पार्टी के अस्तित्व आने के बाद से यादव ही रहें है अध्यक्ष
पिछली बार 20 लोगों ने किए थे आवेदन,इस बार गैर यादव पर लग सकता है दांव
आजमगढ़ : उपचुनाव में गढ़ समझे जाने वाले आजमगढ़ और रामपुर में भगवा फहरने के बाद सपा मुखिया अखिलेश यादव ने प्रदेश अध्यक्ष को छोड़ सभी तरह की सांगठनिक इकाइयों को भंग कर दिया। इसके साथ ही आजमगढ़ में सालों से पार्टी का झंडा-डंडा ढोने वाले कार्यकर्ताओं के मन में जिलाध्यक्ष बनने की इच्छा बलवती होने लगी है। इसमें बड़े कद-काठी के लोग भविष्य की राजनीति के दृष्टिगत अंदरखाने में जोड़तोड़ शुरू कर दिए हैं। चूंकि एक निर्धारित प्रक्रिया के बाद अंतिम निर्णय सपा मुखिया को ही लेना होता है, इसलिए पिछली बार करीब 20 लोग सीधे अपना आवेदन ऊपर कर आए थे। हालांकि, कशमकश इतना रहा कि आजमगढ़ का सांसद रहते हुए भी अखिलेश यादव महीनों बाद हवलदार के नाम पर मुहर लगाए, जब जिला पंचायत चुनाव का बिगुल बजा था। अबकी धर्मेंद्र यादव के हारने के बाद संगठन में गैर यादव चेहरे पर भी सपा दांव लगा सकती है। विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत ने कार्यकारी जिलाध्यक्ष हवलदार यादव की उम्मीदें बढ़ाईं थीं, जो उपचुनाव के बाद निश्चित रूप से कम हुई होगी। इसी बीच सांगठनिक इकाइयों के भंग किए जाने से पिछली बार के 20 चेहरों के इतर भी कई नाम सामने आने लगे हैं। संगठन से जुड़े लाेगों के मुताबिक पिछली बार शिवमूरत यादव, हरिश्चंद्र यादव, अशोक यादव, शैलेंद्र यादव, पप्पू यादव के अलावा लालमुनी राजभर (अब दिवंगत), जगदीश राम ने अपने नाम आगे किए थे। अबकी नए चेहरों की बात करें तो वर्ष 2009 से युवजन सभा के अध्यक्ष शिशुपाल सिंह, रामदुलार राजभर का नाम भी सामने आ रहा है। शिशुपाल सिंह ने बताया कि 22 साल से पार्टी के लिए काम कर रहा हूं, मैं आवेदन करूंगा। पूर्व मंत्री रामदुलार राजभर का कहना है कि जिम्मेदारी मिली, तो पीछे नहीं हटूंगा। हालांकि, 1992-93 में सपा के अस्तित्व में आने के बाद से जिले में रामजनम यादव, रामदर्शन यादव (अब भाजपा में), अखिलेश यादव (मुबारकपुर विधायक) और हवलदार यादव ही जिलाध्यक्ष रहे हैं। महामंत्री की कुर्सी जरूर ब्राह्मणों के खाते में जाती रही है। अबकी गैर यादव चेहरों के आगे आने से सपा मुखिया के पास विकल्प भी होगा। वर्ष 2024 में होने जा रहे संसदीय चुनाव से पूर्व निकाय चुनाव होना है, जिसमें पार्टी समीकरण साधने के लिए गैर यादव चेहरे पर भी दांव लगा सकती है।
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