यहाँ भाजपा सत्ता में होने के बाद भी 40 प्रतिशत बूथों पर पोलिंग एजेंट तक खड़ा नहीं कर पाई
आजमगढ़: यूपी में तीन दलों के गठबंधन के बाद भी बीजेपी की सुनामी रोकने रोकने में विपक्ष नाकाम रहा लेकिन आजमगढ़ की दोनों सीट बीजेपी ने बड़े अंतर से गंवा दी। ऐसे में चर्चा इस बात की शुरू हो गयी है कि आखिर मोदी की लहर यहां तक क्यों नहीं पहुंची। आजमगढ़ पर अखिलेश ने बड़ी जीत हासिल की है या फिर भाजपाइयों की गुटबंदी और आपसी खींचतान ने यह सीट खुद अखिलेश की झोली में डाल दिया है। आखिर क्या वजह थी कि भाजपाई सत्ता में होने के बाद भी 40 प्रतिशत बूथों पर पोलिंग एजेंट तक खड़ा नहीं कर पाए। आखिर इनका चुनावी प्लान लीक होकर मतदान से पहले ही विपक्ष के पास कैसे पहुंच गया। इसका जवाब खुद वे भाजपाई भी ढूंढ़ रहे हैं जो पार्टी के प्रति समर्पित है। कारण कि इस चुनाव में बीजेपी ने वोट जरूर 2014 के मुकाबले अधिक हासिल किया है लेकिन पांचों विधानसभा वे पिछले चुनाव की अपेक्षा बड़े अंतर से हारे हैं। अंदर खाने से संगठन में शामिल विभीषणों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी उठने लगी है। यह जिला पिछड़ा बाहुल्य है लेकिन बीजेपी संगठन ने पूरे चुनाव में पिछड़े नेताओं को दरकिनार किया। जैसा की पूर्वांचल एक्सप्रेस वे के शिलान्यास के समय किया गया था। उस समय पिछड़े नेताओं ने समय रहते सीएम के सामने आवाज उठा दी थी तो मोदी की रैली का प्रभार वन मंत्री दारा सिंह चौहान को सौंप हालात को सामान्य बना दिया गया था लेकिन चुनाव में पिछड़ों की अनदेखी का ध्यान नहीं दिया गया। कुछ को जिम्मेदारी सौंपी भी गई तो फिर उन्हें हटा दिया गया। चुनाव प्रबंधन की जिम्मेदारी ज्यादातर उन सवर्ण नेताओं को सौंपी गयी जिनपर विधानसभा चुनाव में भीतरघात का आरोप लगा था। बहरहाल निरहुआ को मिले मतों के हिसाब से पिछड़ा वर्ग का वोट मिलने का अनुमान लगाया जा सकता है। दूसरी बात भाजपा जिला इकाई ने दलित मतदाताओं में अलग से प्रभाव जमाने का कोई भी विशेष प्रयास नहीं किया जिसका फायदा समाजवादी पार्टी के स्थानीय नेताओं ने जम कर उठाया और वह मतदान से ठीक पहले दलित बस्तियों में व्यापक जनसम्पर्क करने में सक्रिय रहे। और गहराई में जाए तो अखिलेश मिश्रा गुड्डू के अलावा जिले में भाजपा की राजनीति में स्थान रखने वाले पूर्व पदाधिकारियों , विधानसभा और लोकसभा के प्रत्याशियों ने भी दिनेश लाल के चुनाव प्रचार में उपस्थिति दर्ज नहीं कराई।
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