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आजमगढ़ : सपा समर्थक जरूर पढ़ें ! मुलायम सिंह और अखिलेश के चुनाव में अंतर ...,

समाजवादियों के गढ़ में गुमराह है समाजवाद ! सवर्ण समाज को किया दरकिनार 

मुलायम के चुनाव में मिला था सर्वसमाज का समर्थन , इस बार आंकड़े जोड़ कर सपाई दे रहे लाठी, हाथी, 786 का नारा


रिपोर्ट  : संदीप अस्थाना———

आजमगढ़ हमेशा ही समाजवादियों के गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है। इसके विपरीत यह कहना गलत नहीं होगा कि लम्बे समय से अपने गढ़ में ही समाजवाद गुमराह है। अब जबकि बसपा व रालोद के साथ गठबंधन करके समाजवादी पार्टी इस बार के लोकसभा चुनाव में जोर आजमाइश कर रही है और आधुनिक समाजवादी विचारधारा के अग्रदूत अखिलेश यादव खुद समाजवादियों के इस गढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं तो यह गुमराहियत और भी बढ़ गयी है। यह गुमराहियत बढ़ने की वजह अति उत्साह है। जोर-शोर से लाठी, हाथी, 786 का नारा दिया जा रहा है। समाजवादी पार्टी के नेता खुलकर समाज में यह बयान दे रहे हैं कि इस महागठबंधन के बाद सिर्फ तीन जातियां अहीर, मायावती का खास दलित व मुस्लिम ही यूपी की सभी सीटें भारी मतों के अंतर से जीत लेने में सक्षम है। यह भी कह रहे कि आजमगढ़ में तो इन तीन जातियों की इतनी अधिक संख्या है कि बिना किसी और का वोट लिये अखिलेश यादव पांच लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीत लेंगे। कुछ लोगों ने यह दावा किया कि इस तरह का बयान इस जिले के रहने वाले पार्टी के प्रदेश स्तर के कुछ कद्दावर नेता सपा के केन्द्रीय चुनाव कार्यालय पर बैठकर दे रहे हैं। उनके इन बयानों की वजह से ही पार्टी के छोटे यादव नेता भी घूम-घूमकर यही बयान दिये जा रहे हैं। समाजवादियों के इन बयानों की वजह से अन्य जातियों के जो लोग अखिलेश यादव को बड़ा नेता मानकर उन्हें वोट देने वाले थे, वह बिदक गये हैं। उनका कहना है कि वह सपा को वोट देकर करेंगे ही क्या, जब सपा के लोग उनके वोटों की गिनती ही नहीं करेंगे।
समाजवादियों के गुमराह होने की क्या है वजह—————————-
यह प्रश्न तमाम लोगों को कौंध रहा होगा कि समाजवादियों के गुमराह होने की क्या वजह है। आजमगढ़ के यदुवंशी समाजवादी नेता तो खुलकर वजह बता रहे हैं। वह कह रहे हैं कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ संसदीय सीट पर 340306 मत पाकर सपा के मुलायम सिंह यादव विजयी हुए थे। इसकेे साथ ही बसपा के शाहआलम उर्फ गुड्डू जमाली 266528 मत पाये थे। इन दोनों वोटों को जोड़ दिया जाय तो कुल 606834 मत होते हैं। इन सपाइयों का यह भी कहना है कि उस चुनाव में उपविजेता रहेे भाजपा के बाहुबली रमाकान्त यादव को 277102 मत ही मिल सके थे। ऐसे में देखा जाय तो सपा व बसपा के संयुक्त वोटों के मुकाबले भाजपा का 329732 मत कम है। इतने वोटों के अंतर से तो आंकड़े कह रहे हैं कि अखिलेश यादव की जीत तय है। यह भी तर्क दे रहे कि रमाकान्त कुछ यादवों का भी वोट पाये थे। इस बार वह चुनाव मैदान में नहीं हैं। ऐसे में वह वोट भी सपा को ही मिलेगा। सब मिलाकर 4 से 5 लाख के मतों के अंतर से अखिलेश चुनाव जीत जायेंगे। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि बसपा के साथ गठबंधन की वजह से इस जिले में समाजवादी पार्टी गुमराह हुई है।
