्यों की चांदी
आजमगढ़। सियासत में कौन सच बोल रहा और कौन झूठ यह कह पाना तो मुश्किल है लेकिन ब्लाक प्रमुख चुनाव में रमाकांत यादव की इंट्री मात्र से चुनाव दिलचस्प हो गया है। आरोप प्रत्यारोप का यह दौर शायद अब अंतिम दौर तक न थमे। कारण की सपाई भी पूर्व सांसद को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की तैयारी कर रहे है। दूसरी तरफ रमाकांत यादव को भी कम करके नहीं आका जा सकता है। कारण कि समय समय पर उन्होंने साबित किया है कि जिले की राजनीति में उनका कद बड़ा है। पिछला लोकसभा चुनाव इसका बहुत बड़ा प्रमाण है कि मुलायम सिंह को उन्हें पठखनी देने के लिए अपने पूरे कुनबे और मंत्रियों को मैदान में उतारना पड़ा था। इसके बाद भी परिणाम सपा की इच्छा के अनुरूप नहीं रहा था। 
बता दें कि रमाकांत यादव ने राजनीतिक सफर की शुरूआत 1984 में भले ही कांग्रेस जे से की हो और 1985 इसी पार्टी से फूलपुर विधानसभा सीट से विधायक चुने गये हो लेकिन इन्हें सपा मुखिया का काफी करीबी माना जाता रहा है। वर्ष 1993 में सपा के अस्तित्व में आने के बाद वे सपा में शामिल हो गये। इन्होंने कई बार विषम परिस्थितियों में भी सपा का जीत दिलायी। लेकिन पूर्व सांसद पार्टी की गुटबाजी और अंतरकलह के शिकार हुए। परिणाम रहा कि इन्होंने अपना रास्ता अलग कर लिया और वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़े और जीत हासिल की। अब वे भाजपा में हैं। आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2009 में जिले में कमल खिलाने का श्रेय इन्हीं को जाता है। इसी से रमाकांत यादव की राजनीतिक ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सपा मुखिया के खिलाफ मैदान में उतारा। रमाकांत चुनाव भले ही न जीते हो लेकिन उन्होंने सपा को जीत का जश्न मनाने का मौका भी नहीं दिया। कारण कि हार जीत का अंतर मात्र 63 हजार मतों का था जबकि सपाई तीन लाख से जीतने का दावा कर रहे थे। यही नहीं मुलायम सिंह की प्रतिष्ठा से यह चुनाव जोड़कर देखा गया था और उनका पूरा कुनबा, सरकार के मंत्री इस चुनाव के कैंपेन में लगाये गये थे। 
अब एक बार फिर पूर्व सांसद और सपा नेतृत्व आमने सामने दिखाई दे रहा है। यह  अलग बात है कि इस चुनाव में न तो सपा मुखिया मैदान में है और ना ही पूर्व सांसद   लेकिन घमासान पहले जैसे ही दिख रही है। इस बार झगड़ा है ब्लाक प्रमुख की कुर्सी को लेकर जिसके लिये सपा के कई मंत्री व विधायक के रिश्तेदार जूझ रहे है। जिला इकाई ने पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने की घोषणा कर दी है। वहीं पूर्व सांसद और उनके पुत्र  द्वारा भाजपा प्रत्याशी को धमकाने के मामले को उठाकर चुनावी माहौल को गर्म कर दिया गया है। सत्ताधारी दल भी पूर्व सांसद को जवाब देने की तैयारी में जुटा है। वहीं दूसरी तरफ आम आदमी दोनों दलों पर नजर गड़ाये है। लोगों का मानना है पूर्व सांसद की इंट्री ने चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। अब यह चुनाव सत्ताधारी दल के लिए जिला पंचायत की तरह आसान नहीं होगा। 

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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