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आजमगढ़: भगवान भास्कर को अर्घ्यदान के लिए उमड़ा भक्तों का सैलाब




तमसा तट पर दिखा आस्था का ज्वार, लगता रहा छठ मइया का जयकारा

आजमगढ़: बातें कर लें चाहे जितनी विज्ञान की, आज भी जरूरत है ऊपर वाले के ध्यान की। कुछ ऐसा ही दिखा गुरुवार को डाला छठ पर। दोपहर से पहले पूजा के लिए भूले सामानों का इंतजाम और उसके बाद नदी-सरोवरों की ओर बढ़ने लगे थे भक्तों के कदम। हर तरफ आस्था का ज्वार दिख रहा था और दिन ढलने के साथ घाटों पर भीड़ इतनी कि तिल रखने की जगह तक नहीं बची थी। निराजल व्रत रखने वाली महिलाओं के साथ ही पूरे परिवार में एक अलग तरह की ऊर्जा का संचार होते दिखा। सभी के चेहरे पर उत्साह के भाव थे। इंतजार था घाटों पर पहुंचने का। नदी हो या सरोवर, सभी घाटों पर आस्था की लहरें हिलोरें ले रही थीं।
शाम होने के साथ अर्घ्यदान का क्रम शुरू हुआ, तो एक साथ लाखों लोगों ने भगवान भास्कर को नमन किया। उत्साह ऐसा कि तीन दिन का व्रत रखने वाली महिलाओं के चेहरे को देख लग रहा था कि भगवान भास्कर की कृपा है। उनके चेहरे पर कहीं से थकावट के भाव नहीं दिख रहे थे। साथ में चल रहे परिवार के सदस्यों व अन्य परिचितों के दिल में आस्था तो चेहरे पर गजब का उत्साह था।
गुरुवार को दोपहर बाद से ही व्रती महिलाओं व उनके परिवार के सदस्यों के कदम चल पड़े थे नदी व सरोवरों के घाटों की ओर। हर तरफ खुशी और जुबां पर छठ मइया से जुड़े गीत। यह अद्भुत दृश्य देख लग रहा था कि मानों भगवान भास्कर ने अपने भक्तों में अतिरिक्त ऊर्जा का संचार कर दिया हो। शाम होने के साथ श्रद्धालुओं की भीड़ से नदी-सरोवरों के घाट पट गए थे। घाटों के किनारे शाम होने के साथ विद्युत रोशनी से नहा उठे। सूर्यास्त होने के पहले सूर्य के सिंदूरी रूप का दर्शन करने के साथ अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य शुरू हो गया। घाटों पर व्रती महिलाओं ने अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की विधि-विधान से पूजा कर उनसे अपने पति के दीर्घायु और पुत्रों के यशस्वी व वीरवान होने की कामना की। अर्घ्यदान के बाद अंधेरा होते ही कलश पर जलता दीपक लेकर व्रती महिलाएं उत्साह के साथ घर को लौटीं, तो पीछे से उनके साथ सिर पर पूजा का सामान लिए परिवार के लोग चल पड़े घरों की ओर। व्रती महिलाएं हाथ में कलश लिए चल रही थीं। शाम के अंधेरे में कलश पर जलता दीपक लेकर चल रही व्रती महिलाओं को देख ऐसा लग रहा था मानों आगे-आगे देवी और उसके पीछे उसके भक्तों की भीड़ चल रही हो। घर पहुंचने पर व्रती महिलाओं ने आंगन में पूजा की। इस पूजा में घर के सभी सदस्यों की संख्या के अनुसार मिट्टी के पात्र में फल आदि रखकर सूर्य भगवान के नाम से अर्पित किया गया। कुछ घरों में व्रती महिलाओं ने रात्रि जागरण भी किया।
आमतौर लोग बिना बुलाए कहीं किसी अवसर पर नहीं जाते, लेकिन छठ पर्व पर ऐसी सोच किनारे होती दिखी। जिनके घरों में छठ की पूजा नहीं होती, उन लोगों ने भी बिना बुलाए पूजा में अपनी हिस्सेदारी की। खास बात यह कि जिनके पड़ोस में भी कोई व्रत करने वाला नहीं वह लोग सीधे अपने नजदीकी घाट पर पहुंचे और भगवान भास्कर को अर्घ्यदान किया।
हर पूजा के पीछे कहीं आस्था तो कहीं मन्नत कारण बनती है। कुछ ऐसा ही दिखा छठ पर। कई लोग मिन्नत पूरी होने पर दंडवत करते घर से पूजा घाटों तक पहुंचे। इस तरह की कठिन तपस्या देख लोगों की जिज्ञासा भी बढ़ती दिखी। पता चला कि किसी को पुत्र रत्न की प्राति छठ मइया की कृपा से हुई, तो किसी के परिवार में असाध्य रोगों के शिकार लोग ठीक हो गए। इस दौरान चूंकि पूजा घाटों की ओर जाने वाले रास्तों की धुलाई की नहीं गई थी, इसलिए साथ चलने वाले लोगों ने चादर की व्यवस्था कर रखी थी।
नगर क्षेत्र में तीन तरफ से बहने वाली तमसा नदी के दलालघाट, गौरीशंकर घाट, कदम घाट, भोला घाट, सिधारी, नरौली, हरबंशपुर शाही पुल के पास समेत कई घाटों पर मेला लगा रहा। कई स्थानों पर छठ मइया और सूर्य भगवान के साथ व्रती महिलाओं की प्रतीक स्वरूप प्रतिमा भी स्थापित की गई थी। एक दिन पहले ही स्थानीय पूजा कमेटियों ने पंडाल को तैयार कर लिया था। गुरुवार को दिन में विधि-विधान से प्रतिमा की गई। कई स्थानों पर मेला लगा रहा। पूजा घाटों के रास्तों पर खिलौने-गुब्बारे के साथ चाट और चाऊमीन की भी दुकानें सजाई गई थीं, तो बच्चों के लिए झूले भी लगे थे। घर के बड़े पूजा में लगे थे तो बच्चे झूले का आनंद उठाने में नहीं चूके।

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रिपोर्ट आज़मगढ़ लाइव

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