सपा मुखिया के मैदान में आने से बीजेपी की चुनौती बढ़ी,करनी होगी मजबूत प्रत्याशी की तलाश
आजमगढ़। सपा संरक्षक मुलायम सिह यादव की विरासत को अब सपा मुखिया अखिलेश यादव संभालेगे। अखिलेश यादव ने मुलायम सिंह याद के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इसके साथ ही जहां गठबंधन के प्रत्याशी को लेकर लगाए जा रहे कयासों का दौर खल्म हो गया है वहीं अखिलेश के मैदान में आने के बाद बीजेपी की चुनौती बढ़ गयी है। अब यहां बीजेपी को किसी मजबूत प्रत्याशी की तलाश करनी होगी। बता दें कि पूर्वांचल की आजमगढ़ संसदीय सीट चुनाव के घोषणा के बाद से ही सर्वाधिक चर्चा में थी। कारण कि यह प्रदेश की वीआईपी सीटों में गिनी जाती है। मुलायम सिंह द्वारा आजमगढ़ से मैदान छोड़ने के बाद यह चर्चा चल रही थी कि आखिर यहां से गठबंधन का प्रत्याशी कौन होगा। खासतौर पर अखिलेश यादव द्वारा यह कहने के बाद कि अगर आजमगढ़ के लोग बुलाएंगे तो वे चुनाव लड़ेगे राजनीति में हलचल पैदा कर दी थी। सपा के दावेदारों के भी पसीने छूटने लगे थे। वहीं पार्टी की गुटबाजी को समाप्त करना और बीजेपी के बाहुबली रमाकांत यादव का विकल्प तलाशना भी अखिलेश के लिए बड़ी चुनौती थी। रविवार को सपा द्वारा जारी दो प्रत्याशियों की सूची ने सारी अटकलों पर विराम लगा दिया। मुलायम की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अखिलेश यादव ने खुद यहां से लड़ने का फैसला किया है। अब अखिलेश यादव के मैदान में आने के बाद चुनौती बीजेपी की बढ़ गयी है। कारण कि पिछले चुनाव में रमाकांत यादव ने मुलायम सिंह यादव को कड़ी टक्कर जरूर दी थी लेकिन उस समय सपा और बसपा अलग-अलग मैदान में उतरी थी। इस बार बीजेपी को गठबंधन का सामना करना है। जातिगत आधार पर देखे तो यादव, मुस्लिम और दलित मिलाकर यहां 50 प्रतिशत के आसपास है। जिसे गठबंधन अपना मानकर चल रहा है। ऐसे में बीजेपी के सामने चुनौती है कि ऐसा प्रत्याशी उतारे जो बाकि के मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के साथ ही गठबंधन के मतों से सेंध लगा सके।
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