सच से रूबरू क्यों नहीं हो रहे समाजवादी————————-
समाजवादी पार्टी के लोग आखिर सच से रूबरू क्यों नहीं हो पा रहे हैं। उन्हें यह जानना चाहिए कि मुलायम सिंह यादव जब चुनाव लड़े थे, तब बसपा के साथ सपा का गठबंधन नहीं था। यही वजह थी कि उस चुनाव में सपा के लोग गलतफहमी में नहीं थे और इस तरह की बयानबाजी नहीं कर रहे थे। ऐसे में सर्वसमाज ने बड़ा नेता जानकर मुलायम सिंह को वोट दिया। सवर्ण समाज बाहुबली रमाकान्त को कभी पसंद नहीं किया। इस वजह से सवर्ण समाज के लोग झूमकर मुलायम के पक्ष में वोटिंग किये थे। इस बार ऐसा नहीं है। जहां समाजवादियों के अनर्गल बयानों से सवर्ण के साथ ही अति पिछड़ा व अति दलित नाराज है, वहीं भाजपा प्रत्याशी के रूप में उसे दिनेश लाल यादव निरहुआ जैसा निर्विवाद चेहरा मिल गया है। समाजवादियों को यह भी जानना चाहिए कि पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जब यहां से चुनाव लड़ने के लिए आये थे तो विरोधी दलों के तमाम नेता अपने दलो को छोड़कर मुलायम के साथ चले आये थे। बाहुबली को मात देने के लिए इन विरोधियों ने तब साइकिल में खूब हवा भरी थी। आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र के अधीन पांचों विधानसभा क्षेत्रों में सक्रिय यह विरोधी दलों से सपा में आये नेता 2014 के चुनाव में साइकिल लेकर जनता के बीच दौड़ पड़े थे। बसपा और भाजपा में रहे इन नेताओं ने मुलायम के लिए लोकसभा के रण में जमकर हल्ला बोला था। स्थानीय नेता और कार्यकर्ता भी नेता जी के लिए दिन-रात एक किए हुए थे। ससुर को जिताने के लिए सीएम रहे अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव को भी यहां आना पड़ा था। उन्होंने तब मुंह दिखाई के बदले सपा के लिए वोट मांगे। नेताजी के लिए अखिलेश मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी यहां डेरा डाला था। शिवपाल यादव भी अपने पांव यहां अंगद की तरह जमाये हुए थे। योगी सरकार में मंत्री ओमप्रकाश राजभर भी तब नेताजी के लिए अपनी छड़ी घुमाते नजर आए थे। सपा के पूर्व जिलाध्यक्ष रामदर्शन यादव 2012 में विधानसभा का टिकट न मिलने से नाराज होकर भाजपा में चले गये थे और कमल निशान से मुबारकपुर से चुनाव लड़े थे। उनके मैदान में आने से ही 2012 के विधानसभा चुनाव में मुबारकपुर में साइकिल पंचर हो गई थी। जबकि जिले की शेष 9 सीटों पर सपा जीतने में कामयाब हो गयी थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह के आ जाने के कारण रामदर्शन यादव मेहनगर के पूर्व भाजपा विधायक कल्पनाथ पासवान को लेकर हल्ला बोलने वापस सपा में चले आए। इसी प्रकार गोपालपुर के पूर्व विधायक हाफिज इरशाद भी हाथी से उतरकर साइकिल पर सवार हो गये थे। सपा विधायक रहे स्व रामप्यारे सिंह को हराकर सगड़ी में हाथी की सवारी करने वाले पूर्व विधायक मलिक मसूद ने