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आजमगढ़: रमाकांत यादव के समाजवादी पार्टी में जाने से बदल जायेगा जिले का राजनीतिक समीकरण

शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में जुटे बाहुबली और उनके समर्थक, 06 अक्टूबर को लखनऊ में ज्वाइन करेंगे सपा 

जिले में कांग्रेस व भाजपा के अलावा समाजवादी पार्टी की अंदरूनी राजनीति भी होगी प्रभावित 

आजमगढ़: ये कहना गलत नहीं होगा कि चार बार लोकसभा के सदस्य रहे बाहुबली रमाकांत यादव एक बार फिर प्रदेश को अपनी ताकत दिखाने में कसर नही छोड़ रहे हैं। सालों तक भाजपा फिर कुछ दिन कांग्रेस में रहने वाले इस बाहुबली के सपा में आने का इंतजार पार्टी बहुत पहले से कर रही थी। लेकिन अब वो दिन करीब आ गया है जब 6 अक्टूबर को रमाकांत साइकिल की सवारी करने वाले हैं। बाहुबली रमाकांत यादव के सपा में शामिल होते ही जिले के कई नेताओं की मुश्किल बढ़नी तय है। कारण कि हाशिये पर पहुंच चुके रमाकांत एक बार फिर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश करेंगे। वहीं बीजेपी और कांग्रेस को बाहुबली का विकल्प खोजना होगा। कारण कि वर्ष 1984 के बाद जिले में कांग्रेस का खाता नहीं खुला है तो वर्ष 2009 में रमाकांत के ही दम पर ही बीजेपी ने भी यहां खाता खोला था।
वर्ष 1984 में कांग्रेस जे से राजनीतिक कैरियर कैरियर की शुरूआत करने वाले रमाकांत यादव कभी एक दल में नहीं टिक सके। दल बदल में माहिर रमाकांत यादव जनता दल, सपा, बसपा, कांग्रेस, बीजेपी में रह चुके हैं। यहीं नहीं वह अपनी पत्नी रंजना यादव को जद यू से भी चुनाव लड़े चुके हैं। रमाकांत के बारे में कहा जाता है कि वे जहां भी गए राजनीतिक लाभ के लिए गुटबाजी को बढ़ावा दिया। रमाकांत यादव सर्वाधिक समय समाजवादी पार्टी में रहे। सपा में उन्हें मुलायम सिंह यादव को बेहद करीबी माना जाता है। आजमगढ़ व आसपास के जिलों में अपना वर्चस्व कायम करने क लिए रमाकांत यादव अमर सिंह और आजम खान तक से पंगा लेने में नहीं चुके थे।  गेस्ट हाउस कांड में मुलायम का साथ देने के कारण एक के बाद एक चुनाव में न केवल उनको टिकट मिला बल्कि कद भी बढ़ता गया था ।
लेकिन अमर सिंह से उनका पंगा भारी पड़ा। बाद में बलराम यादव, दुर्गा यादव जैसे जिले के नेताओं को भी अपना विरोधी बना लिया। गुटबंदी बढ़ी तो अमर सिंह भारी पड़े और 2003 में रमाकांत यादव को सपा से बाहर जाना पड़ा। अब 16 साल बाद एक बार फिर रमाकांत यादव पार्टी में वापसी कर रहे हैं। रमाकांत छह अक्टूबर को दल बल के साथ पार्टी ज्वाइन करेंगे। रमाकांत की वापसी से जिले के राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल जाएंगे। मुश्किल और चुनौतियां सिर्फ विपक्ष की नहीं बढ़नी है बल्कि जिले में सपा की राह भी मुश्किल हो जाएगी।
दो गुटों में बंटी सपा अब तीन गुटों में बंट जाएगी। माना जा रहा है कि जैसे जिले में सपा के दो पूर्व मंत्रियों के गुट आपस में प्रतिस्पर्धा रखते थे अब एक नाम और रमाकांत का बढ़ जाएगा। रहा सवाल बीजेपी का तो रमाकांत के जाने के बाद पार्टी में एक बड़ी जगह खाली हो चुकी है। रमाकांत के दम पर ही बीजेपी 2009 में पहली बार लोकसभा सीट जीतने में सफल हुई थी। अब रमाकांत यादव विरोध में खड़े होंगे तो पार्टी को एक मजबूत विकल्प तलाशना होगा।
कांग्रेस की बात करें तो वह रमाकांत के जरिए पिछड़ों को अपने पक्ष में करने का सपना देख रही थी लेकिन रमाकांत ने पार्टी को जिस तरह दगा दिया है अब उसे भी एक मजबूत पिछड़े नेता की तलाश पूर्वांचल में करनी होगी। बसपा की चुनौती इसलिए बढ़ जाएगी कि रमाकांत की कुछ प्रतिशत दलितों में पैठ है तो कई जगह उनकी बाहुबली वाली छवि भी काम आती है।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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