आजमगढ़ : सदर विधानसभा की चर्चा भी होती है तो लोगों के जेहन में दुर्गा प्रसाद यादव का नाम कौध जाता है। हो भी क्यों न वे इस क्षेत्र से सात बार विधायक चुने जा जुके है। अपने राजनीतिक जीवन में इन्हें सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा वह भी वर्ष 1993 में राजबली यादव। वर्ष 2007 में बसपा के रमाकांत ने नजदीकी नजदीकी मुकाबला रहा था लेकिन दुर्गा के जीत के क्रम को वे भी नहीं तोड़ सके थे। बसपा ने इस के बाद दुर्गा के किले को ढहाने के लिए भूपेंद्र सिंह मुन्ना को मैदान में उतारा है। भाजपा ने भी ब्राह्मण दाव खेल अखिलेश मिश्र को मैदान में उतार दिया है। पर सवाल वहीं है कि दुर्गा के तिलिस्म को कौन तोड़ेगा। निश्चित तौर पर इस बार दुर्गा प्रसाद यादव को विपक्ष ने मजबूती से घोरा है लेकिन दो सवर्ण प्रत्याशी मैदान में होने से दुर्गा एक बार फिर अपनी जीत के सिलसिले को बरकरार रखने का दावा कर रहे है। वहीं बसपा उलेमा कौंसिल का साथ मिलने से उत्साहित है। पीएम मोदी और प्रत्याशी अखिलेश की साफ़ सुथरी छवि के चलते भाजपा को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है। ऐसे में यहां हर पल समीकरण बदलते दिख रहे हैं और हर किसी की नजर इस सीट पर टिकी है। बता दें कि यह सीट पिछले तीन दशक से विपक्ष के लिए अबूझ पहेली बनी हुई है। हर चुनाव से पहले दुर्गा प्रसाद के खिलाफ लहर होने की बाते होती है। विपक्ष के दल प्रत्याशी चयन में जातीय समीकरण का पूरा ख्याल रखते हैं लेकिन अंत समय में दुर्गा हवा का रूख अपनी तरफ मोड़ लेते हैं। वर्ष 1993 में दुर्गा की हार का कारण उन्हीं के जाति के प्रत्याशी राजबली यादव बने थे। बसपा ने उन्हें मैदान में उतारा था और राजबली ने घर घर धूम कर लोगों से वोट या फिर कफन देने की अपील की थी। उनका यह दाव सफल रहा था और दुर्गा प्रसाद यादव चुनाव हार गए थे। इसके बाद से दुर्गा फिर कभी नहीं हारे। इस चुनाव में दुर्गा के सामने कई चुनौतियां एक साथ हैं। एक तरफ बसपा ने बाहुबली भूपेंद्र सिंह मुन्ना को प्रत्याशी बनाया है तो दूसरी तरफ भाजपा अखिलेश मिश्र गुड्डू मैदान में हैं। उलेमा कौंसिल से गठबंधन के बाद बसपा मजबूत हुई है तो दुर्गा का उनके भतीजे से भी विरोध चल रहा है। उसका साथ भी बसपा को मिल रहा है। ऐसे में दुर्गा के लिए मुसीबत बढ़ती दिख रही है। कारण कि इनके भतीजे प्रमोद यादव का क्षेत्र में अच्छा खासा वोट बैंक है। दुर्गा से विवाद के बाद प्रमोद बसपा से टिकट की दावेदारी भी किए थे लेकिन मुन्ना सिंह का टिकट पहले ही फाइनल हो चुका है। अब स्थित यह है कि दुर्गा प्रसाद को विपक्ष के साथ ही अपने परिवार की चुनौतियों से भी निपटना पड़ रहा है।
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