आज़मगढ़ : मुंबई सीरियल बम धमाकों के सिलसिले में विशेष टाडा अदालत ने शुक्रवार को अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम को दोषी करार दिया। बचपन में आजमगढ़ की गलियों में कंचा खेलकर पला-बढ़ा अबु सलेम शुरू से ऐसा नहीं था। आईये पढ़े 'सालिम ' से डॉन सलेम बनने की पूरी कहानी। शुक्रवार को मुंबई सीरियल ब्लास्ट पर सुनवाई करने वाली विशेष टाडा अदालत शुक्रवार को डॉन अबु सलेम समेत पांच आरोपियों को दोषी करार दिया है। टाडा अदालत के इस ऐतिहासिक फैसले के बाद जहां मुंबई के पीड़ितों समेत देश खुशी मना रहा है वहीं एक ऐसा भी कस्बा है जहां लोग इस फैसले से बेहद निराश हैं। एक तरफ जहाँ टाडा कोर्ट ने अबु सलेम को इस मौत के मंजर की साजिश रचने का दोषी पाया है, जिसमें हथियार और विस्फोटक मुंबई में लाना शामिल हैं। सरकारी वकील डीएन साल्वी ने बताया कि विस्फोट का सारा सामान अबु सलेम की देख-रेख में गुजरात के रास्ते लाया गया था। इन सभी के निशाने पर देश के बडे़ नेता, पुलिस कर्मी और वर्ग विशेष के लोग थे। अदालत के इस फैसले के बाद जहां पूरे देश का माहौल अलग है वहीं अबू सलेम के गृह जनपद आजमगढ़ के सरायमीर कस्बे में सन्नाटा पसरा है। वहीं डॉन के घर के बाहर कुछ लोग इस फैसले पर चर्चा कर रहे थे। अबू सलेम के भतीजे और रिश्तेदारों ने कोर्ट के इस फैसले पर निराशा जताई। उन्होंने कहा कि इसी मामले में अभिनेता संजय दत्त को काफी राहत मिली है। हमें भी पूरी उम्मीद है, संजय दत्त की तरह ही अबू सलेम को भी कम सजा मिलेगी। उन्होंने कहा कि अगर टाडा कोर्ट में उनके मुताबिक फैसला नहीं आया तो वे उच्च अदालतों में अपील करेंगे। वहीं अबू सलेम के एक पडोसी ने भी कहा कि संजय दत्त को हथियार रखने के मामले में मामूली दोष दिया गया वहीं सलेम को दोषी करार दिया गया है जो की उचित नहीं प्रतीत होता है । अब नजर डालते हैं कुछ पुरानी बातों पर ... आजमगढ़ से 35 किलोमीटर दूर स्थित कस्बा सरायमीर अंडरवर्ल्ड की दुनिया में एक चर्चित नाम है और हो भी क्यों नहीं यहीं की गलियों में कंचा खेलकर पला बढ़ा एक साधारण सा लड़का अब डॉन बन चुका है। जी हां यहां बात हो रही है अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम की जिसे बचपन में सब 'सलिमवा' के नाम से बुलाते थे। 1960 के दशक में पठान टोला के एक छोटे से घर में अधिवक्ता अब्दुल कय्यूम के यहां दूसरे बेटे अबु सालिम का जन्म हुआ. वकील होने की वजह से अब्दुल कय्यूम का इलाके में काफी रुआब था , लेकिन एक सड़क हादसे में उनकी हुई मौत के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई। घर की खराब माली हालत देख अबु सालिम को यहीं एक गैराज में नौकरी करनी पड़ी। वह काफी दिनों तक यहां पर मोटरसाइकिल और साइकिल बनाता रहा। इतने से उसके परिवार का पालन पोषण नहीं हो पा रहा था जिससे ऊबकर वह दिल्ली चला गया और वहां पर ड्राईवर की नौकरी करने लगा। दिल्ली से वह मुंबई पहुंचा और कुछ दिनों तक डिलीवरी ब्वाय के रूप में काम करने के बाद वह दाऊद के छोटे भाई अनीस इब्राहीम के संपर्क में आया। अनीस से मुलाकात के बाद अबु सलेम की जिंदगी बदल गई और यहीं से शुरू हुई 'सलिमवा' की डॉन अबु सलेम बनने की कहानी। बताया जाता है की अबू सालेम मुमाई में डी कंपनी के फ़ोन रिसीव करता था जहाँ से उसके खुद सीधे सम्पर्क बन गए। 