भी चुनाव में मुलायम का ही साथ दिया। इसके अलावा आजमगढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र में हाथी पर बैठकर वोट मांग चुके आरपी राय भी हल्ला बोलने मुलायम के साथ आ गये थे। एक जमाने में अमर सिंह के अति करीबी रहे लोकमंच के नेता विजेंद्र सिंह भी नेताजी के प्रभाव में आकर समाजवादी हो गये थे। रामलहर में आजमगढ़ लोकसभा सीट से भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमा चुके जनार्दन सिंह गौतम भी समाजवादी हो गये थे। भाजपा से नगर पालिका की चेयरमैन रही इंदिरा देवी जायसवाल के पुत्र अभिषेक जायसवाल उर्फ दीनू भी मुलायम की भक्ति में लीन हो गये थे। इनमें से अधिकांश लोग अब सपा से अपना नाता तोड़ चुके हैं। साथ ही अखिलेश यादव के यहां आने के बाद कोई भी नेता अपने दल से नाता तोड़कर सपा के साथ नहीं जुड़ रहा है। लोग दूर जरूर होते जा रहे हैं। समाजवादी कुनबे के साथ ही खुद सपा सुप्रीमों अखिलेश यादव को भी इन स्थितियों पर आत्ममंथन करना चाहिए।
इस बार सूबे में नहीं है सपा की सरकार भी————————–
समाजवादी कुनबे के लोग यह क्यों नहीं सोच रहे हैं कि इस बार सूबे में सपा की सरकार नहीं है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के समय सूबे में सपा की सरकार थी। उस समय जहां विभिन्न दलों से नाता तोड़कर लोग सपा में आ गये थे, वहीं बड़ा नेता जानकर हर तबके ने नेताजी को वोट दिया था। साथ ही सपा के लोगों ने हर बूथ पर जमकर फर्जी वोटिंग की थी। बड़ा नेता होने के कारण दूसरे दलों के लोगों ने कहीं पर भी फर्जी वोटिंग का विरोध नहीं किया। सूबे में सरकार भी उस समय सपा की थी, जिसके कारण प्रशासन ने भी कहीं विरोध नहीं किया और सपाइयों ने झूमकर फर्जी वोट डाला। इस बार ऐसा नहीं होने पायेगा। वजह यह कि देश व प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार है और यहां के लोग मुलायम की तरह से अखिलेश यादव के साथ दिल से नहीं जुड़े हैं।
काफी पहले से गुमराह है समाजवाद———————-
आजमगढ़ में काफी पहले से समाजवाद गुमराह है। एक दौर वह भी हुआ करता था जब इस जिले में बाबू शिवराम राय, बाबू विश्राम राय, बाबू त्रिपुरारी पूजन प्रताप सिंह उर्फ बच्चा बाबू सरीखे बड़े समाजवादी नेता हुआ करतेे थे। बाद के दिनों में जब समाजवादी राजनीति में यदुवंशी योद्धा हाबी हुए तो सवर्णों को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया। यही वजह रही कि सवर्णों ने भी समाजवादी राजनीति से धीरे-धीरे दूरी बनाना शुरू कर दिया। जो चन्द लोग समाजवादी राजनीति में रहे भी, वह हाशिये पर ही रहे। आलम यह रहा कि लम्बे समय से इस जिले के किसी भी सवर्ण को सपा ने न तो लोकसभा व विधानसभा का टिकट दिया, न ही सूबे में सरकार रहने पर लाभ का ही कोई राजनैतिक पद दिया। स्व तहसीलदार पाण्डेेय जीवनपर्यन्त बस सपा का झोला ही ढोते रह गये। इसी तरह से वयोवृद्ध हरिप्रसाद दूबे को सपा का जिला महासचिव तो बनाया गया है मगर कोई लाभ का पद कभी नहीं दिया गया। जबकि वह प्रतिवर्ष चौधरी चरण सिंह की जयंती पर अपने गांव गोमाडीह पर बड़ा किसान मेला