आज़मगढ़ 20/01/2017 । देश की चर्चित नाट्य संस्था सूत्रधार संस्थान आजमगढ़ द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार प्रात्प रंगकर्मी अभिषेक पंडित के सक्रिय रंगमंच पर बीस वर्ष पूरे होने अवसर पर आयोजित आजमगढ़ रंग महोत्सव आरंगम्-2017 का शुभारम्भ धूम-धाम से शारदा टाकिज के प्रागंण में हुआ। चूंकी यह आरंगम् का बारहवाँ वर्ष है इसलिये रंगमंच, साहित्य व पत्रकारिता के बारह शीर्ष विभुतियों के हाथों दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया। ज्ञात हो सूत्रधार संस्थान ने देश में उत्कृष्ठ नाट्यकर्म करने वाले शीर्ष रंगकर्मियों को रंगमंच क्षेत्र में अतुलनीय योगदान के लिये विगत वर्ष से सूत्रधार सम्मान देने की परम्परा शुरू की है। उसी कड़ी में इस वर्ष राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक एवं देश के जाने माने रंगनिर्देशक श्री वामन केन्द्रे को यह सम्मान दिया गया है। इस सम्मान में ताम्रपत्र के साथ-साथ ग्यारह हजार रूपये की धनराशी भी दी जाती है। तत्पश्चात उमेश कन्नौजिया एवं साथी लोकनृत्य दल द्वारा धोबिया एवं जाघिंया नृत्य का शानदार प्रदर्शन किया गया। आरगम् के दूसरे सत्र में हृषिकेश सुलभ कृत नाटक बटोही का मंचन किया गया। नाटक के माध्यम से कलाकारों ने एक रचनाकार के अंतर्मन की व्यवस्था और द्वन्द को सफलता पूर्वक प्रस्तुत किया। भोजपूरी के शेक्सपियर कहें जाने वाले भिखारी ठाकुर के जीवन पर आधारित इस नाटक कों अभिषेक पंडित की परिकल्पना और सधे हुये निर्देशन में नाटक बटोही ने जनपद में नयी रंगभाषा को प्रदर्शित कियां। सुलभ जी के लिखे संवादों के जरिये यह प्रस्तुति किसी काल विशेष की न होकर आज की परिवेश से सवाल करती नजर आयी। नाटक का आरंभ भिखारी बने हरिकेश मौर्या द्वारा अपने नवजात शिशु के शव को गंगा में प्रवाहित करने से होती है। पत्नी और बेटे की असमय मृत्यु सें दुखी भिखारी का मन अपने गांव कुतुब पुर से उब गया है। वह अपने मन की पीड़ा रामानन्द सिंह (अरविन्द चैरसिया) से व्यक्त करते है। जिस पर रामानन्द, भिखारी को समझाते है। पर भिखारी अपना गांव घर छोड़ दूसरे गांव फतनपुर जा बसते है। जहां पारस चैधरी (संदीप) रामदेव (अंगद) मदद करते है। इसके बाद भी भिखारी का मन वहां नही रमता, वह फिर भी अपने गांव लौट जाते है। जहां उनके भाई बहोर, माँ शिवकली(डा0 अलका सिंह), पिता दलसिंगार ठाकुर(दिव्य दृष्टा संजय) उनका स्वागत करते है। भिखारी की तीसरी पत्नी मनतुरनी(ममता पंडित) और घर गृहस्थी का भार सम्भालने लगते है। एक बार फिर जीविकोपार्जन के लिये भिखारी कलकत्ता का रूख करते है। जहां उनके दूर के रिश्तेदार बाबूलाल(अमरजीत) उनकी मदद करते है पर अपने भितर पनप रहें सामाजिक असंतोष में कुछ नया चाहने की चाह में भिखारी पुनः कुतुबपुर लौट जाते हैं । लेकिन उनके हाथ में रामचरित मानस होता है। सबके समझााने के बाद भी भिखारी गांव में छोटी जाती के लोगो को लेकर रामलीला का मंचन करते हैं । जिससे ऊंची जाती के लोग उनका विरोध करते है। इससे दुखी होकर भिखारी अपनी नांच पार्टी बनाते है। पर यहां भी उनके जाती और सामंतवाद का दंश झेलना पड़ता है। और अन्ततः नाच दल के माध्यम से सामाजिक चेतना जगाने का प्रण करते हैं इस कहानी के जरिये कलाकार के संघर्ष और जिम्मेदारी को दर्शाने का सफल प्रयास किया गया है। काजल,रीता, विनय, रवि, रामजनम, बालेन्दू रितेश रंजन, रितेश अस्थाना का अभिनय एवं शशिकान्त का म्यूजिक व रणजीत कुमार की प्रकाश परिकल्पना ने लोगो भाव विभोर कर दिया। इस अवसर पर संजय उपाध्याय, श्री रमेशचन्द्र गुप्ता, दिवान सिंह बजेली , अजीत राय, संगम पाण्डेय, हृषिकेश सुलभ, त्रिपुरारी शरण, मुकेश भारद्वाज (प्रधान सम्पादक जनसत्ता), श्री आनन्द नारायण सिन्हा( निदेशक-कलिदास अकादमी, उज्जैन), श्री सत्यदेव त्रिपाठी( श्री सुभाषचन्द्र कुशवाहा, डा0 आलोक मिश्र, श्री राकेश कुमार, स्वस्ति सिंह (अध्यक्ष स्वागत समिति), डाॅ0 हेमबाला यादव, डाॅ0 निर्मल श्रीवास्तव, डाॅ0 ए0 के सिंह, डाॅ0 खुश्बू सिंह, डाॅ0 अलका सिंह, निरज सिंह, विवके पाण्डेय, सुग्रीव विश्वकर्मा, रणजीत कुमार, तरूण राय, अविनाश सिंह इत्यादि लोग उपस्थित रहें।
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