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समूहन::‘‘अजब गजब इंसाफ इहा कै’’व ‘‘अंधा युग’’ नाटकों का हुआ प्रभावशाली मंचन


 आज़मगढ़: जनपद की कला संस्कृति को प्रोत्साहन और विस्तार प्रदान करने के उद्देश्य से आयोजित की जा रही ‘समूहन भ्राम्यमान नाट्य समारोह’ की दूसरी संध्या में एम्बियांस प्रस्तुति में यू पी के लोक गीत का गायन सनी दुलरूआ ने किया और दर्शकों की जमकर वाह वाही पायी। तत्पश्चात समारोह की आज की नाट्य प्रस्तुति ‘‘अजब गजब इंसाफ इहा कै’’ का प्रभावशाली मंचन हुआ। उन्नीसवी शताब्दी के अंतिम वषों में इंशाअल्ला खां की फारसी बहुल, राजा लक्ष्मण प्रसाद सिंह की संस्कृत बहुल और लल्लू लाल की ब्रज मिश्रित खडी बोली से उबार कर हिन्दी की मूल अस्मिता को प्रतिष्ठित करने वाले भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने हिन्दी गद्य की सभी विधाओं की शुरूआत कर प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया। इन्ही भारतेन्दु बाबू की आज से सवा सौ वर्ष पूर्व की एक रचना इस नाटक का मूल आधार है, जो आज भी समीचीन है। राजनीतिक सत्ता और शासन व्यवस्था पर यह अनूठा व्यंग्य है। समाज की विभिन्न व्यवस्थाओं पर हास्यपूर्ण माहौल में करारा व्यंग्य किया गया है और इस बात की ओर संकेत किया गया है कि आदमी में विवेक न हो तो उसे आदमी कहलाने का हक नही है। अतः नाटक विवेकी इंसान बनने का संदेश देती है। भोजपुरी भाषा की मिट्टी की खूश्बु और आधुनिक तथा लोक रंगो से सजी संगीतमय प्रस्तुति जो लोक और विभिन्न रंग उपकरणों का सृजनात्मक संगम है। इन्ही लोक और रंग परम्पराओं से सजी अपनी दुनिया की कहानी रंग खिलौनों की जुबानी प्रस्तुत करने में राजकुमार शाह अपनी निर्देशकीय प्रभाव छोडने में अत्यंत सफल रहे। नाटक में महात्मा की भूमिका आशीष सिंह, गोवर्धन दास अजीत पटेल, नारायण दास सुजीत प्रजापति, चूरनवाला सत्यम कुमार, अखबार वाला अवनीश यादव, सब्जीवाली रिम्पी वर्मा , कविता सोनकर, अनीता रूपा कुमारी, मिठाईवाला और कोतवाल रिशीकेश वर्मा, जातवाला दीपक निषाद, बनिया राकेश यादव, राजा हर्षवर्धन गुप्ता, मंत्री शेर सिंह राना, सिपाही के रूप में अवनीश यादव, अनुज मौर्या,दीपक निषाद, फरियादी कविता सोनकर और ठिकेदार की भूमिका में सिद्धार्थ यादव ने सराहना पायी।

मंच परे संगीत अर्जुन टंडन, प्रवीण पाण्डेय का, काॅस्ट्यूम रोजी दूबे का और प्रकाश टोनी सिंह का सफल रहा। नाट्य आलेख राम प्रकाश शुक्ल ‘निर्मोही’ ने लिखा है। प्राॅडक्शन कंट्रोलर साधना सोनकर की भूमिका नाटक को सफल बनाने में सार्थक रही। प्रस्तुति परिकल्पना एवं निर्देशन राजकुमार शाह और रोजी दूबे ने किया।
इस संध्या की दूसरी प्रस्तुति के रूप में धर्मवीर भारती की कालजयी रचना ‘‘अंधा युग’’ का मंचन दशरूपक वाराणसी द्वारा सुमित श्रीवास्तव के निर्देशन में सफलतापूर्वक किया गया। नाटक की कथावस्तु महाभारत के भीषण युö के बाद के स्थितियों पर प्रकाश डालता है। नाटक की प्रासंगिकता आज के इस समाज में अंधी आधुनिकता की दौड़ की ओर भी इशारा करती है जो परमाणु अस्त्रों की भयावहता की ओर ढकेल रही है, क्या कोई सुनेगा जो अंधा नही है और मानव भविष्य को बचायेगा। 
नाटक का प्रत्येक पौराणिक पात्र समूची मानवजाति का अवलोकन करता है और अंत में सकारात्मक आश्वासन भी देता है कि हमें निराश नही होना चाहिए। जिस क्षण हम अपना अंधत्व देख लेंगे अंधा युग समाप्त हो जायेगा। मंच पर अभिनय करने वाले कलाकारों में नवीन चंद्रा, गुंजन शुक्ला, उमेश भाटिया, मंजु पाण्डेय ने अपने अभिनय से प्रभावित किया। सुमित केसरी, अभिषेक पाण्डेय सविता यादव ने भी सराहना पाई। नाटक का आलेख धर्मवीर भारती का है, जिसका कुशल निर्देशन सुमित श्रीवास्तव ने किया। शैज खान ने संगीत से नाटक को उपयुक्त माहौल प्रदान किया। आगत अतिथियों का स्वागत समूहन के निदेशक राजकुमार शाह और साथ में दिनेश सैनी, संजीव पाण्डेय, प्रवीन कुमार सिंह, अशोक अग्रवाल ने किया।


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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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