लगवाते हैं। मौजूदा समय में विवेक सिंह, आदर्श सिंह शिशुपाल सरीखे तेज-तर्रार छात्रनेता समाजवादी राजनीति में तो सक्रिय हैं मगर हाशिये पर ही हैं। इस चुनाव में तो बसपा से गठबंधन के कारण अतिउत्साहित सपाइयों की अनर्गल बयानबाजी ने सवर्णों के साथ अन्य तबके के लोगों को समाजवादी पार्टी से और भी दूर कर दिया है। ऐसी स्थितियों के बीच यहां समाजवादी राजनीति का बेड़ा गर्क होने से भगवान ही बचा सकते हैं।
आजमगढ़ के होकर भी कभी यहां के नहीं रहे दो बड़े सवर्ण नेता———————————
समाजवादी राजनीति के दो कद्दावर नेता आजमगढ़ के होकर भी कभी यहां के नहीं रहे। इन दो नेताओं में अमर सिंह व अभिषेक मिश्र का नाम शामिल है। अमर सिंह जहां लम्बे समय तक सपा संगठन के बड़े पदों पर रहे, वहीं राज्यसभा सदस्य के साथ ही सपा की सरकारों में उनको लाभ के पदों पर भी आसीन किया गया। इसके विपरीत वह हवाई नेता रहे और केवल लाभ लेने के लिए ही आजमगढ़ को अपना जिला कहा। आजमगढ़ से उनका कोई लगाव न होने का ही नतीजा है कि वह इस जिले की अपनी सारी जमीनों के साथ ही घर-मकान तक आरएसएस को दान कर दिये और इस जिले से पूरी तरह से खारिज हो गये। इसी तरह से अभिषेक मिश्र तो कभी यहां रहे ही नहीं। ऐसे में उन्हें भले ही सपा सरकार में मंत्री बनाया गया हो मगर यहां के लोग उनको कभी यहां का समझे ही नहीं। इस तरह से सपा के लोग लाभ का पद पाने वाले इस जिले के इन सवर्णों का नाम नहीं ले सकते हैं।
आखिर कहां सो रहे आलमबदी आजमी जी ———————–
निजामाबाद के सपा विधायक आलमबदी आजमी इस बार आखिर कहां सो गये हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में जब मुलायम सिंह यादव यहां से लड़ने आये थे और यहां के नेता मुलायम सिंह के पास जाकर यह बता रहे थे कि नेताजी आप 4 लाख, 5 लाख से चुनाव जीत रहे हैं। तब आलमबदी आजमी जाकर मुलायम को आगाह करते हुए यह बताये थे कि आप तो चुनाव हार रहे हैं। यह सभी झूठ बोल रहे हैं। यह सच जानने के बाद मुलायम ने अपने पूरे कुनबे को आजमगढ़ भेजा। सब लोग जी-जान से जुटे। तब कहीं जाकर मुलायम किसी तरह से चुनाव जीते। इस बार सपा के लिए स्थितियां और भी जटिल हैं। इसके बावजूद आलमबदी आजमी तक इस बार सच्चाई क्यों नहीं देख पा रहे हैं। ऐसा तो नहीं कि बसपा से गठबंधन के कारण वह भी गलतफहमी में हैं। फिलहाल सच चाहे जो हो मगर सपा का हर निष्ठावान सिपाही सच देख रहा है। यही वजह है कि कट्टर सपाई व आजमगढ़ के पूर्व सभासद नन्दलाल यादव ने इसी 5 मई को अपने फेसबुक एकाउंट पर पोस्ट किया कि केवल तीन जातियों के अलावा एक भी जाति सपा के साथ नहीं जुड़ रही है और सभी जातियां भाजपा के साथ हैं। इसके लिए उन्होंने स्थानीय नेताओं को जिम्मेदार ठहराते हुए अखिलेश यादव से अपील किया है कि वह इस स्थिति को गंभीरता से लें और अपने लोगों को यहां पर भेजें। अन्यथा की स्थिति में कुछ भी हो सकता है। फिलहाल जो सच नन्दलाल देख रहे हैं, वह कद्दावर सपाई क्यों नहीं देख रहे हैं।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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