आजमगढ़ : केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा व दयानंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में विभागाध्यक्ष ¨ हिंदी के डा. गीता सिंह द्वारा आयोजित हरिऔध साहित्य में समाज और स्त्री विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी रविवार को डीएवी महाविद्यालय में आयोजित की गई। राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन नई दिल्ली से प्रो. ओपी हिंदी, लखनऊ से प्रो. परशुराम पाल, मप्र से प्रो. त्रिभुवन नाथ शुक्ल व प्रो. आशा रानी, बिहार से प्रो. पूनम सिन्हा, हरियाणा से प्रो. नरेश मिश्र, प्राचार्य डा. शुचिता श्रीवास्तव व प्रबंध समिति के मंत्री श्रीनाथ सहाय ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलन व मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण के साथ किया। प्रो. ओपी हिंदी ने कहा कि हरिऔध का प्रियप्रवास 1914 में खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है। इस महाकाव्य पर हरिऔध को 1936 में साहित्य वाचस्पति की उपाधि से विभूषित किया गया। प्रो. पूनम सिन्हा ने कहा कि हरिऔध ने नारी पात्रों में राधा का मार्मिक चित्रण प्रस्तुत करके संपूर्ण नारी को एक सशक्त संदेश दिया। प्रो. नरेश मिश्र ने कहा कि प्रिय प्रवास, वैदेही वनवास 1940 के साथ-साथ हरिऔध के लगभग 50 पुस्तकें ¨हदी साहित्य को समृद्ध बनाती है और आजमगढ़ को विश्व ¨हदी साहित्य में स्थापित करती है। प्रो. टीएन शुक्ला ने कहा कि हरिऔध का व्यक्तित्व पंडित मदन मोहन मालवीय ने समझा और उन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के ¨हदी विभाग में 1924-1941 तक अवैतनिक रूप से सेवा का अवसर दिया। प्रो. आशा रानी ने कहा कि प्रिय प्रवास के राधाकृष्ण पौराणिक जरूर है परन्तु वे ईश्वर और शक्ति के प्रतिरूप न होकर हाड़-मांस के मानव मानवी है। प्रो. परशुराम पाल ने कहा कि राधा कृष्ण के माध्यम से मानवीय प्रेम को हरिऔध ने इतनी ऊंचाई दी है कि यह व्यक्ति, परिवार, समाज की सीमाओं को पार करता हुआ विश्व प्रेम में परिवर्तित हुआ। डा. दया दीक्षित ने कहा कि स्त्री-पुरुष समाज के अभिन्न अंग हैं और हरिऔध ने दोनों के पक्ष को बराबर ध्यान में रखकर साहित्य की रचना की। संगोष्ठी को डा. प्रेमशीला शुक्ला, डा. सुमन, डा. कमलेश वर्मा, डा. विनोद ¨सह, डा. सरोज सिंह, डा. रामअवध यादव, डा. अखिलेश चंद्र आदि ने संबोधित किया। मुख्य अतिथि डा. कन्हैया सिंह ने बताया कि प्रिय प्रवास की रचना हरिऔध जी ने संस्कृत की कोमल कांत पदावली में की है। अध्यक्षता कर रहे लालसा लाल तरंग ने कहा कि हरिऔध साहित्य में समाज और स्त्री विषय का चयन करके डा. गीता सिंह ने आजमगढ़ के साहित्य परंपरा को वर्तमान में आगे बढ़ाया। संचालन पंकज गौतम ने किया। अतिथियों का स्वागत संयोजक डा. गीता सिंह व आभार प्राचार्य डा. शुचिता श्रीवास्तव ने किया।

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