आजमगढ। जनपद के प्रयोगधर्मी वरिष्ठ रंगकर्मी राजकुमार शाह के सशक्त निर्देशन का स्वाद एक बार फिर आजमगढ़ के दर्शकों को एक खूबसूरत शाम दे गया। मौका था समूहन कला संस्थान की नाट्य प्रस्तुति 'अजब-गजब इंसाफ इहा कै' का मंचन का। जिसे जीडी ग्लोबल स्कूल के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित किया गया। नाट्य संध्या का उद्घाटन संस्कृति मंत्रालय के अवर सचिव मदन चौरसिया ने दीप प्रज्ववलन करके किया और आगत अतिथियों का स्वागत प्रबंधक गौरव अग्रवाल, निदेशिका स्वाति अग्रवाल और प्रिंसिपल विधान तिवारी ने किया। नाटक का कथ्य सबकी सुनी-सबकी जानी, एक छोटी सी कहानी है। कहानी छोटी और साधारण, मगर समझे तो इशारा करती है बड़ी बातों की, इंसान को इंसान बनने की, समाज को सुजन समाज बनने की, बुद्धि और विवेक से व्यवहार करने की, संवेदना और प्रेम की। इस धरती पर हम इंसान उस ऊपर वाले के हाथ की कठपुतली है। उस ऊपर वाले ने अपनी डोर ंके माध्यम से हमें एक व्यवस्था दी है और प्रकृति के अनुरूप हमें कार्य करने के लिए बुद्धि विवेक भी दिया है। मगर इंसान अक्सर लोभ लालच में पड़कर, सही और गलत का ज्ञान होते हुए भी अपनी बुद्धि पर पर्दा डाल लेता है। उसका स्वार्थ और लालच उस पर हावी हो जाता है। इसके विपरीत निर्जीव वस्तुयें प्रकृति के साथ ज्यादा संवेदनशील होती हैं। अत: विवेकपूर्ण व्यवहार करने वाला इंसान ही इंसान है, अन्यथा उसका नष्ट होना निश्चित है। यही नाटक का मूल कथ्य है। कथा का आधार भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र की एक पुरानी रचना है, जिसमें उन्होंने समाज को बुद्धि विवेकपूर्ण सुजन समाज बनने का संदेश दिया है और ऐसा न करने पर उसके नष्ट हो जाने की चेतावनी दी है। हास्य व्यंग्य और कटाक्ष के माध्यम से सन्दर्भ पात्रों एवं कथ्य-शिल्प के विविध आयामों में सरोकारो के अनुसार कई प्रयोग किये गये है। भोजपुरी भाषा में पद्य-संवाद और गीतों के साथ लोक एवं रंगमंचीय संगीत के कलेवर में इसे नूतन पुरातन का संगम बनाया गया है। भोजपुरी के वरिष्ठ रचनाकार, राम प्रकाश शुक्ल निर्मोही ने नाटक का आलेख तैयार किया जबकि राजकुमार शाह के निर्देशन ने प्रभावित किया। गुरू चेला की भूमिका में अजय सोनकर, प्रशान्त सिंह, प्रखर शुक्ला ने सराहनीय अभिनय किया। बाजार का दृश्य और राजनीतिक कटाक्ष के अंशो पर लोगो ने खूब ठहाके लगाये, जिसे आदर्श सिंह, देवेन्दु रंजन, प्रदीप मित्रा, भूपेन्द्र प्रताप सिंह, अनिल विश्वकर्मा, रोहित सिंह, तैयब, इमरान, अरूण कुमार विश्वकर्मा, स्नेहा कश्यप, पारूल चैरसिया, संजना शर्मा, निशु सिंह ने अपने अभिनय से तालियां बटोरी। नाटक का मूल कथा-आधार भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र का और क्रियेटिव सर्पोट अम्बरीश राय का, वस्त्र विन्यास रोजी दुबे का मंच व्यवस्था रतन लाल जायसवाल और मो0 हफीज का प्रकाश ने नाटक को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। संगीत रचना एवं साउण्ड़ ड़िजाइन अर्जुन टण्डन एवं प्रवीण पाण्डेय का था, जो प्रभावशाली रहा। संचालन संजीव पाण्डेय ने किया। नाटक को सफल बनाने में अजय उपाध्याय, पूजा केसरी, राजमणि मौर्या, पंकज सत्यार्थी ने अपना मंचीय योगदान दिया। इस अवसर पर डा0 दीपक साहा, विश्वजीत सिंह पालीवाल, दिनेश सैनी और नगर के अनेकानेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। आजमगढ़ की कला संस्कृति के समृद्धि में समूहन कला संस्थान अनवरत लोक कला, रंगमंच के माध्यम से नवीन प्रयोग कर कला विधाओं का समादृत विस्तार कर रही है। प्राचार्य विधान तिवारी ने विद्यालय प्रबंध समिति के सम्मानित पदाधिकारियों एवं निर्देशक राजकुमार शाह सहित उनकी टीम व वहाँ उपस्थित सभी दर्शको के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। इस अवसर पर भारी संख्या में अभिभावक , शिक्षक, छात्र व अन्य सभ्रांत लोग उपस्थित रहे।
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