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कभी भुलाये नहीं जा सकेंगे विकास पुरूष के रूप में पहचान रखने वाले गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव

12 जून शुक्रवार को मनाई जाएगी सर्वलोकप्रिय जन नेता गिरीश चंद्र की 10 वीं पुण्यतिथि 

आजमगढ़ : जिले के साथ-साथ पूर्वांचलवासियों के बीच विकास पुरूष के रूप में पहचान रखने वाले गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव कभी भुलाये नहीं जा सकेंगे। बात चाहे शहर के विकास की होगी, शिक्षा, संस्कृति के विकास होगी या फिर साहित्य को प्रश्रय देने की। निश्चित रूप से स्व. गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव का नाम जुबान पर आ ही जायेगा। अपनी सहृदयता के कारण ही उन्होंने जीवनपर्यन्त लोगों के दिलों पर राज किया। कहने को तो वह जीवन भर नगर की राजनीति किये मगर शहर के बाहर ही नहीं जिले के बाहर भी कार्यो की वजह से उनकी अलग ही लोकप्रियता थी। व्यवहार कुशलता ऐसी कि वह जिससे एक बार मिल लिये वह उनका होकर ही रह गया। बार-बार वह उनसे मिलने की हसरत पाले रहा। अपने इसी व्यक्तित्व के कारण वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी नगर पालिका अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे। अपने व्यक्तित्व की वजह से ही वह अपनी दसवीं पुण्यतिथि पर श्रद्धा पूवर्क याद किये जायेंगे। पुण्यतिथि के अवसर पर शुक्रवार को सुबह नगर पालिका परिसर में कोरोना के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए उनके चित्र पर माल्यार्पण किया जायेगा तथा श्रद्धांजलि दी जायेगी। उसी दिन शाम पांच बजे शहर के कुर्मी टोला स्थित उनके आवास पर सोसल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया है। साधारण परिवार में 25 अगस्त 1954 में पैदा हुए गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव का अभावों के साथ चोली दामन का साथ रहा। यही कारण था कि वह गरीबों का दर्द समझते थे, क्योंकि यह दंश उन्होंने खुद भी झेला था। कोई गरीब व्यक्ति अगर अपनी लड़की की शादी का निमंत्रण उन्हें भेज दिया तो शादी के दिन उसके दरवाजे पर पालिका का टैंकर का पानी लिये पालिका का कर्मचारी पहुंच जाता था, साथ ही सफाईकर्मी झाडू लगाकर चूना छिडकाव कर देते थे। वह खुद शाम को बारात आने से पहले बारात की अगवानी के लिये पहुंच जाते थे। शिक्षा-दीक्षा बहुत ज्यादा न होने के बावजूद समाज के लिये कुछ करने का जज्बा उनके अन्दर कूट-कूट कर भरा हुआ था। यही जज्बा उनको देश के कद्दावर राजनेता चन्द्रजीत यादव के निकट ले गया। चन्द्रजीत जी की पारखी नजरें उन्हें पहचान गयी और उन्होंने गिरीश जी को अपना राजनैतिक शिष्य बना लिया। अपनी समर्पण भावना के कारण गिरीश जी ने चन्द्रजीत जी के परिवार में ऐसी जगह बनायी कि वह परिवार के सदस्य की तरह बेरोक-टोक किचन तक पहुंच जाते। राजनैतिक जीवन शुरू करने के बाद वर्ष 1984 उनकी शादी हुई। विवाह के बाद भी उनके सामाजिक जीवन में साथ देने के लिये पत्नी के रूप में एक बेहतर सहयोगी मिला। वर्ष 1989 मे ंवह शेर के निशान से पहली बार सभासद चुने गये। एक बार वह नगर पालिका में प्रवेश किये तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1995-96 में वह घड़ी निशान से दुबारा सभासद चुने गये। दो बार सभासद रहते हुये उन्होंने अपने जुझारू तेवर के बूते पूरे नगर की जनता के दिल में अपनी जगह बना ली। यही वजह रही कि वर्ष 2000 की नगर निकाय चुनाव में तत्कालीन पालिकाध्यक्ष माला द्विवेदी को हराकर पालिकाध्यक्ष पद पर रिकार्ड मतों से जीत हासिल किये। उनके जनाधार का ग्राफ लगातार बढ़ता ही चला गया। यही वजह रही कि वर्ष 2006 में पालिकाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस ने उनको उम्मीदवारी नहीं दी। ऐसे में वह निर्दल प्रत्याशी के रूप में चूल्हा निशान से चुनाव लड़े और ऐतिहासिक जीत हासिल की। निर्दल चुनाव जीतने के बाद वह बसपा में शामिल हो गये। अध्यक्ष के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विकास की इतनी लम्बी लकीर खींच दी कि हर कोई उनके आगे बौना नजर आने लगा और नगरवासियों ने खुद उनको विकास पुरूष का नाम दे दिया। हर जगह विकास कार्यो के उनके नाम के पत्थर लगे नजर आये। तत्कालीन शिक्षक विधायक पंचानन राय उनके विकास कार्यो को देखकर काफी प्रभावित हुए। यही कारण रहा कि वह उनको विकास में हर संभव सहयोग देने लगे और उनको बेटे की तरह मानने लगे। उनके विकास कार्यो को ही देखकर नगर के बाहर के लोग चाहते थे कि गिरीश उनका भी प्रतिनिधित्व करें। आजमगढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र के गांवों के लोग उनसे मिलकर यह आग्रह करने लगे कि वह विधानसभा चुनाव में उतरे और उनका प्रतिनिधित्व करें। यह अलग बात है कि लोगों की यह इच्छा पूरी नहीं हुई और निष्ठुर काल ने इस विकास पुरूष को 12 जून 2010 को जनता से छीन लिया। उनके निधन के बाद पालिकाध्यक्ष का उपचुनाव हुआ तो उनके कार्यो की वजह से ही उनकी पत्नी शीला श्रीवास्तव को अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत मिली। इसके बाद दोबारा 2017 के पालिकाध्यक्ष के चुनाव में एक बार फिर उनके कार्यो को याद करते हुये उनकी पत्नी को विजयी बनाया। स्व. गिरीश जी को जनता से बिछडे़ दस साल हो गये मगर वह लोगों के दिलों में आज भी जिन्दा है और शायद कभी भुलाये भी नहीं जा सकेंगे। आमजन के बीच आज भी यह कहा जाता है कि स्व0 गिरीश चन्द श्रीवास्तव की भरपाई शायद कभी नहीं हो सकती तथा आने वाले समय में भी उनका विकल्प बनता कोई भी अभी तक दिखलायी नहीं पड़ रहा है।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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