आजमगढ़:: लोक मनीषा परिषद् के तत्वावधान में पंडित अमरनाथ तिवारी के मड़या स्थित आवास पर उनकी अध्यक्षता में जनपद के प्रथम खड़ी हिन्दी काव्य धारा के प्रणेता अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ की 153 वीं जयंती पर उनके जीवन और कृतित्व पर साहित्यिक गोष्ठी उनके चित्र पर माल्यार्पण कर प्रारम्भ हुई। संचालन निशीथ रंजन त्रिपाठी ने किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि व हिन्दी विभागध्यक्ष डीएवीपीजी कालेज एवं शिक्षक श्री सम्मान 2017 प्राप्त डॉ0 गीता सिंह ने कहाकि सर्वप्रणम्य हरिऔध जी ने ‘विपत्ति के रक्षण सर्वभूत का, सहाय होना असहाय जीव का,। उबारना संकट से स्वजाति को, यही मानव का सर्वप्रथम कृत्य है।।’ पंक्तियों के उद्गार से विश्व मैत्री की बात कहने वाले प्रथम कवि है। वह स्वभाव से सैद्धान्तिक नहीं अपितु सरल व्यवहार व वर्ताव करने वाले दीन-दुखियों की सहायता, अपने आलोचकों को भी सम्मान देने वाले, किसी को भी विचार विवेक हीन न समझने वाले महान व्यक्तित्व के कवि थे। वह अपने सभी किताबों और मिली पत्र पत्रिकाओं पर बहुत ध्यान देते रहे। कहते भी थे कि भविष्य में जो इसे रखेगा वहीं मेरा अपने बराबर का होगा। इनकी सभी कृतियां स्थानीय कला भवन में सुरक्षित रखी गयीं। हिन्दी खड़ी भाषा के पक्षधर रहे और पहली बार मंगल-स्तुति रहित काव्य सृजन का श्रीगणेश किये। जिसका अनुशरण जयशंकर प्रसाद एवं गुप्त जी ने भी किया। प्रिय प्रवास में राधा कृष्ण सामान्य नारी और पुरूष होकर उदित हुये। कृष्ण के न रहने पर उन्हेने लोकसेवा में कर्तव्य का ध्यान कराते हुये स्वयं भी जन जन की सेवा में निरत रहीं। वह कृष्ण को कभी बुलाई नहीं और कभी वहां गयी भी नहीं। यह उनका राष्ट्रीय कर्तव्य का प्रशंसनीय कार्य है। अधखिले फूल जानकी मंगल, ठेठ हिन्दी का ठाठ आदि प्रेरक रचनाएं है।
मुख्य वक्ता श्री जगदीश प्रसाद बर्नवाल ‘कुंद’ ने प्रियप्रवास और वैदेही वनवास कृतियों को समाज सुधार के लिए हितैषी कहा। साहित्य में कवि, नाट्यकार, आलोचक, मुहावराप्रेषी आदि रहे। हिन्दी की प्रसिद्ध प्रतिष्ठा में ठेठ हिन्दी का ठाट अग्रणी कृत रही। कबीर वचनावली के 750 दोहे तथा 250 पदों का संकलन किये, जिस पर 70 पृष्ठों की भूमिका लिखकर कृति को अमर बना दिये। उनकी बाल कविताएं ‘उठो लाल आंखे खोलो’...। बालकों के स्वास्थ्य चेतना और बुद्ध शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। वह एक प्रख्यात वक्ता व कवि रहे।
डा0 अखिलेश चन्द्र ने हरिऔध के प्रिय प्रवास और वैदेही वनवास को अमर कृत कहा।
पंडित जन्मेजय पाठक ने कहाकि हरिऔध जी सर्वप्रथम देव या ईश्वर की अराधना से परे मानव को केन्द्र में आदर्श मानकर अपनी रचना का विषय बनाया। आज के युग में उनके इस अनुकरण से एक सर्वग्राही कृति की रचना की जानी उचित होगी। जो साहित्य बनकर समाज को सदैव दिशा देता रहेगा।
इस अवसर पर डा गीता सिंह ने अपनी संपादित पुस्तक ‘हरिऔध साहित्य में समाज और स्त्री’ पुस्तक कार्यक्रम के अध्यक्ष पंडित अमरनाथ तिवारी को भेंट की। तिवारी जी ने उपस्थित साहित्यकारों को धन्यवाद दिया और गोष्ठी का समापन कराया।
इस मौके पर भूपेन्द्र सिंह , राजकिशोर तिवारी, अभिलाष सोनकर, गिरिजा शंकर यादव, मोहन वर्मा एवं विजय कुमार पाण्डेय आदि सुधीजन उपस्थित रहे।
Blogger Comment
Facebook Comment