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हर व्यक्ति को अपने कार्यों का मूल्यांकन करना चाहिए-न्यायमूर्ति रणविजय सिंह

 कलेक्ट्रेट बार का  शताब्दी समारोह संपन्न 


आजमगढ़ : कलेक्ट्रेट बार के शताब्दी समारोह में मुख्य अतिथि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति रणविजय सिंह ने कहा कि सौ वर्ष पूरे कर चुकी इस संस्था और इसके सदस्यों को अपने कार्यो का स्वमूल्यांकन करना चाहिए क्योंकि हम इस समय जिस काल में चल रहे है उसमे शब्द अपना अर्थ खो रहे है और मूल्यों का क्षरण हो रहा है। समारोह में बतौर मुख्य अतिथि अधिवक्ताओं को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को अपने कार्यों का मूल्यांकन करना चाहिए क्योंकि अब समाज धीरे-धीरे संस्कार विहिन होता जा रहा है। पहले हमारे समाज में 27 संस्कार होते थे बाद में घटकर वह 16 संस्कार हो गये। वर्तमान समय में तो दो ही संस्कार रह गये है। संस्कारहीन समाज में पात्र लोग हो उसकी कल्पना ही व्यर्थ है। न्यायमूर्ति श्री सिंह ने कहा कि माना जाता है कि कानूनविद सामाजिक इंजीनियर होता है। हमे यह भी हर जिले में देखने को मिला कि वहां कई विधि महाविद्यालय, दर्जनों बीएड कालेज खुले है फिर भी भाषा का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है। उन्होंने नये विधि के छात्रों से कहा कि वकालत जीविकोपार्जन का साधन नहीं बल्कि एक ऐसा प्रोफेशन है जिसमे परोपकार करना होता है। उन्होंने कहा कि आजमगढ़ को इस बात पर गर्व होगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने काफी मंथन करके आप के जिले के व्यक्ति को प्रदेश का लोकायुक्त नियुक्त किया है।
समारोह के विशिस्ट अतिथि प्रदेश के लोकायुक्त न्यायमूर्ति संजय मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि सौ साल इतिहास के पन्नों पर छोटा लगता है। किसी भी संस्था की नींव मजबूत तब मानी जाती है जो ज्यादा पुरानी हो। इसमे आजमगढ़ का कलेक्ट्रेट बार भी आ गया है। उन्होंने अधिवक्ताओं से कहा कि प्राय: यह देखा जाता है कि प्रतिक्रियागत न्याय व्यवस्था का फायदा उठाकर पक्षकार अपना मुकदमा लंबित करना चाहता है और अधिवक्ता उसकी मदद भी करते है। अधिवक्ताओं को प्रतिक्रियागत न्यायिक कमियों का लाभ उठाकर मुकदमा लंबित नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे वादकारी न्याय पालिका से विमुख हो जायेगा। जब वादकारी नहीं होगा तो अधिवक्ता व न्यायपालिका का कोई अर्थ नहीं होगा।
उन्होंने अधिवक्ताओं को कहा कि अपने मुकदमों के प्रति आत्म विशलेषण करना चाहिए। जिससे उनमे व न्याय पालिका में काफी सुधार आ जायेगा। आये दिन होने वाली हड़तालों की बाबत उन्होंने अधिवक्ताओं से कहा कि अपनी मांगों के लिए आवाज उठाना हर किसी का हक है पर कानून तोड़कर अपनी मांग उठाने की प्रक्रिया पर जोर नहीं देना चाहिए। हमें ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए कि हमारे सौ वर्षो के इतिहार पर असर पड़े। उन्होंने कहा कि जब न्यायपालिका की गिरावट पर चर्चा होती है तो मुझे दुख होता है।
इस अवसर पर उप्र बार कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष अमरेंद्र नाथ सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि वकालत, किसानी, राजनीति में हर स्तर पर परीक्षा देनी होती है। इन तीनों विधाओं के लोग सभी के प्रति जबावदेह होते है। उन्होंने कहा कि यह अभिभाषक संघ का शताब्दी समारोह है। 100 साल में 69 वर्ष तो आजाद भारत के है और 31 वर्ष गुलाम भारत के है। आजाद भारत में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की गयी। उसमे बहुत सी चुनौतियां आयी। हर स्तर पर अधिवक्ता अपनी आवाज उठाता रहा। क्योंकि अधिवक्ता ही हर किसी की आवाज उठाने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि यदि हड़ताल न हो तो अधिवक्ता अपनी बातें कैसे प्रशासन के समक्ष रखें यह एक विचारणीय प्रशन है। उन्होंने कहा कि पुराने अधिवक्ताओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे अपने जूनियर अधिवक्ताओं को अनुशासित रहने का पाठ पठाये और वकालत की बारीकियां सिखाये। उन्होंने राजनीति में अब अधिवक्ताओं की कम भागीदारी पर भी सवाल उठाये।

  शताब्दी  समारोह में  कर्नल निजामुद्दीन का स्वागत दोनों मुख्य अतिथियों ने किया। स्वागत के बाद निजामुद्दीन ने जय हिंद का नारा लगाया।  इस अवसर पर एक स्मारिका का विमोचन भी किया गया। इस दौरान सेंट्रल बार के अध्यक्ष राजदेव सिंह व कलेक्ट्रेट बार के पूर्व अध्यक्ष देवकरन सिंह ने अधिवक्ताओं से जुड़ी समस्याओं को समारोह में रखा। समारोह की अध्यक्षता बार एसोसिएशन के अध्यक्ष अजय कुमार श्रीवास्तव व संचालन मंत्री दिग्विजय सिंह ने किया। कार्यक्रम में प्रदेश सरकार के मंत्री ,विधायक , प्रशाशनिक अधिकारीगण , शिक्षाविद और समस्त बार के पदाधिकारियों के अलावा काफी संख्या में लोग मौजूद रहे।


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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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