नई पीढ़ी में कलात्मक विकास और सांस्कृतिक मूल्यों को नई दिशा देगी कार्यशाला-राजकुमार शाह
आज़मगढ़:: संस्कृति विभाग उ0 प्र0 के सहयोग से समूहन कला संस्थान द्वारा जनपद के युवा नव प्रतिभाओं को प्रोत्साहन, प्रशिक्षण ,आज़मगढ़ में कला संस्कृति की संमृद्धि और प्रोन्नति के लिये एक प्रशिक्षण कार्यशाला का संचालन किया जा रहा है। विगत दिनों इस कार्यशाला के प्रशिक्षणार्थियों के चयन के लिए एक व्यापक आॅडिशन एवं चयन कार्यशाला सम्पन्न हुई। दो चरणों में चली इस चयन प्रक्रिया में 252 युवा छात्रों ने प्रतिभाग किया, जिसमें से अन्तिम रूप से 26 प्रतिभागिओं का चयन हुआ है। ये सभी प्रतिभायें रंगमंच और संगीत गायन के एक दीर्घकालीन कार्यशाला में प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। प्रशिक्षणोपरान्त समय समय पर इन नवकलांकुरों की प्रस्तुतियां भी लोकजनमानस के समक्ष हो, इस हेतु से ‘‘अवगाहन मध्यान्तर’’ का आयोजन हल्दीराम बैंक्वेट हाॅल में आयोजित किया गया है। इससे न सिर्फ इन प्रतिभाओं को निखरने का अवसर मिलेगा बल्कि जनपद के कलात्मक पटल का भी विस्तार होगा। समूहन कला संस्थान की तरफ से यह जानकारी देते हुए दिनेश सैनी ने बताया है कि कार्यशाला का संचालन विषय क्षेत्र के अकादमिक विशेषज्ञों द्वारा किया जा रहा है। प्रशिक्षकों में संगीत गायन के लिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से एम0 म्यूज साधना सोनकर और रामकृष्ण द्विवेदी जैसे कला साधक कार्यशाला में प्रशिक्षण देने के लिए आमंत्रित किये गये हैं। रंगमंच में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिल्म एण्ड थियेटर में परास्नातक और समूहन कला संस्थान के निदेशक राजकुमार शाह के अतिरिक्त भारतेन्दु नाट्य अकादमी से ड्रेमेटिक आर्ट्स में ग्रेजुएट वरिष्ठ अभिनेत्री-रंग प्रशिक्षक रोजी दूबे भी प्रशिक्षक के रूप में योगदान दें रही हैं। जनपद के वरिष्ठ गणमान्य नागरिकों और कला प्रेमी दर्शकों के सामने प्रस्तुत अवगाहन मध्यान्तर में संगीत गायन की सराहनीय प्रस्तुतियां की गई। प्रशिक्षणार्थियों द्वारा गणेश वन्दना से शुभारम्भ हुआ और पारम्परिक राजस्थानी लोक गीत कोरे काजल री कोर बन जाऊं मैं नैना रमाये राखूली के साथ साथ हरियाणवीं लोक गीत मेरा नौदांडी का बीजड़ा - मेरे ससुर दिये गढवाय का सुन्दर गायन दीप्ती राय, मीनाक्षी श्रीवास्तव, आरती पटेल, अना मलिक, जया यादव, रिम्पी वर्मा, रूपा कुमारी, सुमन भारती, महिमा पाठक, श्वेता कारूष और प्रियंका विश्वकर्मा ने प्रस्तुत किया। ऋषिकेश वर्मा, प्रवेश चैहान, आशीष सिंह,, शैलेश राजभर, प्रद्युम्न, विश्वकर्मा, सन्तोष प्रजापति, हेमन्त, रामजनम प्रजापति, श्याम, धर्मेन्द्र कुमार अवनीश यादव, हर्षवर्धन और प्रद्युम्न पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत देशभक्ति गीत कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहे जिसे आजा़दी की लड़ाई के दौरान अंग्रेजों ने प्रतिबंधित किया था। इन गीतों में ‘है अभी तैयार मर मिटने को मस्ताने बहुत, लिखे जायेंगे हमारे खूं से अफसाने बहुत’ और ‘मुझे गाढ़ा सुदेशी मँगा दो सजन’ पर प्रेक्षकों ने खूब तालियां बजायी। पूरे भारत में प्रसिद्ध उपशास्त्रीय गायन शैली दादरा जो बनारस और उ0 प्र0 की गायन शैली के रूप में भी पहचानी जाती है, दादरा में प्रस्तुत गीत ‘चला रे परदेसिया नेहा लगाके’ की भी जमकर सराहना हुई जिसकी प्रस्तुति कार्यशाला की प्रशिक्षिका साधना सोनकर ने की। प्रशिक्षणार्थियों द्वारा प्रस्तुत राजस्थानी गीत रंग लाग्यो रे ढोला चित लाग्यो पर लोगों ने जमकर तालियां बजाई और आनन्दित हुए। सनी दुलरूआ ने पूर्वी गायन प्रस्तुत करके खूब वाहवाही पाई। आयोजन के सफल संयोजन में और वाद्य यन्त्रों पर ज्ञानेश्वर प्रजापति और सुनील गोंड ने अपना प्रशंसनीय योगदान दिया। समूहन कला संस्थान की ओर से इस प्रशिक्षण कार्यशाला को सहयोग प्रदान करने के लिए संस्कृति निदेशालय, संस्कृति विभाग उ0 प्र0 का आभार व्यक्त किया गया है। इन प्रशिक्षण कार्यशालाओं के आयोजन में समूहन कला संस्थान के अतिरिक्त स्वर साधना संगीत अकादमी, निधि शैक्षिक एवं शोध संस्थान एवं सृजन-विजन अपना भरपूर सहयोग रहा है। कार्यक्रम अशोक कुमार अग्रवाल, प्रवीण सिंह, नीरज अग्रवाल, मनीष अग्रवाल, , पूनम सिंह, डा0 अलका सिंह, श्रीमती विजयलक्ष्मी मिश्रा ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।
Blogger Comment
Facebook Comment