-चार दशकों से होता रहा है आयोजन सखियां सहेलियां भइली लरिकैया पिया नहीं आये जौनपुर. :: लोक परंपराओं को जीवित रखने के लिए जौनपुर की एक संस्था वर्षों से काम कर रही है जहां एक तरफ होली के बहाने फूहड़ गीतों की भरमार है वही लोक संगीत आज भी जनमानस में लोकप्रिय हैं। सुरुचिपूर्ण लोक संगीत को जीवित रखने के उद्देश्य से श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान द्वारा विगत वर्ष की भांति गुरुवार को लोक संगीत समारोह का आयोजन किया गया। पिछले चार दशकों से जनपद के लोक कलाकारों को मंच प्रदान करता आ रहा यह संस्थान विलुप्त हो रहे जनपद की फाग गीतों फगुआ, चौताल, चहका, धमार, उलारा, बेलवइया एवं चैता आदि अवधी लोक गीतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सक्रिय है। फागुनी गीतों के धमाल में लोक गायक बाबू बजरंगी सिंह,सत्य नाथ पांडेय,झीनू दुबे,कैलाश शुक्ल,त्रिवेणी प्रसाद पाठक, लक्ष्मी उपाध्याय,भुट्टे मियां,नजरू उस्ताद,कृष्णानन्द उपाध्याय सहित साथियों ने "बनन में कोयल कागा बोलय, छतन पे बोलई हे मोरवा" , "घरवन में गौरैया चहचहानी हो रामा पिया नही आये" , "सखियां सहेलियां भइली लरिकैया पिया नही आये" बाज रही पैजनिया छमाछम बाज रही पैजनिया, रात सेजिया पे मोर झुलनी हेरानी बलमुआ, ना देबे कजरवा तोहके तू मरबे केहू के जान रे, गुजराती कहाँ पाऊं यार सेजिया महक रही गुजराती और झुलनी करि कोर कटार जुलुम करि डारे जैसे फागुनी गीतों को सुना कर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। इस अवसर पर स्वागत करते हुए संस्थान के संरक्षक डॉ अरविंद मिश्र ने कहा कि संस्थान का प्रयास होगा कि यह परंपरा विलुप्त न होने पाए। संस्थान के अध्यक्ष डॉ. मनोज मिश्र ने बताया कि आज होली के नाम पर परम्परागत लोक गीतों के स्थान पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन हो रहा है जिसे समाप्त करने के लिए संस्थान कृत संकल्पित है। गायकों को पंकज द्विवेदी आई आर एस एवं डॉ अरविन्द मिश्र द्वारा अंगवस्त्रम पहना कर सम्मानित किया गया। समारोह का संचालन पंडित श्रीपति उपाध्याय एवं धन्यवाद ज्ञापन ओंकार मिश्र ने किया। आयोजन श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति एवं वानस्पतिकी विकास संस्थान द्वारा किया गया।
Blogger Comment
Facebook Comment