केवल मुहूर्त आधारित काम पर ही रोक,नित्य की पूजा के साथ करें तर्पण व पिंडदान
पितृपक्ष सर्व शुभकारी, मिलता है पूर्वजों का आशीर्वाद - प० शरद तिवारी
आजमगढ़ : रोज के दिनों में हम तमाम देवों की पूजा करते हैं, लेकिन पितृ देव के लिए भी सनातन धर्म में एक विशेष पखवाड़ा निर्धारित किया गया है, जिसे हम पितृपक्ष कहते हैं। इस पक्ष में हम अपने पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पित करते हैं, लेकिन लोकाचार में कुछ भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने की भी जरूरत है। ऐसे में हम पितरों के प्रति श्रद्धा अर्पण के साथ भ्रांतियां का भी तर्पण करें, तो शायद हमारे पितृ देव और भी प्रसन्न हो सकते हैं। आमतौर पर लोगों में भ्रांति है कि पितृ पक्ष में कोई नया काम अथवा खरीदारी नहीं करनी चाहिए। कुछ लोग तो रोज की पूजा से भी परहेज करते हैं, लेकिन यह गलत है। पितृ पक्ष में कोई भी नया काम किया जा सकता है। यथा मकान, दुकान आदि का निर्माण अथवा भूमि, वाहन आदि की खरीद बेहिचक करनी चाहिए। केवल मुहूर्त आधारित कार्य नहीं करने चाहिए, बाकी काम पर कोई पाबंदी नहीं है। यह कहना है दक्षिण मुखी देवी मंदिर के पुजारी शरद चंद्र तिवारी का। उन्होंने तर्क के साथ कहा कि हम अपने पूर्वजाें द्वारा निर्मित मकान में निवास करते हैं, उनके द्वारा छोड़ी गई कृषि भूमि का अनाज खाते हैं और यहां तक कि उन्हीं की देन है कि हम धरती पर मानव जीवन में निवास कर रहे हैं, तो फिर पितृ पक्ष में किसी तरह के काम से परहेज उचित नहीं है। इसी के साथ स्पष्ट किया कि कुछ कार्य इस पक्ष में नहीं कर सकते। जैसे शादी, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश आदि। ऐसा इसलिए कि यह कार्य मुहूर्त आधारित होते हैं और पितृ पक्ष में इसके लिए मुहूर्त नहीं होता। उन्होंने कहा कि हम अगर पितृ पक्ष में जमीन खरीदते हैं तो हमारे पूर्वजों की आत्मा इसलिए खुश होगी कि हमने उनके द्वारा छोड़ी गई धरोहर में कुछ जोड़ा। हमारी जरूरत वाहन की है और हम जेब में पैसा होते हुए भी पैदल सफर कर रहे हैं, कपड़े फट गए और हम नया नहीं खरीद रहे, तो उनकी आत्मा हमारे कष्ट को देखकर दुखी होगी। यानी हमारी खुशी को देखकर ही पूर्वजाें की आत्मा को खुशी मिलेगी। इसलिए मन में किसी प्रकार की गलतफहमी नहीं रखनी चाहिए। शरद तिवारी ने तर्क दिया कि अगर पूर्वजों को याद करने का पर्व पितृ पक्ष अशुभ है और इस पक्ष में कुछ भी शुभ करना गलत है, तो हम शादी के मंडप में अपने पितरों को क्यों आमंत्रित करते हैं। यह तो पूर्वजों को याद करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का पर्व है और शास्त्रों में इसे निर्धारित किया गया है। पितृ पक्ष हमें अपने कर्तव्य बोध का भी अहसास कराता है। इसलिए पितरों को श्रद्धा के अर्पण संग भ्रांतियों का तर्पण भी करें, तो ज्यादा फलदाई रहेगा।
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