आजमगढ़। श्री गौरी शंकर मंदिर सिधारी के प्रांगण में सावन मास के अवसर पर चल रहे श्री शिव महापुराण कथा में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। कथा वाचक आचार्य पंडित अजय भारद्वाज पैन्यूली के मुख से शिव महापुराण का श्रोता आनन्द ले रहे है। सावन मास के 12वें दिन श्रीशिव महापुराण कथा को आगे बढ़ाते हुए पंडित अजय भारद्वाज ने भगवान शिव के ससुराल में हो रहे यज्ञ का विधिवत् वर्णन करते हुए कहाकि ब्रह्मा जी के पुत्र दक्ष के यहां माता सती का जन्म हुआ। उनका विवाह भगवान शिव से हुआ। दोनों लोग कैलाश पर्वत पर विराजमान थे। एक दिन माता पार्वती ने देखा कि देवताओं का विमान कैलाश पर्वत के उपर से कहीं जा रहा है। तो उन्होने भगवान शिव से पूछा। भगवान शिव ने उत्तर देते हुए बताया कि हे देवी ये सभी देवता तुम्हारे पिता राजा दक्ष के घर यज्ञ में शामिल होने को जा रहे है। यह सुन माता सती ने कहाकि आप और हमें भी उस यज्ञ में जाना चाहिए। उनकी बातां को सुनकर भगवान शिव ने कहाकि यद्यपि पिता मित्र और गुरू के घर बिना निमंत्रण के नहीं जाना चाहिए। यह कल्याणकारक नहीं होता। भगवान शिव के समझाने के बाद भी माता सती नहीं और वह यज्ञ में जाने के लिए तैयार हो गयी और नंदी की सवारी करके पहुंच गयी। वहां उन्होने अपने पिता से पूछा कि हे पिता आपने सभी देवताओं को यज्ञ में सम्मिलित हेने के लिए निमंत्रण दिया लेकिन मेरे पति को आपने क्यूं नहीं बुलाया। आपका यह यज्ञ कल्याणकारी नहीं होगा। माता सती ने अपने पित भगवान शिव का ध्यान करते हुए योग्नाग्नि में प्रवेश किया। इसके बाद शिवगणों में हाहाकार मच गया। शिवगणों और दक्ष के बीच युद्ध होने लगा। इसी दौरान नारद ने सती दाह एवं शिवगणों के युद्ध में प्रताड़ित करने पर भगवान शंकर को क्रोध आया और अपने सिर से एक जटा उखाड़कर कैलाश पर्वत पर मारा जहां वीरभद्र की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने वीरभद्र को दक्ष यज्ञ को विध्वंस करने का आदेश दिया। वीरभद्र यज्ञ स्थल पर पहुंचकर सभी को दंडित करते राजा दक्ष का सिर काट कर यज्ञ में डाल दिया। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना करते हुए कहाकि इस यज्ञ को पूरा करने के लिए राजा दक्ष का जीवित रहना बहुत जरूरी है। देवताओं के आग्रह पर भगवान शिव ने बकरे का शीश राजा दक्ष को लगाया। भगवान शिव ने माता सती के शरीर को चारों दिशाओं में घुमाया तब नारायण चक्र से माता सती के शरीर के 52 टुकड़े हुए। जो विभिन्न जगहों पर गिरे और विभिन्न नामों जैसे पल्हना देवी, नैना देवी, ज्वाला देवी, कामख्या देवी, विन्ध्यवासिनी आदि नामों से प्रख्यात हुआ। अपराह्न 2 से सायं 6 बजे तक भक्तों ने पुराणकथा सुनने के बाद श्रद्धालुओ ने प्रसाद का ग्रहण किया। इस अवसर पर नायक यादव, जितेन्द्र अस्थाना, रमाकांत गुप्ता, रामसुधार, निर्मल मौर्य, मुफिर यादव, राजू, अर्चना सिंह, पम्मी, विद्या देवी, पहाड़ी राम, चांदनी देवी, रामसुभग, कलावती, शिव कुमारी, सुनीता सिंह आदि मौजूद रहे।
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