आजमगढ़ : श्रीरामलीला समिति पुरानी कोतवाली के तत्वावधान में चल रही भगवान श्रीराम लीलाओं के मंचन के तीसरे दिन बुधवार की रात कलाकारों ने श्रीराम जन्म और विश्वामिश्र आगमन का मंचन किया। राम जन्म पर महिलाओं ने सोहर गाया तो पूरी अयोध्या गूंज उठी। दरभंगा बिहार से आए कलाकारों ने श्रीराम-लक्ष्मण जन्म, विश्वामित्र आगमन की लीलाओं का मंचन किया। भगवान श्रीराम के जन्म लेते ही जय श्रीराम के जयकारे लगने लगे। मनमोहक मंचन देख श्रद्धालु भाव विभोर हो उठे।अयोध्या के राजा दशरथ की उम्र बढ़ती जा रही थी। उनकी तीनों रानियों कौशिल्या, कैकेयी व सुमित्रा को कोई संतान नहीं हुए। ऐसे में उन्हें अपने राज-काज को चलाने की चिता होने लगी। यह बात राजा दशरथ ने अपने कुलगुरु वशिष्ठ से जाकर कही। वशिष्ठ ने राजा दशरथ को श्रृंगी मुनि के पास जाकर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने की सलाह दी। तब राजा दशरथ ने श्रृंगी मुनि के पास जाकर पुत्रेष्ठि यज्ञ कराया। उसके बाद अग्नि देव प्रकट होते हैं। अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर का कटोरा दिया। राजा दशरथ ने उस खीर को अपने तीनों रानियों को खाने के लिए दिया। कुछ दिनों बाद तीनों रानियों से चार पुत्र पैदा हुए। राजा दशरथ के यहां पुत्र जन्म की खबर सुनकर पूरी अयोध्या झूमने लगी। राजा दशरथ खुश होकर अपने प्रजा में उपहार बांटे। वहीं राम जन्म की लीला देख सभी लीला प्रेमी भी झूमने लगे। राजा दशरथ ने अपने चारों पुत्रों का नामकरण वशिष्ठ मुनि से कराया। कौशिल्या के पुत्र का नाम राम, कैकेयी के पुत्र का नाम भरत व सुमित्रा के पुत्रों का नाम लक्ष्मण व शत्रुध्न रखा गया।उधर धीरे-धीरे चारों पुत्र बड़े होने लगे। उनकी शिक्षा-दीक्षा वशिष्ठ की देखरेख में होने लगी। तभी एक दिन विश्वामित्र का आगमन अयोध्या में होता है। राजा दशरथ से यज्ञ की रक्षा के लिए राम व लक्ष्मण को अपने साथ ले जाने के लिए कहते हैं, लेकिन राजा दशरथ उन्हें साथ ले जाने से साफ इंकार कर देते हैं। तभी विश्वामित्र अपने तप से अयोध्या को श्राप से भस्म करने की चेतावनी देते हैं। हालांकि वशिष्ठ जी की सलाह पर दशरथ पुत्र मोह त्याग कर राजा के कर्तव्य का पालन करते हैं। अंत में संयोजक विभाष सिन्हा ने सभी का आभार प्रकट किया। बताया कि पुरानी कोतवाली में चल रही श्रीरामलीला मंचन में आठ अक्तूबर की रात आठ बजे से सीता जन्म, नगर दर्शन, फुलवारी और मीना बाजार का मंचन किया जाएगा।
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