मुंशी प्रेमचंद जी निश्चित रूप से हिन्दी के पहले प्रगतिशील लेखक रहे आजमगढ़:: लोक मनीषा परिषद के तत्वावधान में 31 जुलाई, मंगलवार को हिन्दी साहित्य के अनमोल रत्न, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 138वीं जयंती पं. अमरनाथ तिवारी के राहुल नगर स्थित आवास पर श्रद्धा पूर्वक मनायी गयी। कार्यक्रम की अध्यक्षता पं. अमरनाथ तिवारी व संचालन जन्मेजय पाठक ने किया। अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में पं. अमरनाथ तिवारी ने बताया कि हिन्दी साहित्य की दृष्टि से 31 जुलाई का बड़ा ही महत्व है क्योंकि आज ही के दिन 1880 में हिन्दी साहित्य के अनमोल रत्न, उपन्यास व कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही गांव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनका वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था, कुछ लोग उन्हें नवाब राय के नाम से भी जानते थे। श्री तिवारी ने बताया कि प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी और उपन्यास की एक एैसी पंरपरा का विकास किया, जिसने एक पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। उनकी लेखनी इतनी समृद्ध थी कि इससे कई पीढ़ियां प्रभावित हुई और उन्होंने साहित्य के यर्थाथवादी परंपरा की भी नींव रखी। निशीथ रंजन तिवारी ने बताया कि जब भारत का स्वाधीनता आंदोलन चल रहा था उस समय मुंशी प्रेमचंद जी ने कथा साहित्य द्वारा हिन्दी व उर्दू दोनों भाषाओं को अभिव्यक्ति दी उसने सियासी सरगर्मी को, लोगों के जोश को और आंदोलन सभी को उभारा और उसे ताकतवर बनाया। इस अर्थ में मुंशी प्रेमचंद जी निश्चित रूप से हिन्दी के पहले प्रगतिशील लेखक कहे जाते है। संचालन करते हुए जन्मेजय पाठक ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद अपने समय के भारतीय समाज के वर्गीय जीवन शैलियों को बड़ी ही पैनी नजर से देखा। मानव अपने वर्गीय समाज की जकड़न में फंसा मुसीबतों से निकलने को व्याकुल दिखा। इन दशाओं को विभिन्न समस्या प्रधान उपन्यास तथा अन्य रचनाओं के माध्यम से चित्रित कर दिखाया। यह बड़ा साहसिक कार्य रहा। वह पूरी तरह भारतीय परिवेष में ही उत्थान दर्शाएं है। इस अवसर पर प्रमुख रूप से राजीव रंजन तिवारी, रामसेवक सिंह, कल्पनाथ मौर्य, रवीन्द्र नाथ, हरिनाथ उपाध्याय, सजीवन चौबे, रविन्जय रमण पाठक, योतिन्जय रमण पाठक आदि प्रमुख लोग उपस्थित रहे।
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