झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में वीरांगना थीं,उनके दुश्मन भी उनकी बहादुरी के कायल थे- विनीत सिंह रिशु
आजमगढ़: अदम्य साहस, शौर्य और देशभक्ति की प्रतिमूर्ति झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि के अवसर पर आज सारथी सेवा संस्थान के सभी पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने मिलकर कुँवर सिंह उद्यान में अमन रावत के नेतृत्व में उनकी पुण्यथिति मनाई। विनीत सिंह रिशु ने कहा कि रानी लक्ष्मीबाई ने कम उम्र में ही ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से संग्राम किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की, लेकिन जीते-जी अंग्रेजों को अपनी झांसी पर कब्जा नहीं करने दिया। उनकी बहादुरी के किस्से और ज्यादा मशहूर इसलिए हो जाते हैं, क्योंकि हम ही नहीं उनके दुश्मन भी उनकी बहादुरी के कायल थे। रानी लक्ष्मीबाई को बचपन मे उन्हें मणिकर्णिका नाम दिया गया और घर में मनु कहकर बुलाया गया। वह 4 बरस की थीं, जब मां गुज़र गईं. पिता मोरोपंत तांबे बिठूर ज़िले के पेशवा के यहां काम करते थे और पेशवा ने उन्हें अपनी बेटी की तरह पाला। प्यार से नाम दिया छबीली। बचपन में ही मनु नाना साहेब और तात्या टोपे जैसे साथियों के साथ जंग के हुनर सीखने लगी थीं। आलोक व ऋषभ राय ने कहा कि वीरांगना नाम सुनते ही हमारे मनोमस्तिष्क में रानी लक्ष्मीबाई की छवि उभरने लगती है। भारतीय वसुंधरा को अपने वीरोचित भाव से गौरवान्वित करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई सच्चे अर्थों में वीरांगना ही थीं। वे भारतीय महिलाओं के समक्ष अपने जीवन काल में ही ऐसा आदर्श स्थापित करके विदा हुईं, जिससे हर कोई प्रेरणा ले सकता है। कहा जाता है कि सच्चे वीर को कोई भी प्रलोभन अपने कर्तव्य से विमुख नहीं कर सकता। ऐसा ही रानी लक्ष्मीबाई का जीवन था। इस अवसर पर विनीत सिंह रिशु, आलोक सिंह, अमन रावत, ऋषभ राय, अभिषेक कुमार, नवीन रस्तौगी आदि लोग मौजूद थे।
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