जानिये पुर्वांचल में किन दिगज्जों ने किस रणनीति के तहत बदला अपना निर्वाचन क्षेत्र
आजमगढ़ : पूर्वांचल में लोकसभा के चुनावी घमासान की तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है। राजनीति के धुरंधरों ने अपनी विजय सुनिश्चित करने के लिए पार्टी भी बदली और निर्वाचन क्षेत्र भी। कुछ ने मजबूरी में यह कदम उठाया तो कुछ ने पार्टी की रणनीति के तहत। पिछले लोकसभा चुनाव में सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव को भाजपा के टिकट पर टक्कर देने वाले पूर्व सांसद रमाकांत यादव इस बार कांग्रेस के टिकट पर भदोही से चुनाव लड़ रहे हैं। वह समाजवादी पाटी, बसपा और भाजपा से होते हुए कांग्रेस में आए हैं। वहीँ सपा संरक्षक मुलायम सिंह ने इस बार अपनी रखी गई सीट आजमगढ़ सदर को अपने पुत्र सपा अध्यक्ष अखिलेश को सौंप इस बार वापस मैनपुरी का रुख कर लिया है। वहीँ कालीन नगरी भदोही के मौजूदा सांसद वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ इस बार बलिया से अपनी किस्मत आजमाएंगे। वह भदोही (मिर्जापुर) से तीन बार सांसद रह चुके हैं। किसान नेता के रूप में चर्चित वीरेंद्र सिंह ‘मस्त’ को 1991 , 1998 और 2014 के चुनावों में सफलता मिली। बलिया वीरेंद्र सिंह का गृह जनपद है। वाराणसी से 2004 से 2009 तक कांग्रेस के टिकट पर सांसद रहे डॉ.राजेश मिश्र इस बार अपने गृह जनपद सलेमपुर से चुनाव लड़ रहे। वे चौथी बार लोकसभा का चुनाव लड़ेंगे। वैसे डॉ. मिश्र छात्र राजनीति से बनारस में ही सक्रिय रहे। वाराणसी स्नातक निर्वाचन क्षेत्र से दो बार एमएलसी रहे। डॉ. मिश्र इस समय प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं। 2014 में गाजीपुर सीट से सपा उम्मीदवार के तौर केंद्रीय रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा को कड़ी टक्कर देने वाली शिवकन्या कुशवाहा इस बार चंदौली से चुनाव मैदान में हैं। गाजीपुर संसदीय सीट से उन्हें 2,74,477 वोट मिले। अभिनेता से नेता बने रविकिशन ने इस बार पार्टी के साथ-साथ क्षेत्र भी बदल लिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जौनपुर से कांग्रेस के टिकट पर ताल ठोकी थी। वह छठे स्थान पर रहे। उन्हें कुल 42,759 वोट मिले थे। इस बार वह गोरखपुर संसदीय क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार होंगे। जानकारों का मानना है कि पार्टी और क्षेत्र बदलने का निर्णय राजनीतिक धुरंधरों ने सोच-समझ कर किया है, इसमें जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को विशेष ध्यान में रखा गया है।
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