.

.

.

.
.

आजमगढ़ : भाजपा ही नहीं सपा के भीतर भी भीतरघात का खेल शुरू हो गया है

"आपसी भीतरघात भी चल रहा है यानि एक गुट इसके लिए भी घुम घुम कर काम कर रहा है कि वोट पड़े लेकिन ज्यादा नहीं, जिससे संबंधित विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी औकात में रहे। यह अन्तर्विरोध इन पार्टियों और इसके संकीर्ण नेताओं को कहाँ तक ले जाएगा,यह तो भविष्य तय करेगा,लेकिन चुनाव दिलचस्प बन चुका है"
आजमगढ़ : अरविन्द सिंह : साभार - शार्प रिपोर्टर : यह बातें आप को विचलित करते हुए आश्चर्य में डाल सकती हैं लेकिन जो सूचनाएं और अनदुरूनी रिपोर्टस आ रही हैं वह इन समाचारों से भी ज्यादा घातक और अन्तर्विरोध लिए हैं। आजमगढ़ में अखिलेश यादव के मुकाबले जब से भोजपुरी कलाकार दिनेशलाल यादव निरहुआ को भाजपा प्रत्याशी बनाया गया है। स्थानीय कुछ भाजपाई उसे पचा नहीं पा रहे हैं। वे इसे पार्टी हाईकमान द्वारा थोपा हुआ कैंडिडेट मानते हैं, जिसमे स्थानीयता को तरजीह ना देकर पैराशूट प्रत्याशी लाकर थोप दिया गया है। वहीं चूँकि निरहुआ भाजपा की रीति-नीति से बहुत परिचित नहीं है, इस लिए जिला इकाई के कुछ लोग, जो उस पर प्रभुत्व बनाना चाहते थे और पार्टी फंड को अपने हिसाब से खर्च कराना चाहते थे,कतिपय कारणों से उनके मंसूबों पर पानी फिरता नज़र आने लगा, परिणाम स्वरूप वे निरहुआ के प्रचार में सक्रियता कम कर दिए। कुछ लोग अनिच्छा पूर्वक रस्म अदायगी करने में लग गयें हैं।यही नहीं कुछ तो भीतरघात करने की नयी युक्ति ढ़ूढ लिए हैं।उधर अन्तर्विरोध में घिरी भाजपा एक एक दिन मतदान की ओर बढ़ रही है,तो क्या भाजपा को भाजपा ही हराना चाहती है। यह सवाल आज बड़ा ही सामयिक और गंभीर है।
वही मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी भी इससे इतर नहीं है। पहले तो स्थानीय नेता गठबंधन होने के बाद स्वयं के लिए एक अवसर के रूप में देख रहे थे,और इसके लिए वे युद्धस्तर पर संघर्षरत भी थे। बताते हैं कि वर्तमान जिलाध्यक्ष इसके पहले भी सन् 2014 में अपने लिए प्रयासरत थे।और जनपद के मुख्य मार्गों और सड़कों बड़े छोटे कट आउट इस बात की तस्दीक करते दिखाई दिए थे,लेकिन उनके उम्मीदों पर उस समय बर्फबारी हो गई, जब यहाँ से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव को लाया गया। बताते हैं कि मुलायम सिंह को आजमगढ़ सीट से लाने वाला सपा का दूसरा खेमा आज भी उसी शिद्दत से लगा है। यही कारण है कि सपा में जिलाध्यक्ष खेमा के विरूद्ध उनके घोर सियासी विरोधी प्रमोद यादव और अजीत यादव को सपा में शामिल कराया गया। और वर्तमान सुप्रीमो को इस बात को समझाया गया कि उनके आजमगढ़ आने पर सपा न केवल यह सीट जीत सकती है बल्कि पूर्वांचल के अन्य सीटों पर भी व्यापक प्रभाव पड़ेगा। सच तो यह है कि सपा में कुछ नेता यह भी सोच के हैं कि यदि एक बार अखिलेश जीत कर गये तो,कम से कम बीस साल तक उनकी संभावना खत्म हो जाएगी और उसके बाद इनकी चुनाव लड़ने की संभावना तो लगभग समाप्त ही हो जाएगी।लेकिन सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को लाने वाला खेमा एक बार फिर अपने उददेश्य में सफल होता नज़र आ रहा है। उसके लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि उसके सामने स्थानीय इस दल में उससे बड़ा कोई नेता कैसे बन जाए।इसे कहते हैं राजनीति के साथ कुटनीति का सटीक अनुप्रयोग। वैसे स्थानीय बड़े नेताओं में अब अखिलेश सरकार के लिए प्रचार में लगना और जीताना मजबूरी है,लेकिन इसी के साथ इसके समानांतर यह प्रयास भी जारी है कि पाँचों विधानसभा में प्रभारियों में आंतरिक संघर्ष बना रहे और यह चलता रहे। उनकी यह कोशिश है कि उसके क्षेत्र में अखिलेश को सबसे ज्यादा वोट मिले और दूसरे में उसकी तुलना में कम।जिससे सपा सुप्रीमो की नज़र में उसका नंबर बढ़ सके और अखिलेश का विश्वस्त होने के साथ, वह बड़ा और प्रभावशाली नेता बन सके।इस लिए आपसी भीतरघात भी चल रहा है यानि एक गुट इसके लिए भी घुम घुम कर काम कर रहा है कि वोट पड़े लेकिन ज्यादा नहीं, जिससे संबंधित विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी औकात में रहे। यह अन्तर्विरोध इन पार्टियों और इसके संकीर्ण नेताओं को कहाँ तक ले जाएगा,यह तो भविष्य तय करेगा,लेकिन चुनाव दिलचस्प बन चुका है। 

Share on Google Plus

रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

आजमगढ़ लाइव-जीवंत खबरों का आइना ... आजमगढ़ , मऊ , बलिया की ताज़ा ख़बरें।
    Blogger Comment
    Facebook Comment