आजमगढ़: मां भारती के अमर वीर सपूत सरदार भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव की शहादत को सामाजिक संगठन प्रयास द्वारा सिंहासिनी वाटिका में एक शाम शहीदों के नाम के रूप में मनाया गया। सर्वप्रथम डा आरबी त्रिपाठी, ओमप्रकाश, डा वीरेन्द्र पाठक द्वारा आजादी के दीवानों के चित्र पर श्रद्धासुमन अर्पित कर उन्हें सभी ने नमन किया गया। प्रयास संस्था अध्यक्ष रणजीत सिंह ने कहा कि 1931 में अविभाजित भारत के लाहौर सेंट्रल जेल मे तीनों क्रांतिकारियों को अंग्रेजी हुकूमत ने फांसी पर चढ़ा दिया था। क्योंकि उन्होंने देशवासियों को अंग्रेजों से मुक्ति दिलाने के लिए सेंट्रल असेम्बली में रिक्त स्थान पर बम फेंका था ताकि इसकी गूज से समूचे भारत वर्ष जागृत हो सकें और अंग्रेजी हुकूमत की चूल्हें हिल जाये। श्री सिंह ने आगे कहा कि चलो फिर आज वो नजारा याद कर लें शहीदों के दिल में थी जो ज्वाला याद कर लें, जिसमे बहकर आजादी पहुंची थी किनारे पर, देशभक्तों के खून की वो धारा याद कर लें। अतुल श्रीवास्तव ने बताया कि अंग्रेजी हुकूमत जानती थी कि भगत सिंह, राजगुरू, सुखदेव को फांसी पर लटकाना आसान नहीं था क्योंकि इन क्रांतिकारियों के समर्थन में पूरा भारत जनाक्रोशित था इसलिए अंग्रेजों ने इन्हें एक दिन पूर्व ही 23 मार्च 1931 को अचानक फांसी पर लटका दिया था। तीनों क्रांतिकारियों ने मुस्कुराते हुए फांसी के फंदे पर चढ़ गये। इसी का परिणाम हुआ कि भारत 1947 में आजाद हुआ था। सचिव सुनील यादव ने कहाकि गरीबीं, अशिक्षा, भ्रष्टाचार, भूख और वंचना की गुलामी से समाज को मुक्त करने की प्रेरणा भगत सिंह की शहादत हमें सदैव सिखाती रहेगी। इन्हीं के शहादत का परिणाम रहा कि 16 वर्षों के उपरान्त ही अंग्रेजों को भारत छोड़कर भागना पड़ा। श्रद्धाजंलि अर्पित करने वालों में शम्भू दयाल सोनकर, पूजा पांडेय, प्रतिमा पांडेय, स्नेहलता राय, दयाराम यादव, संगीता यादव, धनश्याम मौर्या, प्रेमगम आजमी, आलोक लहरी, नागेन्द्र, चन्दन, डा वीरेन्द्र पाठक, हरगोविन्द विश्वकर्मा, नीलम सिंह, रामजन्म मौर्य, राजेश कुमार, आशीष मौर्या, महेन्द्र कुमार, मीरा देवी, राजू विश्वकर्मा आदि शामिल रहे।
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