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पेशकार की मिली भगत से हुआ फर्जीवाड़ा उजागर, एफआईआर व विभागीय कार्यवाही का निर्देश

मंडलायुक्त ने कराइ जांच ,तहसील बूढ़नपुर के ग्राम रतुआपार का है मामला, तत्कालीन पेशकार वर्तमान में सदर तहसील के प्रशासनिक अधिकारी हैं

आज़मगढ़ 20 मई -- मण्डलायुक्त कनक त्रिपाठी के निर्देश पर हुई जाॅंच में जनपद आज़मगढ़ के तहसील बूढ़नपुर अन्तर्गत ग्राम रतुआपार में नवीन परती खाते की भूमि को कूटरचित पत्रावली के आधार पर अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय के न्यायालय में कार्यरत तत्कालीन पेशकार द्वारा गांव के अन्य व्यक्ति को अनुचित लाभ पहुंचाने का दोषी पाये जाने पर सम्बन्धित कर्मचारी के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के साथ ही उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही भी किये जाने का निर्देश दिया है। ज्ञातव्य हो कि श्रीराम पुत्र दलसिंगार सहित कुल नौ लोगों ने मण्डलायुक्त श्रीमती त्रिपाठी को इस आशय का प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया था कि उनके गांव स्थित गाटा संख्या 715 जो नवीन परती खाते की भूमि थी उसका 1997 में पट्टा उन लोगों को कर दिया गया है, जिस पर गांव के ही एक अन्य व्यक्ति मुन्नर ने उक्त गाटा के साथ ही गाटा संख्या 718 के बावत एक फर्जी पत्रावली तैयार कर मुकदमा संस्थित दिखाकर ग्रामसभा के विरुद्ध 4 अप्रैल 2012 को आदेश प्राप्त कर लिया है। यह भी बताया गया कि उक्त वाद में मुन्नर ने अपने पूर्वजों की काश्तकारी श्रेणी-8 ए जमींदारी टूटने के बाद सीरदारी व भूमिधरी बताया गया है तथा फर्जी आदेश व आधार बनाते हुए किया गया पट्टा निरस्त कर दिया गया है। मण्डलायुक्त श्रीमती त्रिपाठी ने शिकायतकर्तागण द्वारा उपलब्ध कराये गये साक्ष्यों के अवलोकन के उपरान्त मामला संदिग्ध पाये जाने पर पूरे मामले की जाॅंच की जिम्मेदारी अपर आयुक्त (प्रशासन) अनिल कुमार मिश्र को सौंपी। अपर आयुक्त श्री मिश्र ने अपनी आख्या में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय के न्यायालय में गाटा संख्या 715 व 718 के बाबत वाद संख्या 162 धारा 229बी जमींदारी विनाश अधिनियम की पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट हुआ कि वाद परगना अधिकारी बूढ़नपुर के न्यायालय में 1995 में दाखिल हुआ है परन्तु वहाॅं के मिसिलबन्द रजिस्टर में यह वाद कहीं अंकित नहीं है। इसी प्रकार पत्रावली अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय के न्यायालय में स्थानान्तरित किये जाने सम्बन्धी उपजिलाधिकारी बूढ़नपुर का आदेश चस्पा है, परन्तु जाॅंच में यह आदेश भी फर्जी पाया गया। अपर आयुक्त श्री मिश्र ने अपनी आख्या में यह भी उल्लेख किया है कि 1995 से 2012 तक उक्त पत्रावली कहाॅं रही है और उस पर क्या कार्यवाही होती रही यह पत्रावली के अवलोकन से स्पष्ट नहीं हो पाया। उन्होंने कहा कि जाॅंच के दौरान इस प्रकार के अनेकों फर्जी अंकन पाये गये जिससे प्रमाणित होता है कि यह कूटरचित पत्रावली अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय आज़मगढ़ के न्यायालय में कार्यरत कर्मचारियों की मिली भगत से मुन्नर आदि को अनुचित लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से दर्ज करा दी गयी तथा फर्जी पत्रावली में एकपक्षीय आदेश पारित कर दिया गया, जो बाद में अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय ने अपने आदेश द्वारा निरस्त कर दिया है। इसी प्रकार उक्त आराजी के सम्बन्ध में चकबन्दी अधिकारी फूलपुर के न्यायालय में पारित आदेश भी न तो अभिलेखागार में पाया गया और न ही मुन्नर आदि द्वारा उपलब्ध कराया गया। इस प्रकार अपर आयुक्त श्री मिश्र ने अपने आख्या मंे स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि तत्समय वर्ष 2012 में अतिरिक्त अधिकारी द्वितीय के न्यायालय में कार्यरत रीडर नन्हे लाल श्रीवास्तव जो अब तहसील सदर आज़मगढ़ में प्रशासनिक अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं, ने मिली भगत करके फर्जी पत्रावली को बिना किसी आदेश के न्यायालय में दर्ज कराकर अविधिक आदेश ग्रामसभा के विरुद्ध पारित किया गया है, जिससे ग्रामसभा की अपूर्णीय क्षति हुई है। उक्त कृत्य के लिए उन्होंने श्री श्रीवास्तव के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराते हुए उनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही संस्थित किये जाने की संस्तुति की है। मण्डलायुक्त कनक त्रिपाठी ने प्रकरण में अपर आयुक्त श्री मिश्र द्वारा की गयी स्पष्ट संस्तुति के दृष्टिगत तत्कालीन रीडर श्री नन्हे लाल श्रीवास्तव जो वर्तमान में तहसील सदर में प्रशासनिक अधिकारी है के विरुद्ध कार्यवाही हेतु जिलाधिकारी आज़मगढ़ को निर्देश दिया है।

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