12 मार्च 1993 मुंबई में अलग जगहों पर 12 बम विस्फोट हुए, जिसमें करीब 257 लोगों की मौत हो गई और 713 अन्य लोग घायल हुए। इस बम ब्लास्ट में दौड़ के साथ ही अबु सलेम का भी नाम आया। कहते हैं की इस खबर के बाद उसकी माँ ने अपनी आखिरी सांस तक अबु सलेम को मुंबई अंडरवर्ल्ड से जुड़ने और 1993 के सीरियल बम धमाकों में शामिल होने के लिए माफ नहीं किया था। मां की मौत के बाद अबु सलेम आजमगढ़ आया था। स्थानीय लोग बताते हैं कि अबु सलेम काफी डरा हुआ लग रहा था। एक भी मिनट मुंबई पुलिस के जवानों के पास हटा नहीं। उसे यूपी पुलिस पर भी भरोसा नहीं था। उसके खिलाफ आजमगढ़ में भी भाई को लेकर दहेज उत्पीड़न का एक मामला चल रहा हैा मुंबई ब्लास्ट के बाद फरार चल रहे अबु सलेम ने वर्ष 1998 में दुबई में अपना किंग्स ऑफ कार ट्रेडिंग का कारोबार शुरू किया। इसी कंपनी के स्टेज शो के दौरान ही उसकी दोस्ती फिल्म अभिनेत्री मोनिका बेदी से हुई। कहते हैं कि दोनों एक दूसरे को बेपनाह मोहब्बत करने लगे। यहां तक कि दोनों के बीच निकाह की भी खबर आई। हालांकि, मोनिका और अबू ने सार्वजनिक रूप से कभी भी इन रिश्तों को नहीं स्वीकारा। मुंबई ब्लास्ट से ही वांटेड अबू सलेम पुर्तगाल से 11 नवंबर, 2005 को भारत प्रत्यर्पित किए जाने तक वह फरार था। तब से लेकर अब तक विभिन्न मामलों में उसपर मुकदमा चल रहा है और मुंबई तथा ठाणे की जेलों में बंद रहा है। उस पर जेल में दो बार जानलेवा हमला भी हो चुका है। कहते हैं कि वर्ष 1993 में मुंबई बम विस्फोट के बाद अबू सलेम पुलिस से छिपने के लिए अपने गृह जिले आजमगढ़ भाग आया था। यहां उसने अपने 'शूटरों' का ऐसा नेटवर्क खड़ा किया जिससे पूरे देश में आजमगढ़ कुख्यात हो गया। अबू सलेम के शूटर 20 से 50 हजार रुपये के लिए लोगों की हत्याएं करने लगे। उनसे फिरौती वसूलने लगे। इसी नेटवर्क ने 1998 में टी सीरिज कंपनी के मालिक गुलशन कुमार की और दिल्ली के बिल्डर प्रदीप जैन की हत्या कर दी। हत्याकांड की पुलिस जांच शुरू हुई तो हत्या के लिए इस्तेमाल में आए तमंचे पर लिखे एक वाक्य ने पुलिस वालों को चक्कर में डाल दिया। तमंचे पर लिखा था 'मेड इन बम्हौर'। पुलिस वाले मेड इन बम्हौर का मतलब नहीं समझ पा रहे थे। उन्हें यह सूझ नहीं रहा था कि बम्हौर कोई देश है या कोई शहर। पुलिस की इस मशक्कत के बीच एक बुजुर्ग सिपाही जो की कभी जमाने पहले दबिश देने आजमगढ़ आया था उसने बताया कि आजमगढ़ जिले में एक गांव का नाम बम्हौर है। उसने यह भी बताया कि यहीं पर अवैध हथियार भी बनाए जाते हैं। इसके बाद पुलिस आजमगढ़ पहुंची और पहली बार टेरर नेटवर्क पर आजमगढ़ का नाम आया। इसी जांच से पता चला कि गुलशन कुमार की हत्या सलेम के नेटवर्क ने की है जिसे उसने आजमगढ़ में तैयार किया है। बताया जाता है कि उस समय अबू सलेम के नेटवर्क में 10 शूटर शामिल थे। इनमें से कई के खिलाफ अभी भी मुकदमा चल रहा है। पुर्तगाल से प्रत्यर्पित किए जाने के बाद पहली बार सलेम अपनी मां की मौत पर आजमगढ़ आया था। इसी दौरान उसकी डी कंपनी के मुखिया दाऊद इब्राहिम से अदावत चल रही थी। इसको देखते हुए उसकी सुरक्षा में सैकड़ों पुलिसकर्मी लगाए गए थे। इनमें तीन जिलों की फोर्स और मुंबई पुलिस के जवान शामिल थे। आजमगढ़ में उसकी इतनी सुरक्षा देख आसपास के कई नौजवान बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने अपराध की ओर रुख किया। सलेम के आजमगढ़ आने पर उसे देखने के लिए पूरा इलाका उमड़ आया था। इसके बाद सालेम के वकील अनुज सरावगी उस समय आजमगढ़ आये थे और वह सलेम द्वारा चुनाव लड़ने की संभावना तलाश रहे थे , इसी दौरान सरायमीर क्षेत्र में अबू सालेम के चित्र के साथ पोस्टर भी लगाए गए थे। मुंबई सीरियल बम धमाकों के सिलसिले में विशेष टाडा अदालत ने शुक्रवार को अंडरवर्ल्ड डॉन अबु सलेम को दोषी करार दिया।
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